नरेगा-2 शुरू करने के पूर्व पुनर्विचार करे सरकार
नागपुर. नागपुर चेंबर ऑफ कामर्स (एनसीसीएल) ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख व नियंत्रक व लेखा परिक्षक जनरल विनोद राय से नागपुर चेंबर ऑफ कामर्स (एनसीसीएल) ने अपील की है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा-2) शुरू करने से पहले इस पर पुनर्विचार किया जाए।
चेंबर ने मांग की है कि केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के तहत रु. 1,00,000 करोड़ से भी अधिक राशि का आवंटन किया गया है। यह राशि जरूरतमंदों तक पहुंच पाती है या नहीं, इसकी व्यापक जांच की जानी चाहिए।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सरकार ने स्वीकार किया है कि नरेगा के तहत राज्यों को फरवरी 2006 से आवंटित रु. 1.08 लाख करोड़ का खाता अंकेक्षण किसी भी स्तर पर नहीं किया गया है। जब नियंत्रक व लेखा विभाग की ओर से नरेगा के अंतर्गत आने वाले 625 में से नमूने के तौर पर 68 जिलों के अंकेक्षण किए गए तो उनमें रु. 88 करोड़ की विसंगतियां पाई गईं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जब तक समुचित पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित नहीं करेंगे तो पूरी योजना ही खतरे में पड़ जाएगी और बगैर बंटे इस पैसे के जरूरतमंदों तक पहुंचने के प्रति गंभीर संदेह भी, अदालत ने जताया।
हाल ही में, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को नए स्तर पर लाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सरकार के द्वितीय नरेगा योजना की घोषणा की है। नरेगा के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार से एक व्यक्ति को रोजगार देने का वादा किया गया है, जिससे गांवों में शहरों में जाकर काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों में कमी आयी है।
इसी तरह शहरों में काम कर रहे मजदूर बुआई के समय गांव जाने पर, नरेगा के मार्फत पर्याप्त रोजगार मिलने की वजह से वे शहर नहीं लौटते, जिससे शहर में मजदूरों की कमी होती है, इससे निर्माण व उद्योग क्षेत्र में लागत बढ़ रही है।
चेंबर के अध्यक्ष जे.पी. शर्मा व सचिव तेजिंदर सिंह रेणु ने सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि नरेगा-1, जो कि पहले से ही धन गबन, विसंगतियों से विवादों में फंसी है, के बावजूद नरेगा-2 शुरू करने से पहले इस योजना पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
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चेंबर ने मांग की है कि केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के तहत रु. 1,00,000 करोड़ से भी अधिक राशि का आवंटन किया गया है। यह राशि जरूरतमंदों तक पहुंच पाती है या नहीं, इसकी व्यापक जांच की जानी चाहिए।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सरकार ने स्वीकार किया है कि नरेगा के तहत राज्यों को फरवरी 2006 से आवंटित रु. 1.08 लाख करोड़ का खाता अंकेक्षण किसी भी स्तर पर नहीं किया गया है। जब नियंत्रक व लेखा विभाग की ओर से नरेगा के अंतर्गत आने वाले 625 में से नमूने के तौर पर 68 जिलों के अंकेक्षण किए गए तो उनमें रु. 88 करोड़ की विसंगतियां पाई गईं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जब तक समुचित पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित नहीं करेंगे तो पूरी योजना ही खतरे में पड़ जाएगी और बगैर बंटे इस पैसे के जरूरतमंदों तक पहुंचने के प्रति गंभीर संदेह भी, अदालत ने जताया।
हाल ही में, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को नए स्तर पर लाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सरकार के द्वितीय नरेगा योजना की घोषणा की है। नरेगा के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार से एक व्यक्ति को रोजगार देने का वादा किया गया है, जिससे गांवों में शहरों में जाकर काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों में कमी आयी है।
इसी तरह शहरों में काम कर रहे मजदूर बुआई के समय गांव जाने पर, नरेगा के मार्फत पर्याप्त रोजगार मिलने की वजह से वे शहर नहीं लौटते, जिससे शहर में मजदूरों की कमी होती है, इससे निर्माण व उद्योग क्षेत्र में लागत बढ़ रही है।
चेंबर के अध्यक्ष जे.पी. शर्मा व सचिव तेजिंदर सिंह रेणु ने सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि नरेगा-1, जो कि पहले से ही धन गबन, विसंगतियों से विवादों में फंसी है, के बावजूद नरेगा-2 शुरू करने से पहले इस योजना पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
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