डाटा इंट्री का काम बाधित
Posted On at by NREGA RAJASTHANमनरेगा की खामियों पर बरसे पासवान
Posted On at by NREGA RAJASTHANप्रतिनिधि, जालंधर : देशभगत यादगार हाल में शनिवार को 'भूख की जंग में-हम सब संग में' अभियान की शुरुआत कर दी गई। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि मनरेगा स्कीम के तहत कहीं धांधली की जा रही है तो कहीं बेहद कम दिहाड़ी दी जा रही है। भारत निर्माण का सपना दिखाने वाली यह स्कीम फ्लाप साबित हो रही है। लोगों को साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार देने के दावे महज कागजी साबित हो रहे हैं। इसी कारण देशभर में मनरेगा की खामियों के खिलाफ जंग का आगाज जालंधर के देशभगत यादगार हाल से किया गया है। इस अवसर पर राष्ट्रीय महासचिव जय सिंह, अमर सिंह मेहमी, राष्ट्रीय दलित सेना के प्रधान सांसद राम चंद्र पासवान, पंजाब प्रधान किरण गहरी व परमिंदर सिंह काला उपस्थित थे।
ग्रेवल सड़कों की जांच होगी
Posted On at by NREGA RAJASTHANजोधपुर. नरेगा के तहत पिछले दो साल में बनी सभी ग्रेवल सड़कों की गुणवत्ता की जांच की जाएगी। ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज विभाग ने नरेगा, डीआरडीए व भूसंरक्षण के अभियंताओं को इन सड़कों की जांच करने के निर्देश दिए हैं। अभियंता मौके पर जाकर सड़कों की मोटाई चैक करेंगे।
सरकार ने गुणवत्ता की यह रिपोर्ट 20 जून तक भेजने के निर्देश दिए हैं। नरेगा में पिछले दो साल में ज्यादातर कच्चे काम के रूप में ग्रेवल सड़कों का निर्माण हुआ है। यह काम पीडब्ल्यूडी व पंचायत दोनों ने करवाया था। नाडी की खुदाई से ग्रेवल निकाल कर बिछाने तक का काम श्रम मद में ही हुआ है।
ग्रेवल सड़कों के निर्माण में शिकायतें आ रही थीं, इसलिए ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज विभाग सभी जिलों में 30 सितंबर 2010 से पहले बनी ग्रेवल सड़कों की गुणवत्ता चैक करने के निर्देश दिए हैं। जिला परिषद के सीईओ व नरेगा एडीपीसी को दिए निर्देश में कहा गया कि नरेगा, डीआरडीए व भूसंरक्षण विभाग के एक्सईएन जिले की कोई भी दो ग्रेवल सड़कों की जांच करेंगे तथा एईएन पंचायत समितियों की सड़कों को चैक करेंगे।
250 मीटर तक खुदाई करनी होगी: एक्सईएन व एईएन दो-दो ग्रेवल सड़कों की जांच करेंगे। गुणवत्ता की जांच के लिए 250 मीटर लंबाई तक सड़क की खुदाई करवा कर ग्रेवल सड़क की मोटाई देखेंगे। तैयार ग्रेवल सड़क की मोटाई लगभग 6 इंच होनी चाहिए, इससे कम मोटाई वाली ग्रेवल सड़क का काम निम्न स्तर का माना जाता है।
पहले भी करवाई थी जांच: सरकार ने करीब एक साल पहले सभी ग्रेवल सड़कों की गुणवत्ता चैक कराई थी। पिछली सरकार में घटिया ग्रेवल सड़कें बनाने की शिकायतें ज्यादा थीं। उस पर ऑडिट पैरा भी बने थे। सरकार ने विभिन्न एजेंसियों के अभियंताओं को इस काम में लगा कर संबंधित जिम्मेदार से वसूली भी की थी।
सरकार ने गुणवत्ता की यह रिपोर्ट 20 जून तक भेजने के निर्देश दिए हैं। नरेगा में पिछले दो साल में ज्यादातर कच्चे काम के रूप में ग्रेवल सड़कों का निर्माण हुआ है। यह काम पीडब्ल्यूडी व पंचायत दोनों ने करवाया था। नाडी की खुदाई से ग्रेवल निकाल कर बिछाने तक का काम श्रम मद में ही हुआ है।
ग्रेवल सड़कों के निर्माण में शिकायतें आ रही थीं, इसलिए ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज विभाग सभी जिलों में 30 सितंबर 2010 से पहले बनी ग्रेवल सड़कों की गुणवत्ता चैक करने के निर्देश दिए हैं। जिला परिषद के सीईओ व नरेगा एडीपीसी को दिए निर्देश में कहा गया कि नरेगा, डीआरडीए व भूसंरक्षण विभाग के एक्सईएन जिले की कोई भी दो ग्रेवल सड़कों की जांच करेंगे तथा एईएन पंचायत समितियों की सड़कों को चैक करेंगे।
