महानरेगा कार्मियों के नए अनुबंध आदेश पर रोक
Posted On at by NREGA RAJASTHANसरकार द्वारा महानरेगा कर्मचारियों के हितों के विरूद्व नया अनुबंध किया गया था इससे यह प्रतीत होता है कि सरकार को महानरेगा कर्मचारियों के हितों की कोई परवाह नहीं थी सरकार की मन्शा शायद कार्मिकों का शोषण करना ही थी जो की हाईकोर्ट के इस आदेश से समझा जा सकता हैं जो कर्मिकों के पक्ष में है
जय हिन्द……………
nreganews
Posted On at by NREGA RAJASTHAN
कर्मियों ने दिया हड़ताल का अल्टीमेटम
हरियाणा रोडवेज कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से सोनीपत डिपो में गेट मीटिंग की गई। इसमें यूनियन नेताओं ने मांगों को लेकर कोई समाधान न होने पर 26 नवंबर से हड़ताल पर जाने एवं चक्का जाम का...
कर्मचारियों ने किया विरोध प्रदर्शन
www.nreganews.tk
सौ. http://othentics.in
मनरेगा को लागू हुए चार साल से अधिक होने जा रहे है मगर इसके क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े होते ही रहे हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट भी इसमें गड़बडियों की शिकायतों को लेकर गंभीर है। यही वजह है कि इस योजना पर निगाह रखने के लिए एक नोडल एजेंसी बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। कोर्ट ने यह निर्देश एक गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी द्वारा 2007 में दायर एक याचिका पर दिया है। जिसमें कहा गया था कि अधिकतर राज्यों में नरेगा कार्यक्रम ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है।
इस योजना के अन्तर्गत देश के करीब 4.5 करोड़ गरीब एवं बेरोजगार परिवार को सलाना 10,000 रुपये की आमदनी की व्यवस्था है जो निश्चित ही सराहनीय है। मगर इसके लागू होने के साथ ही प्रश्न उठने लगे थे कि गरीबों को साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से शुरू इस योजना का लाभ वांछित मिल भी पा रहा है या नहीं। इस कानून का लक्ष्य हर वित्तीय साल में प्रत्येक गरीब परिवार के वयस्क को कम से कम सौ दिन के रोजगार सृजन वाला गैर-हुनर का काम मुहैया करना है। यानी नरेगा का उद्देश्य हर-हाथ को काम और काम का पूरा दाम दो।
सरकार द्वारा इस योजना पर भरोसा जताते हुए 2009-10 में 39,100 करोड़ रुपए का इंतजाम किया गया था जो पिछले बजट के मुकाबले 144 प्रतिशत अधिक था। चालू वर्ष में इस मद को बढ़कर 2010-11 में 40,100 करोड़ रुपये किया गया है। ऐसे में मौजूदा सवाल यह है कि क्या इस आवंटन का सही उपयोग सरकार कर रही है। क्योंकि इस योजना को लेकर कुछ आशंकाएं अभी भी बरकरार हैं। निश्चित ही, नरेगा के चार साल से अध्कि की यात्रा इसके लिए बहुत उतार-चढ़ाव वाली रही।
अक्सर इसके क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। इतना ही नहीं, अब तक सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के मुताबिक नरेगा को लेकर जो अध्ययन और सर्वेक्षण हुए हैं, उनमें कई खामियां मिली है। मसलन कहीं जॉब कार्ड बन जाने पर भी काम न मिलने की शिकायत है तो कहीं पूरे सौ दिन काम न मिलने की और कहीं हाजिरी रजिस्टर में हेराफेरी की। इसके अतिरिक्त कागजों में फर्जी मस्टर रोल, फर्जी मशीनों का उपयोग दिखाकर बिल भी फर्जी बनाये जाने के मामले सामने आए है।
