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परदेस में काम, नरेगा में दाम

परदेस में काम, नरेगा में दाम

भीलवाड़ा। उन्हें गांव छोड़े बरसों बीत गए। खुशी या गम या छुटि्यों पर ही गांव आते हैं। वे भीलवाड़ा में रहें या सूरत-मुम्बई में परिजनों ने इनके जॉब कार्ड बनवा रखे हैं और उनकी गैरमौजूदगी में उनके जॉब कार्ड पर नरेगा में मजदूरी धड़ल्ले से उठ रही है।
भीलवाड़ा जिले में हजारों लोग रोजगार की तलाश में जिले के शहरी क्षेत्र या गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में हैं। इन्हें नरेगा में श्रमिक बता मजदूरी उठाने की शिकायतें आम हैं। सामाजिक अंकेक्षण की ग्राम सभाएं हों या नरेगा संबंधी जनसुनवाई, ऎसे प्रकरण सामने आते ही जा रहे हैं।

पैसे की 'बंदरबांट'
गांव से बाहर रहने वाले कई लोगों के जॉब कार्ड में मजदूरी दर्शा पैसा उठाने का खेल चल रहा है। सरपंच, मेट और परिजनों की मिलीभगत से श्रमिक की मजदूरी राशि आपस में बांट ली जाती है। अधिकतर मामलों में सम्बन्धित लोग अनभिज्ञ रहते हैं।

सोशियल ऑडिट में खुलासा
भीलवाड़ा में गत वर्ष सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय के निर्देशन में चले विशेष सामाजिक अंकेक्षण अभियान में बाहर रहने वालों के नाम से जॉब कार्ड बनाकर मजदूरी का भुगतान उठाने का खुलासा हुआ। इसके बावजूद ठोस कदम नहीं उठाए गए।

जिम्मेदारी मेट की
गांव का निवासी कोई भी व्यक्ति जॉबकार्ड बनवा सकता है। जॉबकार्ड एवं मस्टररोल में फर्जी प्रविष्टि रोकना मेट की जिम्मेदारी है। किसी शिकायत की पुष्टि होने पर कार्रवाई करते हैं।
-शोभालाल मूंदड़ा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद

खूब फर्जीवाड़ा
परदेस में रहने वालों से जॉबकार्ड में मजदूरी करा राशि उठाने का फर्जीवाड़ा खूब हो रहा है। इसके बावजूद सरकार ठोस कार्रवाई से कतरा रही।
-कालूलाल गुर्जर, पूर्व मंत्री


केस-एक
नाम: राधाकिशन
जॉब कार्ड संख्या: 3030547-बी
स्थिति: मध्यप्रदेश के नीमच जिले में कारोबार एवं खेती कार्य में सक्रिय है। कभी-कभार रीछड़ा आते हैं। जॉब कार्ड में राधाकिशन और पत्नी सुन्दरदेवी को एक अप्रेल 2008 से 16 फरवरी 2009 के बीच 85 दिन नरेगा में गेंती-फावड़े चलाना बताया।

केस-दो
नाम: राजेश गुर्जर
जॉब कार्ड संख्या: 3030547-सी
स्थिति: भीलवाड़ा में रहकर कॉलेज में पढ़ाई करते हैं। जॉब कार्ड में राजेश एवं उनकी पत्नी महिमा से भी एक अप्रेल 2008 से 16 फरवरी 2009 के मध्य 85 दिन नरेगा में मजदूरी करा भुगतान करा दिया।


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कलक्टर बताएंगे नरेगा से हुए विकास कार्य

कलक्टर बताएंगे नरेगा से हुए विकास कार्य

नागौर। जिला कलक्टर डॉ. समित शर्मा 29 दिसम्बर को नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में दोपहर एक बजे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजनान्तर्गत जिले में हुए विकास कार्यों पर प्रस्तुतिकरण देंगे।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्य के नागौर, चूरू, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, बाड़मेर के जिला कलक्टरों का प्रस्तुतिकरण के लिए चयन किया है।

उल्लेखनीय है कि महानरेगा योजना में उत्कृष्ट कार्य करने पर नागौर सहित छह जिलों का केन्द्र सरकार ने चयन किया है। जिला कलक्टर डॉ. शर्मा नागौर जिले में महानरेगा योजना के तहत किए गए विकास कार्यों पर पावर पाइंट पें्रजेन्टेशन के माध्यम से कृषि भवन में प्रस्तुतिकरण देंगे।