250 मीटर तक खुदाई करनी होगी: एक्सईएन व एईएन दो-दो ग्रेवल सड़कों की जांच करेंगे। गुणवत्ता की जांच के लिए 250 मीटर लंबाई तक सड़क की खुदाई करवा कर ग्रेवल सड़क की मोटाई देखेंगे। तैयार ग्रेवल सड़क की मोटाई लगभग 6 इंच होनी चाहिए, इससे कम मोटाई वाली ग्रेवल सड़क का काम निम्न स्तर का माना जाता है।
पहले भी करवाई थी जांच: सरकार ने करीब एक साल पहले सभी ग्रेवल सड़कों की गुणवत्ता चैक कराई थी। पिछली सरकार में घटिया ग्रेवल सड़कें बनाने की शिकायतें ज्यादा थीं। उस पर ऑडिट पैरा भी बने थे। सरकार ने विभिन्न एजेंसियों के अभियंताओं को इस काम में लगा कर संबंधित जिम्मेदार से वसूली भी की थी।
गहलोत की प्रधानमंत्री से मदद का आग्रह
Posted On at by NREGA RAJASTHANभेंट के दौरान गहलोत ने प्रधानमंत्री को बताया कि राज्य के मरूस्थलीय प्रधान पश्चिमी भू-भाग में पेट्रोल एवं गैस के विशाल भण्डार मिले है और बाड़मेर जिले में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में ही वर्ष 2009 में कच्चे तेल का उत्पादन प्रारम्भ हुआ है वर्तमान में यहां 1 लाख 25 हजार बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का उत्पादन हो रहा है, जो शीघ्र ही बढ़कर 1 लाख 50 हजार बैरल प्रतिदिन हो जायेगा।
गहलोत ने प्रधानमंत्री को अवगत कराया कि देश के बड़े राज्यों में राजस्थान एकमात्रा ऐसा प्रदेश है, जिसमें रिफाईनरी नहीं है। प्रदेश के लोगों की भावना एवं अपेक्षा है कि राज्य में शीघ्र ही रिफाईनरी स्थापित हो और प्रधानमंत्री इस मामले में स्वयं हस्तक्षेप कर रिफाईनरी लगवाये,ताकि राज्य के निवासियों को रोजगार के अवसर मिलने के साथ ही उनकी आर्थिक हालत में भी सुधार का लाभ मिल सके।
उन्होने बताया कि प्रदेश में रिफाईनरी की स्थापना के लिए राज्य सरकार द्वारा सेवानिवृत्त केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव एस.सी. त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था और इस समिति ने बाड़मेर में प्रथम चरण में 4.5 से 6 मिलियन टन वार्षिक क्षमता की रिफाईनरी स्थापित करने की अनुशंषा की थी। राज्य सरकार ने त्रिपाठी कमेटी की सभी अनुशंषाए स्वीकार कर ली है और ओ.एन.जी.सी. द्वारा चाही गई अतिरिक्त वित्तीय रियायतें देने की पेशकश भी की है। साथ ही केन्द्रीय वित्त मंत्री को पत्रा लिखकर राजस्थान-रिफाईनरी को उत्पाद शुल्क में 50 प्रतिशत छूट देने का आग्रह किया है।
गहलोत ने बताया कि इंजीनियर्स इण्डिया लिमिटेड ने राज्य सरकार के साथ रिफाईनरी परियोजना में सहभागिता की पेशकश की है और ओ.एन.जी.सी. के साथ राज्य सरकार के अधिकारियों का विचार विमर्श जारी है। उन्होंने केन्द्र सरकार से रिफाईनरी की स्थापना के लिए सहयोग करने का आग्रह करते हुए प्रधानमंत्री से मांग की कि वे केन्द्रीय वित्त मंत्रालय से राजस्थान रिफाईनरी को उत्पाद शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट प्रदान करावे और केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय राजस्थान रिफाईनरी को बाड़मेर ब्लॉक से कच्चा तेल खरीदने के लिए नामित करे। साथ ही केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय से ओ.एन.जी.सी. को 69 प्रतिशत सहभागिता के साथ मुख्य प्रमोटर के रूप में बाड़मेर रिफाईनरी स्थापित करने का निर्देश दिलावे। गहलोत ने उन्हे विश्वास दिलाया कि बाड़मेर में रिफाईनरी की स्थापना के लिए राज्य सरकार द्वारा 26 प्रतिशत सहभागिता की जायेगी। शेष 5 प्रतिशत की सहभागिता इन्जीनियर्स इण्डिया लिमिटेड की होगी।
