सभी महानरेगा कार्मिकों से अनुरूध है कि वो अपना ईमेल पता निचे दिये गये बॉक्‍स में Subscribe करे जिससे महानरेगा की ताजा खबर आप तक Email से पहुच सकें.......Thanks नोट Active करने के लिए अपने ईमेल उकाउन्‍ट में जाकर Nrega News Subscribe mail link पर किल्‍क करें

Enter your Email Address & recived free new's "Just Enter E-mail"

nreganews




कर्मियों ने दिया हड़ताल का अल्टीमेटम

हरियाणा रोडवेज कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से सोनीपत डिपो में गेट मीटिंग की गई। इसमें यूनियन नेताओं ने मांगों को लेकर कोई समाधान न होने पर 26 नवंबर से हड़ताल पर जाने एवं चक्का जाम का...

कर्मचारियों ने किया विरोध प्रदर्शन




www.nreganews.tk

Posted in Labels: | 0 comments

संसद की एक समिति ने सुझाव दिया है कि फसलों के मौसम में मनरेगा के काम को रोक दिया जाना चाहिए ताकि श्रमिकों की कमी के कारण कृषि कार्य प्रभावित न हो। समिति का आकलन है कि मनरेगा के कारण खेती के लिए पर्याप्त मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि खेती में काम करने वालों को उतनी मजदूरी नहीं मिल रही है जितनी मनरेगा में काम करने वालों को। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि मनरेगा में सरकार द्वारा भी न्यूनतम मजदूरी ही निर्धारित है। हां, यह जरूर है कि ज्यादा काम करने वाला व्यक्ति मनरेगा में ज्यादा मजदूरी पा सकता है लेकिन खेती में नहीं। मनरेगा ने मजदूरों के पलायन को काफी हद तक रोका है, इसमें संदेह नहीं हैं। इससे पहले फसलों के मौसम में देश के अन्य हिस्सों से बड़ी संख्या में मजदूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब आदि की तरफ काम की तलाश में चले जाते थे, अब उन्हें अपने गांवों में ही कामचलाऊ काम मिल जाता है। नरेगा- जिसे अब मनरेगा नाम से जाना जाता है, के फरवरी 2006 में लागू होने के बाद से देखा गया कि उक्त राज्यों के बड़े किसानों को खासी असुविधा हुई तथा उन्हें श्रमिकों को सामान्य से दुगनी मजदूरी देनी पड़ी। देखा जाए तो मनरेगा ने न सिर्फ मजदूरों को उनके घर-परिवार के साथ रहने का अवसर दिया, बल्कि अधिक मजदूरी भी उपलब्ध कराई। यह उपलब्धियां मनरेगा की तमाम खामियों के बावजूद हैं। देश में कृषि जोतों का आकार लगातार घटता जा रहा है। राष्ट्रीय किसान आयोग की एक रपट के अनुसार देश के 66 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है और इस जमीन का भी बिक्री और बंटवारा होता रहता है। इस पर निर्भर रहने वाले किसान को प्राय: मजदूर की आवश्यकता नहीं पड़ती। वह परिवार के साथ मिलकर अपना काम कर लेता है। जोत छोटी होती जाने का परिणाम यह हुआ है कि 1980 में जहां 76 प्रतिशत लोग कृषि में समायोजित थे, वहीं 1994 में 65 प्रतिशत ही रह गए। अब यह प्रतिशत 50 के करीब होने का अनुमान है। दूसरी तरफ 2001 की जनगणना के के अनुसार श्रमिकों की संख्या लगभग 40.02 करोड़ है। नेशनल सैम्पल सर्वे तथा राधाकृष्णन आयोग (किसानों पर अध्ययन हेतु गठित) की रिपोर्टों का कहना है कि गांवों में जो आबादी रहती है, उसमें से 24 प्रतिशत के पास न कृषिभूमि है और न खेती का कार्य। यही लोग प्राय: काम की तलाश में पलायन करते थे जो काफी हद तक रूका बताया जा रहा है। ऐसे में किसे लाभ पहुंचाने की दृष्टि से मनरेगा का काम रोकने की सिफारिश की जा रही है? मनरेगा में पंजीकरण काम करने की बाध्यता नहीं है। जहां ज्यादा मजदूरी मिलती है, श्रमिक अपने आप वहां चला जाता है। एक इंजीनियर, डॉक्टर या वैज्ञानिक को तैयार करने में सरकार का लाखों रूपया खर्च होता है और इस प्रकार तैयार देश की प्रतिभाओं का लंबे अरसे से विदेशों को पलायन हो रहा है लेकिन आज तक किसी भी संसदीय समिति ने सिफारिश नहीं की कि इस पर रोक लगनी चाहिए? एक तरफ सरकार की नीति है कि पंचायत चुनाव नजदीक आ जाने या घोपित होने पर भी उनके बैंक खाते बंद न किए जाएं ताकि मनरेगा के अन्तर्गत श्रमिकों को निर्बाध काम मिलता रहे, दूसरी तरफ संसदीय समिति का सुझाव है कि फसली मौसम में मनरेगा का काम बंद कर दिया जाए ताकि किसानों को सस्ते मजदूर मिल जाएं। अफसोस की बात है कि जब भी खेती को लेकर नीति-निर्धारण किया जाता है तो किसान सिर्फ उनको माना जाता है जो सौ-दो सौ एकड़ जमीन के मालिक होते हैं। 66 प्रतिशत लघु व सीमान्त किसानों के हित अनदेखे कर दिए जाते हैं। मनरेगा के अंतर्गत काम की गुणवत्ता को लेकर जैसा हल्ला मच रहा है, उसमें क्या यह नहीं हो सकता कि इन श्रमिकों का उपयोग खेती में समायोजित कर उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने में किया जाए? वैसे भी आम किसान को लागत के अनुरूप लाभकारी मूल्य सरकार नहीं दे पा रही है। ऐसे में लागत कम कर किसानों को राहत दी जा सकती है। देश में जब कृपि-उपजों के दाम थोड़ा बढऩे लगते हैं और किसान को चार पैसे बचने की उम्मीद दिखती तो सरकार तुरंत या तो अपने गोदाम खोल देती है या महंगी दर पर उसे आयात करने लगती है। खाघान्न के अलावा अन्य जिंसों के दाम बढऩे पर सरकार ऐसी उतावली नहीं दिखाती। लोहा, सीमेन्ट आदि वस्तुओं के मामलों में यह देखा जा सकता है। देश के जिन हिस्सों में खेतिहर मजदूरों की कमी है, वहां उन्हें आकर्षित करने के उपाय बताए जाने चाहिए। बड़े किसान ज्यादा अर्जित करते हैं तो उन्हें खर्च भी ज्यादा करना चाहिए। किसी भी देश के लिए कृषि बाध्यकारी होती है। देश में उत्पादन घटने पर किस तरह समस्याएं खड़ी होती हैं यह हमने पहले दलहन-तिलहन फिर चीनी के मामले में देखा। एक सरकारी रपट के अनुसार खेती कर रहे लोगों में से 40 प्रतिशत लोग कोई विकल्प मिलने पर खेती छोड़ देना चाहते हैं। यह अच्छा संकेत नहीं है। सरकार बड़े किसानों का संरक्षण श्रमिकों का शोपण कर नहीं कर सकती। उसके पास धन और श्रमशक्ति दोनों हैं तो उसका उचित इस्तेमाल कर देश की रीढ़ समझे जाने वाले लघु-कृपि व श्रम-क्षेत्र को प्रोत्साहित कर सकती है। मनरेगा के धन का इस्तेमाल लघु व सीमान्त कृपि क्षेत्र में कार्य-अवसर उपलब्ध करा कर भी हो सकता है।