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आन्दोलन का असर नरेगा पर

आन्दोलन का असर नरेगा पर


बांदीकुई। गुर्जर आरक्षण आन्दोलन का असर अब क्षेत्र में चल रही महानरेगा योजना पर भी पड़ने लगा है। इसका प्रभाव गुर्जर बाहुल्य वाली ग्राम पंचायतों में अघिक है। इन ग्राम पंचायतों में श्रमिक कम पहंुच रहे हैं।

सूत्रों ने बताया कि जहां पक्के निर्माण कार्य चल रहे हैं, वहां जाम के चलते निर्माण सामग्री ही नहीं पहुंच रही। क्षेत्र की 42 ग्राम पंचायतों में 15-16 ग्राम पंचायतों में एक-एक व दो-दो मस्टररोलों पर काम चल रहा है। इन पर प्रतिदिन 25 से 30 फीसदी मजदूर अनुपस्थित रहते हैं।

आन्दोलन स्थल मनोता के समीप की ग्राम पंचायतों में तो कार्य बंद हैं। आन्दोलन के चलते ग्राम पंचायत सरपंच भी अभी मस्टररोल लेने से कतरा रहे हैं। गुढाआशिकपुरा, पीचूपाड़ा खुर्द, श्यालावास कलां एवं गादरवाड़ा गूजरान गांवों में श्रमिकों की संख्या बहुत कम आ रही है।जेटीओ ने बताया कि काम-काज तो प्रभावित हो ही रहा है।

विकास अघिकारी रामहंस सैनी ने बताया कि वर्तमान में करीब ढाई हजार श्रमिक मनरेगा के तहत कार्यों पर लगे हैं। आन्दोलन का आंशिक असर है। काम बंद होने जैसी शिकायत नहीं आई है।



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महानरेगा नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप

महानरेगा नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप



हनुमानगढ़& जिला परिषद सदस्य राजेंद्र सिहाग ने प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एनजीओ के माध्यम से की गई कंप्यूटर आपरेटरों की नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। सिहाग ने बताया कि जिला परिषद के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एनजीओ संचालक ने प्रत्येक आपरेटर से 3600 रुपए लेकर उन्हें लाखों रुपयों का चूना लगाया है। उन्होंने बताया कि चार जनवरी को होने वाली जिला परिषद की बैठक में इस समस्या को उठाया जाएगा। यदि समस्या समाधान नहीं हुआ तो आमरण अनशन किया जाएगा।

सौ.- देनिक भास्‍कर.कॉम


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कनिष्‍ट तकनीकी सहायक का मानदेय बढा

कनिष्‍ट तकनीकी सहायक को मानदेय बढा NREGA, MGNREGA,




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महानरेगा में कागजों में सड़कें

महानरेगा कागजों में सड़कें


जयपुर। सड़क निर्माण 1 किमी और भुगतान 10 किमी का, खरंजा निर्माण आधा और भुगतान पूरे का उठाने, घटिया निर्माण और एक से अधिक जॉब कार्ड जारी कर करीब 10 लाख रूपए का गबन करने के मामलों में सहायक अभियन्ता, कनिष्ठ तकनीकी सहायक व सरपंच सहित 14 कर्मचारियों की मिलीभगत का खुलासा हुआ है।

भ्रष्टाचार में लिप्त इन अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज कराने, विभागीय जांच और वेतन वृद्धि रोकने का जिला प्रशसान ने निर्णय किया है। भ्रष्टाचार के ये मामले जिले की फागी व जमवारामगढ़ तहसील क्षेत्रों में खरंजा व सकड़ निर्माण में गड़बड़ी, बस्सी तहसील की ग्राम पंचायत राजपुरा पातलवास में एक ही परिवार को दो-दो जॉब कार्ड जारी करने तथा दूदू तहसील की ग्राम पंचायत बिचून में नरेगा श्रमिकों के भुगतान में गड़बड़ी पर सामने आए हैं।

यह है बानगी

केस-1 : तहसील फागी ग्राम पंचायत मण्डोर . प्रधान के चबूतरे से यादव मोहल्ला तक, तेजाजी मंदिर से बजरंग राणा के मकान तक, बड़ी स्कूल से नहर तक तथा रामेश्वर जड़ के मकान से स्कूल की ओर कातला खरंजा सड़क व नाली निर्माण कार्य की अधिक नाप कर लाखों गबन किए।

केस-2 : तहसील जमवा रामगढ़ ग्राम पंचायच खकरड़ा . पीर की तलाई से डाबर तक ग्रेवल सड़क कार्य 1 किमी और भुगतान उठाया 10 किमी का। इसी तरह सुल्तान मीणा की ढाणी से मेन रोड तक ईट खडंजा के निर्माण व ग्राम खरकड़ा में तलाई कार्य में घटिया निर्माण सामग्री इस्तेमाल हुई।