गहलोत ने राज्य की तापीय विद्युत परियोजनाओ के लिए केन्द्र से तत्काल कोल लिंकेज एवं कोल ब्लॉक्स दिलवाने और पर्यावरणीय मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने का आग्रह भी किया और उन्हें बताया कि ऐसा नहीं होने पर राज्य की ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्रा में तेजी से आगे बढ़ने के प्रयासो को धक्का लगेगा। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि राजस्थान सरकार ऊर्जा क्षेत्रा को सर्वोच्च वरीयता दे रही है और विगत दो वर्षों से राज्य की वार्षिक योजना में उर्जा क्षेत्रा को सभी क्षेत्रों के मुकाबले प्राथमिकता दी गई है।
उन्होंने बताया कि राज्य में 1200 मेगावाट क्षमता की काली सिंध तापीय परियोजना (यूनिट 1 व 2) एवं 500 मेगावाट की छबड़ा (यूनिट 3 व 4) बिजलीघरों का कार्य प्रगति पर है एवं इन दोनों परियोजनाओं को 11वीं पंचवर्षीय योजना में पूर्ण किया जाना है। इन दोनों परियोजनाओं का 75 प्रतिशत से ज्यादा का कार्य पूर्ण हो चुका है एवं इन पर लगभग 5 हजार करोड़ रूपये भी व्यय किए जा चुके हैं। इनसे चालू वित्तीय वर्ष मे ही विद्युत उत्पादन शुरु होना प्रस्तावित है।
गहलोत ने बताया कि इन दोनों परियोजनाओं के लिए कोयले की दीर्घकालीन आपूर्ति छत्तीसगढ राज्य में स्थित हंसदेव अरंड कोल फील्ड्स के ‘‘पारसा ईस्ट व केन्टे बसान’’ कोल ब्लॉक्स से प्रस्तावित है, लेकिन हसदेव आरन्द कोल फील्ड को ‘नो गो एरिया’ घोषित किया गया है, इस कारण इन कोल ब्लॉक्स की वन एवं पर्यावरण स्वीकृति वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नहीं दी जा रही है, जिससे इन कोल ब्लॉक्स से कोयले का खनन शुरू नहीं किया जा सका है। भारत सरकार ने एक मंत्रीमण्डलीय समूह गठित किया है जो कि तापीय परियोजनाओं के लिए कोयले की आपूर्ति से संबंधित मुद्दों पर विचार कर उनका समाधान करेगी परन्तु अभी तक संबंधित मुद्दों पर कोई समाधान नहीं हो पाया है। उन्होनें बताया कि इस परिस्थिति में इन तापीय परियोजनाओं को कोयले की आपूर्ति के बिना शुरू करना संभव नहीं होगा। अतः इस संबंध में तत्काल निर्णय करवाने की आवश्यकता है अन्यथा हम बिजली उत्पादन के लक्ष्य समय पर पूरा करने में पिछड जायेगें।
गहलोत ने बताया कि हमने अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल 1998-2003 में 1500 मेगावाट से अधिक क्षमता की परियोजनाओं की स्वीकृति दी थी और कोयले का आवंटन एवं पर्यावरण स्वीकृति समय पर प्राप्त होने के कारण उन्हे समय पर चालू करने और 1400 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं को पूर्ण करने में सफलता पाई थी।
इस बार भी हमनें राज्य मे अपने वर्तमान कार्यकाल के शुरू में ही सुपर क्रिटीकल तकनीक पर आधारित कुल 3960 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं सूरतगढ़ एवं छबड़ा को राज्य क्षेत्रा में एवं आदिवासी क्षेत्रा बांसवाड़ा में निजी क्षेत्रा में हाथ में लेने की मंजूरी दी है इन परियोजनाओं के लिए संबंधित सभी कार्यवाही यथा भूमि का आवंटन, जल आवंटन एवं टी.ओ.