सौ. http://othentics.in

मनरेगा को लागू हुए चार साल से अधिक होने जा रहे है मगर इसके क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े होते ही रहे हैं।

अब सुप्रीम कोर्ट भी इसमें गड़बडियों की शिकायतों को लेकर गंभीर है। यही वजह है कि इस योजना पर निगाह रखने के लिए एक नोडल एजेंसी बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। कोर्ट ने यह निर्देश एक गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी द्वारा 2007 में दायर एक याचिका पर दिया है। जिसमें कहा गया था कि अधिकतर राज्यों में नरेगा कार्यक्रम ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है।

इस योजना के अन्तर्गत देश के करीब 4.5 करोड़ गरीब एवं बेरोजगार परिवार को सलाना 10,000 रुपये की आमदनी की व्यवस्था है जो निश्चित ही सराहनीय है। मगर इसके लागू होने के साथ ही प्रश्न उठने लगे थे कि गरीबों को साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से शुरू इस योजना का लाभ वांछित मिल भी पा रहा है या नहीं। इस कानून का लक्ष्य हर वित्तीय साल में प्रत्येक गरीब परिवार के वयस्क को कम से कम सौ दिन के रोजगार सृजन वाला गैर-हुनर का काम मुहैया करना है। यानी नरेगा का उद्देश्य हर-हाथ को काम और काम का पूरा दाम दो।

सरकार द्वारा इस योजना पर भरोसा जताते हुए 2009-10 में 39,100 करोड़ रुपए का इंतजाम किया गया था जो पिछले बजट के मुकाबले 144 प्रतिशत अधिक था। चालू वर्ष में इस मद को बढ़कर 2010-11 में 40,100 करोड़ रुपये किया गया है। ऐसे में मौजूदा सवाल यह है कि क्या इस आवंटन का सही उपयोग सरकार कर रही है। क्योंकि इस योजना को लेकर कुछ आशंकाएं अभी भी बरकरार हैं। निश्चित ही, नरेगा के चार साल से अध्कि की यात्रा इसके लिए बहुत उतार-चढ़ाव वाली रही।