मतलब यह योजना आज भी कई सारी कमजोरियों का शिकार है। नए अध्ययनों का सार भी यही है कि इसमें भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। जबकि केन्द्र सरकार इस नाम पर अब तक करीब 95,000 करोड़ रुपये की विशाल राशि खर्च कर चुकी है। इस योजना में कहने के लिए सोशल ऑडिट की व्यवस्था है, मगर पारदर्शिता नहीं है। सोशल ऑडिट के नाम पर मात्र खानापूर्ति हो रही है।
वास्तव में गरीबों के लिए विकास के इतिहास में इससे पहले इतनी महत्वपूर्ण पहल नहीं की गई थी। लेकिन बीती अवधि में इसे अनेक प्रक्रियाजन्य समस्याओं से जूझना पड़ा। हालांकि नरेगा के मार्ग निर्देश काफी सटीक है। क्योंकि नरेगा अधिनियम की धारा 15 के तहत जिलाधीश की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सोशल ऑडिट कराए और वेबसाइट पर सूचना दे कि किन-किन लोगों को जॉब कार्ड दिए गए हैं, उन्हें कितना भुगतान हुआ है और यह उन तक पहुंचाया है या नहीं। फिर भी राजनीतिक पक्षपात व भ्रष्टाचार ने नरेगा कई राज्यों में गरीबों की उम्मीदों को ना उम्मीदों में बदलकर रख दिया।
योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार नरेगा लागू करने में सबसे फिसड्डी हैं। केवल राजस्थान, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हो रहा है। मध्यप्रदेश को छोड़कर बाकी राज्यों में पंजीकृत लोगों में मात्र 19 फीसद को ही रोजगार मिल पाया है। अत: आयोग ने नरेगा में फैले भ्रष्टाचार समेत दूसरी खामियां दूर करने और योजना की सख्ती से निगरानी के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण का सुझाव दिया है। प्रस्तावित प्राधिकरण का काम ऑडिट, समीक्षा का निपटारा और मानव संसाधन विकास की योजना बनाना होगा। इसके साथ ही, यूआईडी प्रणाली विकसित की जाएगी। जिससे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और मजदूरों को समय पर भुगतान मिलेगा।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी कहते हैं कि गांव स्तर पर मनरेगा अभी अकुशल हाथों से संचालित हो रही है। योजना की छह प्रतिशत राशि की व्यवस्था प्रशासनिक खर्चों के लिए है पर राज्य सरकारें इसके लिए अलग से कर्मचारियों की व्यवस्था नहीं कर पा रही हैं। इस कारण योजना के क्रियान्वयन में कठिनाइयां आ रही हैं। पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद भी मानते हैं कि यदि मनरेगा ठीक से लागू हो जाए तो देश का कायाकल्प निश्चित है पर अफसोस कि इस इसके प्रति अभी जागरूकता का घोर अभाव है। सांसद तक इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते हैं जबकि वे जिलास्तरीय निगरानी समिति के मुखिया होते हैं।
यह गंभीर चिंता का विषय है। सरकार कुछ ठोस व आधारभूत कदम उठाए ताकि गरीबों से किया गया वादा पूरा किया जा सके। नरेगा में तमाम गड़बड़ियों एवं भ्रष्टाचार दूर करने की जिम्मेदारी प्रत्येक राज्य सरकार एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
सौ. www.samaylive.com
MGNREGA NEWS, NREGA
Posted On at by NREGA RAJASTHAN
The Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA)
plz send MGnrega info
rajastha.nrega@gmail.com
MGNREGA employment news
Posted On at by NREGA RAJASTHANMGNRGA employment news
MGNREGA NEWS..
Posted On at by NREGA RAJASTHAN
by- dainikbhaskar.com
Only Nrega News Click
MGNREGA NEWS
Posted On at by NREGA RAJASTHAN19 नवम्बर 2010 को होगी महासंघ की मीटिंग
Posted On at by NREGA RAJASTHANSource-nregakcrisangh.hpage