आर इत्यादि पूरी कर ली गई हैं। राज्य सरकार ने फरवरी 2009 में कोयले के लॉग टर्म लिंकेज/कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय, भारत सरकार को आवेदन किया था। राज्य सरकार द्वारा निरंतर प्रयास करने पर भी दो साल से अधिक का समय व्यतीत हो जाने के उपरान्त पर भी भारत सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा अभी तक कोयले के लिंकेज/कोल ब्लॉक का आवंटन नहीं किया गया है। इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय निविदाएं भी आमंत्रित कर उन्हें अप्रैल 2010 में खोला जा चुका हैं, परन्तु कोयले का आवंटन नहीं होने की वजह से कार्यादेश नहीं दिये जा सके हैं। इन परियोजनाओं की लगातार मोनिटरिंग करने के उपरान्त भी इनके क्रियान्वयन में एक वर्ष से ज्यादा का विलम्ब हो चुका है। इस कारण इन परियोजनाओं को समय पर पूर्ण करने में दिक्कतों का सामना करना पड रहा है।
उन्होंने बताया कि पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से भी राज्य सरकार को ओर से अनुरोध किया जा चुका है।
गहलोत ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों की सूची में बी.पी.एल परिवारों के लिए ग्रामीण आवास को भी सम्मिलित करवाया जाए। उन्होने बताया कि राजस्थान में इंदिरा आवास योजना के अर्न्तगत प्रत्येक वर्ष मात्रा 65,000 बी.पी.एल. परिवारों को ही लाभान्वित किया जा रहा है। इस गति से 2001 की जनगणना अनुसार सभी योग्य बी.पी.एल. परिवारों को लाभान्वित करने में 20 वर्षों से अधिक समय लग जाऐगा।
गहलोत ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान मे रखते हुए बी.पी.एल. परिवारों को लाभान्वित करने का दायरा बढाने की महती आवश्यकता है और यह कार्य मात्रा महात्मा गांधी नरेगा अधिनियम, 2005 की अनूसूची 1 के आइटम क्रमांक एक बी की श्रेणी चतुर्थ के अन्तर्गत बी.पी.एल. परिवारों के लिये ग्रामीण आवासों को अनुमत गतिविधि बनाये जाने से ही हो पायेगा।
उन्होने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा के श्रम व सामग्री अनुपात के मापदण्ड 60ः40 के विपरीत यद्यपि ग्रामीण आवास के लिए श्रम सामग्री अनुपात लगभग 20ः80 है। गहलोत ने सुक्षाव दिया कि महात्मा गांधी नरेगा के 60ः40 अनुपात को पंचायत स्तर पर संधारित किये जाने के दृष्टिगत इस गतिविधि को महात्मा गांधी नरेगा अन्तर्गत सम्मिलित किया जाना संभव हो सकता है बशर्ते पंचायत स्तर पर सभी कार्यों के लिए 60ः40 का अनुपात संधारित किया जा सके।
उन्होने राय दी कि किसी भी स्थिति में, किन्हीं भी कारणों से यदि सामग्री की राशि महात्मा गांधी नरेगा के अन्तर्गत देय अधिकतम सीमा से अधिक हो जाती है तो राज्य सरकार सामग्री मद के अन्तर्गत बढी हुई राशि को अपने स्वयं के संसाधनों से वहन करेगी ।
गहलोत ने प्रधानमंत्री को बताया कि वर्ष 2002-03 के भीषण सूखे व अकाल के समय उनकी सरकार राहत कार्यों के साथ व्यक्तिगत लाभार्थियों के कार्यों को सम्बद्ध करने का प्रयोग सफलतापूर्वक कर चुकी है जिसके परिणाम अत्यंत अच्छे रहे थे एवं लाभार्थियों को भी व्यापक संतोष प्राप्त हुआ था अतः बी.पी.एल. परिवारों के लिए ग्रामीण आवास योजना को महात्मा गांधी नरेगा के अन्तर्गत अनुमत कार्यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिये।
मुख्यमंत्री गहलोत ने राजस्थान में पीने के पानी के संकट को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री से राजस्थान को विशेष पैकेज के रूप में प्रति वर्ष तीन हजार करोड़ रूपये की अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया। गहलोत ने प्रधानमंत्री को बताया कि राज्य के 1 लाख 21 हजार बस्तियों में से 34 हजार बस्तियां पानी की खराब गुणवत्ता से प्रभावित है।
राज्य में पीने के पानी की इस विषमता के दूरगामी व स्थाई समाधान के लिए सतही स्त्रोतों से पाईपलाईन के नेटवर्क द्वारा कई शहर व ग्राम/ढ़ाणियों को एक साथ पानी उपलब्ध कराने की क्रियान्विती की जा रही ह। चूंकि राज्य में सतही स्त्रोत बहुत ही सीमित है और पानी औसतन 200 मीटर दूरी से लाना होता है।