इन पर हुई कार्रवाई

ग्राम सेवक रमेशचन्द शर्मा, सरपंच पतासी देवी, रोजगार सहायक प्रभुलाल महावर, कनिष्ठ तकनीकी सहायक माधवराज चौहान के खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज और मेट रेखा शर्मा को ब्लेक लिस्टेड करने के निर्देश।

सहायक अभियन्ता आर.एन. माथुर, सहायक अभियन्ता अशोक स्वर्णकार के खिलाफ 17 सीसी और ग्राम सेवक महावीर सोनी के खिलाफ 16 सीसी की विभागीय जांच कराने के निर्देश।

कनिष्ठ तकनीकी सहायक महेन्द्र कुमार शर्मा की संविदा समाप्त और पुलिस थाने में मामला दर्ज कराने के निर्देश दिए। इसके अलावा कई अधिकारी-कर्मचारियों की वेतन वृद्धि रोकी गई है।

बक्शा नहीं जाएगा

नरेगा कार्यो की जांच पर विशेष जोर दिया जा रहा है। गड़बड़ी मिलने पर किसी भी अधिकारी-कर्मचारी को बक्शा नहीं जाएगा।नवीन महाजन, जिला कलक्टर जयपुर।

श्रम व सामग्री खर्च का अनुपात नहीं

श्रम व सामग्री खर्च का अनुपात नहीं


जोधपुर। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का तानाबाना भले ही श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के लिए बुना गया हो, लेकिन एक्ट के प्रावधान के विरूद्ध श्रमिकों से ज्यादा पैसा सामग्री पर खर्च हो रहा है। राज्य के 33 जिलों में से एक भी ऎसा नहीं है, जहां श्रम व सामग्री खर्च का अनुपात नहीं बिगड़ा हो। इस वर्ष अब तक करीब 15 हजार कार्यो पर मजदूरी कम बांटी गई। सामग्री पर अधिक खर्चा किया गया।

केन्द्र सरकार सालाना अरबों रूपए इस योजना के लिए आवंटित कर रही है। योजना बनाते समय ही श्रमिकों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार देने की मंशा से नरेगा एक्ट में श्रम और सामग्री पर खर्च के लिए 60:40 का अनुपात निर्धारित किया गया। राज्य में इस वर्ष महानरेगा के तहत हुए 15 हजार 767 कार्योü पर इस अनुपात का ध्यान नहीं रखा गया।



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महानरेगा एक परिचय

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) 2005 सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जो गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है और जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। यह अधिनियम विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है जिसके तहत अभूतपूर्व तौर पर रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना। इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। यह रोजगार शारीरिक श्रम के संदर्भ में है और उस वयस्क व्यक्ति को प्रदान किया जाता है जो इसके लिए राजी हो। इस अधिनियम का दूसरा लक्ष्य यह है कि इसके तहत टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखे, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।


राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) को तैयार करना और उसे कार्यान्वित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा गया है। इसका आधार अधिकार और माँग को बनाया गया है जिसके कारण यह पूर्व के इसी तरह के कार्यक्रमों से भिन्न हो गया है। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबध्द रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार प्रदान करने में कोताही न बरतें क्योंकि रोजगार प्रदान करने के खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र वहन करता है। इसके अलावा इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का कोई दखल हो। अधिनियम में महिलाओं की 33 प्रतिशत श्रम भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है।


नरेगा दो फरवरी, 2006 को लागू हो गया था। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। दूसरे चरण में वर्ष 2007-08 में इसमें और 130 जिलों को शामिल किया गया था। शुरुआती लक्ष्य के अनुरूप नरेगा को पूरे देश में पांच सालों में फैला देना था। बहरहाल, पूरे देश को इसके दायरे में लाने और माँग को दृष्टि में रखते हुए योजना को एक अप्रैल 2008 से सभी शेष ग्रामीण जिलों तक विस्तार दे दिया गया है।

