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++मनरेगा का पैसा सही हाथों तक नहीं: कोर्ट

नई दिल्‍ली, 7 अप्रैल 2010
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ग्रामीण रोजगार परियोजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) उच्चतम न्यायालय के जांच के दायरे में आ गई है. न्यायालय ने आज कहा कि इस योजना के तहत लाभ के वास्तविक हकदारों तक धन नहीं पहुंच रहा है, बल्कि कई मामलों में यह धन गलत हाथों में जा रहा है.

प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बी एस चौहान की पीठ ने कहा, ‘‘कोई एकरूप नीति नहीं है. लाभ के वास्तविक हकदारों तक धन नहीं पहुंच रहा है.’’ मनरेगा को लागू किए जाने पर चिंता जताते हुए पीठ ने कहा कि योजना के तहत कई परियोजनाएं विफल हैं क्योंकि उसके लिए आवंटित धन का या तो उपयोग नहीं किया जा रहा है या कई मामलों में यह गलत हाथों में जा रहा है.

पीठ ने कहा, ‘‘धनों का वितरण हुआ है. लेकिन कई मामलों में यह गलत लोगों के हाथ में जा रहा है और लाभ के असली हकदारों तक धन नहीं पहुंच रहा है.’’ उसने कहा कि मनरेगा के तहत धन अनुग्रह राशि नहीं है क्योंकि गांवों में लोगों को आश्वस्त किया गया है कि यह धन उनके काम के बदले में है.

सीजेआई ने कहा कि सीएएमपीए (कंपनसेटरी एफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी) के तहत धन को गांवों को उसके विकास के लिए दिया गया है.
मनरेगा के उद्देश्यों पर जोर देते हुए पीठ ने कहा, ‘‘जमीनी स्तर पर वास्तव में कुछ विकास होना चाहिए.’’ इसकी सफलता के लिए सीजेआई ने विगत कुछ वर्षों में काफी दिलचस्पी ली है.

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, ‘‘सीजेआई ने खुद मनरेगा में काफी दिलचस्पी ली है और इसपर संगोष्ठी आयोजित करने के लिए पहल की है.’’ पीठ ने अधिवक्ता मयंक मिश्रा की तारीफ की जिन्होंने परियोजनाओं के लिए धन के कारगर इस्तेमाल के लिए कुछ सुझाव दिए. पीठ गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर द एन्वायरनमेंट एंड फूड सेक्युरिटी (सीईएफएस) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में अधिनियम के तहत आवंटित धन के उचित इस्तेमाल की मांग की गई थी.

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