उन्होंने बताया कि राज्य के कुल खारे पानी की समस्या से प्रभावित वस्तियों की 90 प्र.श. बस्तियों प्रदेश के पश्चिमी भाग के पांच जिलों बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर, भरतपुर में है। इन जिलों में पानी के सतही स्त्रोत की दूरी अधिक होने से योजनाओं की लागत अत्याधिक आती है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य में वर्तमान में चल रहे वृहद् जलप्रदाय योजनाओं के पूर्ण कार्य के लिए करीब दस हजार करोड़ रूपये की आवश्यकता है एवं सभी खराब गुणवत्ता से प्रभावित तथा पेयजल की कमी से प्रभावित 34 हजार हेबीटेशंस को लाभांवित करने के लिए 37 हजार करोड़ रूपये की आवश्यकता है।
त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) की 90 प्रतिशत राशि भारत सरकार से उपलब्ध करवाये
गहलोत ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि राज्य के मरू क्षेत्रा विकास परियोजना (डी.डी.पी.) के अंतर्गत चल रही त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (ए.आई.बी.पी.) के लिए डी.पी.ए.पी. की तरह भारत सरकार से 90 प्रतिशत राशि उपलब्ध करवाई जाए। उन्होंने बताया कि वर्तमान में एआईबीपी के अन्तर्गत भारत सरकार से डीडीपी में फंडिंग 90 एवं 10 के अनुपात से नहीं कराई जा रही है। उन्होंने बताया कि डीपीएपी में 90 प्रतिशत और 10 प्रतिशत अनुपात से कराई जा रही है जबकि राजस्थान का ज्यादातर हिस्सा डीडीपी के अन्तर्गत आता है और वर्षा का औसत भी बहुत कम है। अतः प्रदेश के डीडीपी क्षेत्रों में भी डीपीएपी के समान फंडिंग पैटर्न पर राशि उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
उन्होंने बताया कि इन्दिरा गांधी फीडर पंजाब क्षेत्रा में आर.डी. 0 से आर.डी. 496 तक है तथा उसकी मरम्मत का तखमीना राशि रूपये 952.10 करोड़ स्वीकृत हुआ है। उसके लिए एआईबीपी योजना के अन्तर्गत स्वीकृति प्रदान की गई है। जिसमें 90 प्रतिशत एआईबीपी एवं 10 प्रतिशत राशि राज्य सरकार की है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वे अपने स्तर पर पंजाब राज्य को इस कार्य को शीघ्र प्रारम्भ करने हेतु निर्देशित करे।
इसी प्रकार इन्दिरा गांधी फीडर की आर.डी. 496 से 671 एवं इन्दिरा गांधी नहर की आर.डी. 0 से आर.डी. 200 का तखमीना रूपये 401.63 करोड़ का स्वीकृत किया गया है जिसकी फंडिंग एआईबीपी से होनी है। गहलोत ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि इस परियोजना की फंडिंग भी एआईबीपी से 90 प्रतिशत भारत सरकार व 10 प्रतिशत राज्य का हिस्सा के अन्तर्गत करवाए क्योंकि इस परियोजना से राजस्थान के 8 जिलों में सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध करवाया जाता है एवं 16.17 लाख हैक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अतिरिक्त इन जिलों में पेयजल हेतु भी इस परियोजना से जल उपलब्ध करवाया जाता है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रधानमंत्री को बताया कि प्रदेश के जैसलमेर एवं बाड़मेर जिलों में सोलर-एनर्जी का हब बनाया जा रहा है जिसके लिए पानी की आवश्यकता होगी। इस हब हेतु पानी का स्त्रोत सिर्फ इन्दिरा गांधी नहर परियोजना ही है। किसानों का पानी काटकर इस सोलर एनर्जी हब का नही दिया जा सकता। उन्होंने राय दी कि यदि प्रस्तावित परियोजना को एआईबीपी से फंडिंग किया जाता है तो परियोजना शीघ्र सम्पादित होगी और नहरों में हो रहे नुकसान को कम कर पानी की बचत की जा सकती है जिससे सोलर एनर्जी हब के लिए पानी उपलब्ध कराया जा सकता है।