पिछले दो सालों में कार्यान्वयन के रुझान अधिनियम के लक्ष्य के अनुरूप ही हैं। 2007-08 में 3.39 करोड़ घरों को रोजगार प्रदान किया गया और 330 जिलों में 143.5 करोड़ श्रमदिवसों का सृजन किया गया। एसजीआरवाई (2005-06 में 586 जिले) पर यह 60 करोड़ श्रमदिवसों की बढत है। कार्यक्रम की प्रकृति ऐसी है कि इसमें लक्ष्य स्वयं निर्धारित हो जाता है। इसके तहत हाशिए पर रहने वाले समूहों जैसे अजाअजजा (57#), महिलाओं (43#) और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों (129#) की भारी भागीदारी रही। बढी हुई मजदूरी दर ने भारत के ग्रामीण निर्धनों के आजीविका संसाधनों को ताकत पहुंचाई। निधि का 68# हिस्सा श्रमिकों को मजदूरी देने में इस्तेमाल किया गया। निष्पक्ष अध्ययनों से पता चलता है कि निराशाजन्य प्रवास को रोकने, घरों की आय को सहारा देने और प्राकृतिक संसाधनों को दोबारा पैदा करने के मामले में कार्यक्रम का प्रभाव सकारात्मक है।

मजदूरी आय में वृध्दि और न्यूनतम मजदूरी में इजाफा

वर्ष 2007-08 के दौरान नरेगा के अंतर्गत जो 15,856.89 करोड़ रुपए कुल खर्च किए गए, उसमें से 10,738.47 करोड़ रुपए बतौर मजदूरी 3.3 करोड़ से ज्यादा घरों को प्रदान किए गए।


नरेगा के शुरू होने के बाद से खेतिहर मजदूरों की राज्यों में न्यूनतम मजदूरी बढ गई है। महाराष्ट्र में न्यूनतम मजदूरी 47 रुपए से बढक़र 72 रुपए, उत्तरप्रदेश में 58 रुपए से बढक़र 100 रुपए हो गई है। इसी तरह बिहार में 68 रुपए से बढक़र 81 रुपए, कर्नाटक में 62 रुपए से बढक़र 74 रुपए, पश्चिम बंगाल में 64 रुपए से बढक़र 70 रुपए, मध्यप्रदेश में 58 रुपए से बढक़र 85 रुपए, हिमाचल प्रदेश में 65 रुपए से बढक़र 75 रुपए, नगालैंड में 66 रुपए से बढक़र 100 रुपए, जम्मू और कश्मीर में 45 रुपए से बढक़र 70 रुपए और छत्तीसगढ में 58 रुपए से बढक़र 72.23 रुपए हो गई है।

ग्रामीण सरंचनात्मक ढांचे पर प्रभाव और प्राकृतिक संसाधन आधार का पुनर्सृजन



2006-07 में लगभग आठ लाख कार्यों को शुरू किया गया जिनमें से 5.3 लाख जल संरक्षण, सिंचाई, सूखा निरोध और बाढ नियंत्रण कार्य थे। 2007-08 में 17.8 लाख कार्य शुरू किए गए जिनमें से 49# जल संरक्षण कार्य थे जो ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के प्राकृतिक संसाधन आधार का पुनर्सृजन से संबंधित थे। 2008-09 में जुलाई तक 14.5 लाख कार्यों को शुरू किया गया।


नरेगा के माध्यम से तमिलनाडू के विल्लूपुरम जिले में जल भंडारण (छह माह तक) में इजाफा हुआ है, जलस्तर में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है और कृषि उत्पादकता (एक फसली से दो फसली) में बढोत्तरी हुई है।

कामकाज के तरीकों को दुरुस्त करना



पारदर्शिता और जनता के प्रति उत्तरदायित्व: सामाजिक लेखाजोखा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। नरेगा के संदर्भ में सामाजिक लेखाजोखा में निरंतर सार्वजनिक निगरानी और परिवारों के पंजीयन की जांच, जॉब कार्ड का वितरण, काम की दरख्वास्तों की प्राप्ति, तारीख डाली हुई पावतियों को जारी करना, परियोजनाओं का ब्योरा तैयार करना, मौके की निशानदेही करना, दरख्वास्त देने वालों को रोजगार देना, मजदूरी का भुगतान, बेरोजगारी भत्ते का भुगतान, कार्य निष्पादन और मास्टर रोल का रखरखाव शामिल हैं।


वित्तीय दायरा: निर्धन ग्रामीण परिवारों को सरकारी खजाने से भारी धनराशि मुहैया कराई जा रही है जिसके आधार पर मंत्रालय को यह अवसर मिला है कि वह लाभान्वितों को बैंकिंग प्रणाली के दायरे में ले आए। नरेगा कामगारों के बैंकों व डाकघरों में बचत खाते खुलवाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया जा चुका है; नरेगा के अंतर्गत 2.28 करोड़ बैंक व डाकघर बचत खाते खोले जा चुके हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल:


