जनप्रतिनिधियों के मानदेय पर संविदा कर्मियों को आपत्ति
Posted On at by NREGA RAJASTHANजनप्रतिनिधियों के मानदेय पर संविदा कर्मियों को आपत्ति
मनरेगा के प्रशासनिक मद की राशि से जनप्रतिनिधियों को मानदेय दिए जाने के कारण संविदा कार्मिकों में रोष है। महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ द्वारा आठ जून से प्रस्तावित हड़ताल में यह भी प्रमुख बिंदु है। कार्मिकों के मुताबिक जनप्रतिनिधियों को मानदेय के रूप में दी जाने वाली राशि काफी अधिक है और कार्मिकों का मानदेय कम रहने का यह भी एक बड़ा कारण है।
करोड़ों रुपए बैठता है मानदेय : राज्य सरकार ने अक्टूबर 2009 में अध्यादेश जारी करके जनप्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी की थी। मानदेय में की गई बढ़ोतरी का भुगतान मनरेगा के प्रशासनिक बजट से करने के भी निर्देश जारी हुए। अध्यादेश के मुताबिक जिला प्रमुख का मानदेय 51 सौ से बढ़ाकर 75 सौ, पंचायत समिति प्रधान का 31 सौ से पांच हजार और सरपंच का मानदेय एक हजार से तीन हजार रुपए करने का निर्णय लिया। बढ़ी हुई राशि का बोझ मनरेगा के बजट पर पड़ा। संविदा कार्मिकों के मुताबिक इस कारण मनरेगा पर करीब एक करोड़ नब्बे लाख रुपए प्रति माह का बोझ पड़ रहा है। इसके अलावा बैठक भत्ते में की गई बढ़ोतरी की राशि भी करीब पांच लाख प्रति माह बैठती है।
इसलिए है आपत्ति : संविदा कर्मियों का कहना है कि मरेगा के प्रशासनिक मद में छह प्रतिशत राशि खर्च की जाती है। इसका बड़ा हिस्सा जनप्रतिनिधियों के मानदेय में चला जाता है। इस कारण संविदा कर्मियों के मानदेय में वृद्धि नहीं हो रही है। उधर, मध्यप्रदेश में मनरेगा के संविदा कर्मियों को छठे वेतन आयोग का लाभ दिया गया है। इसके चलते कार्मिकों का मानदेय डेढ़ से दो गुणा हो गया है। संविदा कर्मियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि मनरेगा के अलावा स्थानीय निकाय के अन्य काम भी देखते हैं। ऐसे में मनरेगा के बजट को उनके मानदेय के लिए उपयोग करना उचित नहीं है।
Source - dainikbhaskar.com
मनरेगा के प्रशासनिक मद की राशि से जनप्रतिनिधियों को मानदेय दिए जाने के कारण संविदा कार्मिकों में रोष है। महात्मा गांधी नरेगा संविदा कार्मिक संघ द्वारा आठ जून से प्रस्तावित हड़ताल में यह भी प्रमुख बिंदु है। कार्मिकों के मुताबिक जनप्रतिनिधियों को मानदेय के रूप में दी जाने वाली राशि काफी अधिक है और कार्मिकों का मानदेय कम रहने का यह भी एक बड़ा कारण है।
करोड़ों रुपए बैठता है मानदेय : राज्य सरकार ने अक्टूबर 2009 में अध्यादेश जारी करके जनप्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी की थी। मानदेय में की गई बढ़ोतरी का भुगतान मनरेगा के प्रशासनिक बजट से करने के भी निर्देश जारी हुए। अध्यादेश के मुताबिक जिला प्रमुख का मानदेय 51 सौ से बढ़ाकर 75 सौ, पंचायत समिति प्रधान का 31 सौ से पांच हजार और सरपंच का मानदेय एक हजार से तीन हजार रुपए करने का निर्णय लिया। बढ़ी हुई राशि का बोझ मनरेगा के बजट पर पड़ा। संविदा कार्मिकों के मुताबिक इस कारण मनरेगा पर करीब एक करोड़ नब्बे लाख रुपए प्रति माह का बोझ पड़ रहा है। इसके अलावा बैठक भत्ते में की गई बढ़ोतरी की राशि भी करीब पांच लाख प्रति माह बैठती है।
इसलिए है आपत्ति : संविदा कर्मियों का कहना है कि मरेगा के प्रशासनिक मद में छह प्रतिशत राशि खर्च की जाती है। इसका बड़ा हिस्सा जनप्रतिनिधियों के मानदेय में चला जाता है। इस कारण संविदा कर्मियों के मानदेय में वृद्धि नहीं हो रही है। उधर, मध्यप्रदेश में मनरेगा के संविदा कर्मियों को छठे वेतन आयोग का लाभ दिया गया है। इसके चलते कार्मिकों का मानदेय डेढ़ से दो गुणा हो गया है। संविदा कर्मियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि मनरेगा के अलावा स्थानीय निकाय के अन्य काम भी देखते हैं। ऐसे में मनरेगा के बजट को उनके मानदेय के लिए उपयोग करना उचित नहीं है।
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