जनप्रतिनिधियों के मानदेय पर संविदा कर्मियों को आपत्ति
Posted On at by NREGA RAJASTHANजनप्रतिनिधियों के मानदेय पर संविदा कर्मियों को आपत्ति
मनरेगा के प्रशासनिक मद की राशि से जनप्रतिनिधियों को मानदेय दिए जाने के कारण संविदा कार्मिकों में रोष है। महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ द्वारा आठ जून से प्रस्तावित हड़ताल में यह भी प्रमुख बिंदु है। कार्मिकों के मुताबिक जनप्रतिनिधियों को मानदेय के रूप में दी जाने वाली राशि काफी अधिक है और कार्मिकों का मानदेय कम रहने का यह भी एक बड़ा कारण है।
करोड़ों रुपए बैठता है मानदेय : राज्य सरकार ने अक्टूबर 2009 में अध्यादेश जारी करके जनप्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी की थी। मानदेय में की गई बढ़ोतरी का भुगतान मनरेगा के प्रशासनिक बजट से करने के भी निर्देश जारी हुए। अध्यादेश के मुताबिक जिला प्रमुख का मानदेय 51 सौ से बढ़ाकर 75 सौ, पंचायत समिति प्रधान का 31 सौ से पांच हजार और सरपंच का मानदेय एक हजार से तीन हजार रुपए करने का निर्णय लिया। बढ़ी हुई राशि का बोझ मनरेगा के बजट पर पड़ा। संविदा कार्मिकों के मुताबिक इस कारण मनरेगा पर करीब एक करोड़ नब्बे लाख रुपए प्रति माह का बोझ पड़ रहा है। इसके अलावा बैठक भत्ते में की गई बढ़ोतरी की राशि भी करीब पांच लाख प्रति माह बैठती है।
इसलिए है आपत्ति : संविदा कर्मियों का कहना है कि मरेगा के प्रशासनिक मद में छह प्रतिशत राशि खर्च की जाती है। इसका बड़ा हिस्सा जनप्रतिनिधियों के मानदेय में चला जाता है। इस कारण संविदा कर्मियों के मानदेय में वृद्धि नहीं हो रही है। उधर, मध्यप्रदेश में मनरेगा के संविदा कर्मियों को छठे वेतन आयोग का लाभ दिया गया है। इसके चलते कार्मिकों का मानदेय डेढ़ से दो गुणा हो गया है। संविदा कर्मियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि मनरेगा के अलावा स्थानीय निकाय के अन्य काम भी देखते हैं। ऐसे में मनरेगा के बजट को उनके मानदेय के लिए उपयोग करना उचित नहीं है।
Source - dainikbhaskar.com
मनरेगा के प्रशासनिक मद की राशि से जनप्रतिनिधियों को मानदेय दिए जाने के कारण संविदा कार्मिकों में रोष है। महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ द्वारा आठ जून से प्रस्तावित हड़ताल में यह भी प्रमुख बिंदु है। कार्मिकों के मुताबिक जनप्रतिनिधियों को मानदेय के रूप में दी जाने वाली राशि काफी अधिक है और कार्मिकों का मानदेय कम रहने का यह भी एक बड़ा कारण है।
करोड़ों रुपए बैठता है मानदेय : राज्य सरकार ने अक्टूबर 2009 में अध्यादेश जारी करके जनप्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी की थी। मानदेय में की गई बढ़ोतरी का भुगतान मनरेगा के प्रशासनिक बजट से करने के भी निर्देश जारी हुए। अध्यादेश के मुताबिक जिला प्रमुख का मानदेय 51 सौ से बढ़ाकर 75 सौ, पंचायत समिति प्रधान का 31 सौ से पांच हजार और सरपंच का मानदेय एक हजार से तीन हजार रुपए करने का निर्णय लिया। बढ़ी हुई राशि का बोझ मनरेगा के बजट पर पड़ा। संविदा कार्मिकों के मुताबिक इस कारण मनरेगा पर करीब एक करोड़ नब्बे लाख रुपए प्रति माह का बोझ पड़ रहा है। इसके अलावा बैठक भत्ते में की गई बढ़ोतरी की राशि भी करीब पांच लाख प्रति माह बैठती है।
