++नरेगा यानी लूट की छूट
Posted On at by NREGA RAJASTHAN राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी नरेगा का मतलब अगर पता करना हो तो आपको झारखंड के लातेहार जिले में जाना चाहिए. आप चाहें तो पलामू भी घूम सकते हैं और गढ़वा भी और...! सच तो ये है कि आप अपनी सुविधा से झारखंड के किसी भी इलाके में नरेगा का हाल जान सकते हैं, जिसके बारे में अब एक जुमला बहुत मशहूर हो चुका है- “नरेगा जो करेगा, सो मरेगा.” अस्पताल में तापस सोरेन आंकड़ों के खेल को छोड़कर अगर हकीकत की ओर जायेंगे तो स्थिति और भी शर्मनाक है. राज्य में मजदूरी भी एक तरह की नहीं है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मजदूरी जिला स्तर पर निर्धारित हो रही है जो 78.39 रूपये से लेकर 114.62 रूपये तक है. नरेगा में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कठोर कानून बनाना चाहिए, जिसमें अपराधियों को सजा के रूप में जेल और सरकारी खजाने से लूटे गये पैसे का दस गुना वापसी का प्रावधान रखा जाना चाहिए. नरेगा के काम प्रखण्ड कार्यालय के जिम्मे से निकाल कर इसकी जिम्मेवारी पारंपरिक ग्राम सभाओं को अगर दिया जाये तो इससे प्रखंड कार्यालयों में चल रही लूट और रिश्वत का धंधा भी खत्म होगा. जॉब कार्ड निर्गत, मस्टर रोल तैयार करना, योजना का चयन, कार्यान्वयन एवं मूल्यांकन का पूर्ण अधिकार ग्राम सभा को हो.ग्लैडसन डुंगडुंग, रांची से
इसमें सबसे ज्यादा हजारीबाग जिले में 114.62 रूपये एवं गुमला जिले में सबसे कम 78.39 रूपये दिये जा रहे हैं. महिला-पुरूष के बीच मजदूरी को लेकर भेदभाव भी बरकरार है. कई जिलों में महिलाओं को पुरूषों से कम मजदूरी दी जा रही है. लेकिन हद तब हो जाती है जब पोस्ट ऑफिस या बैंकों द्वारा भुगतान करने के बावजूद मजदूरों की कमाई को ठेकेदार और बिचौलिये हड़प लेते हैं. जॉब कार्ड एवं मस्टर रोल में गलत आंकड़े भरे जाते हैं तथा काम भी ठीक ढ़ंग से पूरा नहीं किया जाता है.
लगभग पूरे राज्य में नरेगा के कामों में रिश्वत की राशी तय है और सारा खेल बेशर्मी के साथ चल रहा है. नरेगा के अन्तर्गत चलने वाली प्रत्येक योजना में सरकारी पदाधिकारियों का हिस्सा (प्रतिशत में) बंटा हुआ है. इसमें 4 प्रतिशत पंचायत सेवक, 5 प्रतिशत बीडीओ, 5 प्रतिशत जेई और उपर के पदाधिकारियों का हिस्सा है सो अलग.
दूसरी लूट मजदूरी को लेकर है. काम के एवज में मजदूरों को कम पैसा दिया जाता है लेकिन मस्टर रोल एवं जॉब कार्ड में उचित मजदूरी दर्शायी जाती है. इसी तरह कार्य दिवस को लेकर भी भारी गड़बड़ी होती है. मजदूरी कम दिनों का भुगतान किया जाता है लेकिन मस्टर रोल एवं जॉब कार्ड में कार्य दिवस ज्यादा दर्शाया जाता है. इस तरह से मजदूरों का पैसा ठेकेदारों एवं बिचौलियों के जेब में चला जाता है. इतना ही नहीं जॉब कार्ड बनाने के नाम पर भी मजदूरों से पैसा वसूला जाता है. यानी नरेगा के हर मोड़ पर लूट का चेक पोस्ट लगा हुआ है.
अफसोसजनक यह है कि नरेगा लूट के बारे में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी को पता है लेकिन लूट लगातार और चरम पर जारी है.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन कहते हैं कि नरेगा बिचौलियों के चंगुल में है. इधर झारखण्ड के राज्यपाल के.एस. नारायणन भी नरेगा को लेकर कई तरह के प्रश्न खड़े कर चुके हैं. श्री नारायणन तो जिले के कलेक्टर यानी उपायुक्तों की क्लास भी लेते रहे हैं. राज्यपाल के सलाहकार जी. कृष्णन ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा है कि नरेगा योजना को लागू करने में सबसे भ्रष्ट जेई हैं तथा बीडीओ उनसे भी भ्रष्ट हैं और इन्हें ग्राम सभा पर भरोसा नहीं है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि नरेगा लूट को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय क्यों नहीं किया जा रहा है? क्या नरेगा लूट का रोना रोने से ही सबकुछ ठीक हो जायेगा? क्या इस लूट के लिए सिर्फ निचले स्तर के सरकारी पदाधिकारी जिम्मेवार है?
यद्यपि नरेगा के तहत ग्रामसभा एवं पंचायतों को कई अधिकार दिये गये हैं लेकिन झारखण्ड में इसे जानबूझकर लागू नहीं किया जाता है. सरकारी पदाधिकारी नरेगा लूट को जारी रखना चाहते हैं, इसलिए पारंपरिक ग्रामसभाओं को मान्यता ही नहीं दे रहे हैं.
रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे क्रियावादियों और समाजसेवियों का मानना है कि इसके नरेगा में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कठोर कानून बनाना चाहिए, जिसमें अपराधियों को सजा के रूप में जेल और सरकारी खजाने से लूटे गये पैसे का दस गुना वापसी का प्रावधान रखा जाना चाहिए. ऐसे मामलों के समयबद्ध तरीके से त्वरित निष्पादन के लिए एक विशेष न्यायालय की व्यवस्था की जानी चाहिए. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हमारे जनप्रतिनिधि इसके लिए तैयार होंगे ? आखिर राज्य में लूट संस्कृति तो उनकी ही देन है.