अक्सर इसके क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। इतना ही नहीं, अब तक सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के मुताबिक नरेगा को लेकर जो अध्ययन और सर्वेक्षण हुए हैं, उनमें कई खामियां मिली है। मसलन कहीं जॉब कार्ड बन जाने पर भी काम न मिलने की शिकायत है तो कहीं पूरे सौ दिन काम न मिलने की और कहीं हाजिरी रजिस्टर में हेराफेरी की। इसके अतिरिक्त कागजों में फर्जी मस्टर रोल, फर्जी मशीनों का उपयोग दिखाकर बिल भी फर्जी बनाये जाने के मामले सामने आए है।

मतलब यह योजना आज भी कई सारी कमजोरियों का शिकार है। नए अध्ययनों का सार भी यही है कि इसमें भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। जबकि केन्द्र सरकार इस नाम पर अब तक करीब 95,000 करोड़ रुपये की विशाल राशि खर्च कर चुकी है। इस योजना में कहने के लिए सोशल ऑडिट की व्यवस्था है, मगर पारदर्शिता नहीं है। सोशल ऑडिट के नाम पर मात्र खानापूर्ति हो रही है।

वास्तव में गरीबों के लिए विकास के इतिहास में इससे पहले इतनी महत्वपूर्ण पहल नहीं की गई थी। लेकिन बीती अवधि में इसे अनेक प्रक्रियाजन्य समस्याओं से जूझना पड़ा। हालांकि नरेगा के मार्ग निर्देश काफी सटीक है। क्योंकि नरेगा अधिनियम की धारा 15 के तहत जिलाधीश की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सोशल ऑडिट कराए और वेबसाइट पर सूचना दे कि किन-किन लोगों को जॉब कार्ड दिए गए हैं, उन्हें कितना भुगतान हुआ है और यह उन तक पहुंचाया है या नहीं। फिर भी राजनीतिक पक्षपात व भ्रष्टाचार ने नरेगा कई राज्यों में गरीबों की उम्मीदों को ना उम्मीदों में बदलकर रख दिया।

योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार नरेगा लागू करने में सबसे फिसड्डी हैं। केवल राजस्थान, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हो रहा है। मध्यप्रदेश को छोड़कर बाकी राज्यों में पंजीकृत लोगों में मात्र 19 फीसद को ही रोजगार मिल पाया है। अत: आयोग ने नरेगा में फैले भ्रष्टाचार समेत दूसरी खामियां दूर करने और योजना की सख्ती से निगरानी के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण का सुझाव दिया है। प्रस्तावित प्राधिकरण का काम ऑडिट, समीक्षा का निपटारा और मानव संसाधन विकास की योजना बनाना होगा। इसके साथ ही, यूआईडी प्रणाली विकसित की जाएगी। जिससे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और मजदूरों को समय पर भुगतान मिलेगा।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी कहते हैं कि गांव स्तर पर मनरेगा अभी अकुशल हाथों से संचालित हो रही है। योजना की छह प्रतिशत राशि की व्यवस्था प्रशासनिक खर्चों के लिए है पर राज्य सरकारें इसके लिए अलग से कर्मचारियों की व्यवस्था नहीं कर पा रही हैं। इस कारण योजना के क्रियान्वयन में कठिनाइयां आ रही हैं। पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद भी मानते हैं कि यदि मनरेगा ठीक से लागू हो जाए तो देश का कायाकल्प निश्चित है पर अफसोस कि इस इसके प्रति अभी जागरूकता का घोर अभाव है। सांसद तक इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते हैं जबकि वे जिलास्तरीय निगरानी समिति के मुखिया होते हैं।

यह गंभीर चिंता का विषय है। सरकार कुछ ठोस व आधारभूत कदम उठाए ताकि गरीबों से किया गया वादा पूरा किया जा सके। नरेगा में तमाम गड़बड़ियों एवं भ्रष्टाचार दूर करने की जिम्मेदारी प्रत्येक राज्य सरकार एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।


सौ. www.samaylive.com

Subscribe Now:-

NREGA, MGNREGA, NREGA NEWS, NREGA, NREGA nrega, nrega rajasthan, nrega india, nrega rajasthan circulars, nrega india circulars, nrega rajasthan recruitment 2010, nregarecruitment, nrega vacancies, nrega rajasthan vacancies, nrega jobs, nrega news, nrega news in hindi, nrega hindi, nrega employees, nrega employees, nrega employment scheme, nrega employees salary, nrega employees association, nrega union rajasthan, nrega karmchari, NREGA labour association, nrega news rajasthan, nrega policy, nrega karmchari sangh, nrega information,mgnrega, mgnrega rajasthan, mgnrega india, mgnrega rajasthan circulars, mgnrega india circulars, mgnrega rajasthan recruitment 2010, mgnrega recruitment, mgnrega vacancies, mgnrega rajasthan vacancies, mgnrega jobs, mgnrega news, mgnrega news in hindi, mgnrega hindi, mgnrega employees, mgnrega employees, mgnrega employment scheme, mgnrega employees salary, mgnrega employees association, mgnrega union rajasthan, mgnrega karmchari, MGNREGA labour association, mgnrega news rajasthan, mgnrega policy, mgnrega karmchari sangh, mgnrega information