इसलिए है आपत्ति : संविदा कर्मियों का कहना है कि मरेगा के प्रशासनिक मद में छह प्रतिशत राशि खर्च की जाती है। इसका बड़ा हिस्सा जनप्रतिनिधियों के मानदेय में चला जाता है। इस कारण संविदा कर्मियों के मानदेय में वृद्धि नहीं हो रही है। उधर, मध्यप्रदेश में मनरेगा के संविदा कर्मियों को छठे वेतन आयोग का लाभ दिया गया है। इसके चलते कार्मिकों का मानदेय डेढ़ से दो गुणा हो गया है। संविदा कर्मियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि मनरेगा के अलावा स्थानीय निकाय के अन्य काम भी देखते हैं। ऐसे में मनरेगा के बजट को उनके मानदेय के लिए उपयोग करना उचित नहीं है।
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फिर हड़ताल पर जाने की तैयारी
Posted On at by NREGA RAJASTHANहनुमानगढ़ || मानदेय में बढ़ोतरी व स्थाई करने संबंधी अन्य मांगों को लेकर महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ के सदस्य आठ जून से एक बार फिर हड़ताल पर जाने की तैयारी में हैं। संविदा कर्मियों का आरोप है कि फरवरी में आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने संघ के साथ हुए समझौते की पालना नहीं की। मानदेय नहीं बढऩे से उनमें रोष है। इसके अलावा नौ जनवरी 2007 के प्रपत्र को निरस्त करने से भी कार्मिक असमंजस में हैं। संविदा कार्मिकों का कहना है कि इस प्रपत्र के निरस्त होने के बाद उन्हें यह भी पता नहीं है कि वे किस प्रपत्र के नियमों के आधार पर काम कर रहे हैं। अपनी शंकाओं और मांगों को लेकर संविदा कार्मिकों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन एसीईओ को दिया।
Source : bhaskar.com
आठ जून से एक बार फिर हड़ताल पर-नरेगा संविदा कार्मिक
Posted On at by NREGA RAJASTHANमानदेय में बढ़ोतरी व स्थाई करने संबंधी अन्य मांगों को लेकर महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ के सदस्य आठ जून से एक बार फिर हड़ताल पर जाने की तैयारी में हैं। संविदा कर्मियों का आरोप है कि फरवरी में आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने संघ के साथ हुए समझौते की पालना नहीं की। मानदेय नहीं बढऩे से उनमें रोष है। इसके अलावा नौ जनवरी 2007 के प्रपत्र को निरस्त करने से भी कार्मिक असमंजस में हैं। संविदा कार्मिकों का कहना है कि इस प्रपत्र के निरस्त होने के बाद उन्हें यह भी पता नहीं है कि वे किस प्रपत्र के नियमों के आधार पर काम कर रहे हैं। अपनी शंकाओं और मांगों को लेकर संविदा कार्मिकों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन एसीईओ को दिया।
आंदोलन के सिवाय रास्ता नहीं : राजस्थान महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ के जिलाध्यक्ष ने बताया कि राज्य सरकार ने 30 अप्रैल तक कार्मिकों की मांगों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया था लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया। सरकार की वादाखिलाफी के बाद अब कार्मिकों के पास आंदोलन के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है। उन्होंने बताया कि आठ जून से सभी संविदा कार्मिकों ने सामूहिक अवकाश पर जाने का निर्णय लिया है।
आंदोलन के सिवाय रास्ता नहीं : राजस्थान महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ के जिलाध्यक्ष ने बताया कि राज्य सरकार ने 30 अप्रैल तक कार्मिकों की मांगों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया था लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया। सरकार की वादाखिलाफी के बाद अब कार्मिकों के पास आंदोलन के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है। उन्होंने बताया कि आठ जून से सभी संविदा कार्मिकों ने सामूहिक अवकाश पर जाने का निर्णय लिया है।