मजदूरी के भुगतान की गड़बड़ियों और मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दूरभाष आधारित बैंकिंग सेवाएं शुरू करने का निर्णय किया है जो देश के सुदूर स्थानों पर रहने वाले कामगारों को भी आसानी से उपलब्ध होगी। बैंकों से भी कहा गया है कि वे स्मार्ट कार्ड और अन्य प्रौद्योगिकीय उपायों को शुरू करें ताकि मजदूरी को आसान और प्रभावी ढंग से वितरित किया जा सके।

वेब आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली


(nrega.nic.in) ग्रामीण घरों का सबसे बड़ा डेटाबेस है जिसकी वजह से सभी संवेदनशील कार्य जैसे मजदूरी का भुगतान, प्रदान किए गए रोजगार के दिवस, किए जाने वाले काम, लोगों द्वारा ऑनलाइन सूचना प्राप्त करना, आदि पूरी पारदर्शिता के साथ किया जा सकता है। इस प्रणाली को इस तरह बनाया गया है कि उसके जरिए प्रबंधन के सक्रिय सहयोग को कभी भी प्राप्त किया जा सकता है। अब तक वेबसाइट पर 44 लाख मस्टररोल और तीन करोड़ जॉब कार्ड को अपलोड किया जा चुका है।


मंत्रालय का नॉलेज नेटवर्क इस बात को प्रोत्साहन देता है कि किसी भी समस्या के हल को ऑनलाइन प्रणाली द्वारा सुझाया जाए। इस समय इस नेटवर्क के 400 जिला कार्यक्रम संयोजक सदस्य हैं। नेटवर्क नागरिक समाज संगठनों से भी जुड़ गया है।

माँग आधारित कार्यक्रम को पूरा करने के लिए क्षमता विकास



ग्रामसभाओं और पंचायती राज संस्थाओं को योजना व कार्यान्वयन में अहम भूमिका प्रदान करके विकेन्द्रीयकरण को मजबूत बनाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गहराई के साथ चलाने में नरेगा महत्त्वपूर्ण है। सबसे कठिन मुद्दा इन ऐजेंसियों की क्षमता का निर्माण है ताकि ये कार्यक्रम को जोरदार तरीके से कार्यान्वित कर सकें।


केन्द्र की तरफ से समर्पित प्रशासनिक व तकनीकी कार्मिकों को खण्ड व उप खण्ड स्तरों पर तैनात किया गया है ताकि मानव संसाधन क्षमता को बढाया जा सके।


राज्यों के निगरानीकर्ताओं के साथ नरेगा कर्मियों का प्रशिक्षण शुरू कर दिया गया है। अब तक 9,27,766 कार्मिकों तथा सतर्कता और निगरानी समितियों के 2,47,173 सदस्यों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।


मंत्रालय ने नागरिक समाज संगठनों और अकादमिक संस्थानों के सहयोग से जिला कार्यक्रम संयोजकों के लिए पियर लर्निंग वर्कशॉप का आयोजन किया ताकि औपचारिक व अनौपचारिक सांस्थानिक प्रणाली और नेटवर्क तैयार किया जा सके। इन सबको अनुसंधान अध्ययन, प्रलेखन, सामग्री विकास जैसे संसाधन सहयोग भी मुहैया कराए गए।


संचार, प्रशिक्षण, कार्य योजना, सूचना प्रौद्योगिकी, सामाजिक लेखाजोखा और निधि प्रबंधन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को तकनीकी समर्थन भी प्रदान किया जा रहा है।
निराशाजन्य प्रवास को रोकना


रिपोर्टों के अनुसार बिहार और देश के अन्य राज्यों की श्रमशक्ति अब वापस लौट रही है। पहले कामगार बिहार से पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात प्रवास करते थे जो अब धीरे धीरे कम हो रहा है। इसका कारण है कि मजदूरों को अपने गाँव में ही रोजगार व बेहतर मजदूरी मिल रही है जिसके कारण कामगार अब काम की तलाश में शहर की तरफ जाने से गुरेज कर रहे हैं। बिहार में नरेगा के अंतर्गत मजदूरी की दर 81 रुपए प्रति दिन है। प्रवास में कमी आ जाने के कारण मजदूरों के बच्चे अब नियमित स्कूल भी जाने लगे हैं।
नरेगा के बहुस्तरीय प्रभावों को बढाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय राष्ट्रीय उद्यान मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, भारत निर्माण, वॉटरशेड डेवलपमेन्ट, उत्पादकता वृध्दि आदि कार्यक्रमों को नरेगा से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में योजनाबध्द व समन्वयकारी सार्वजनिक निवेश को बल मिलेगा। इसके परिणामस्वरूप गामीण क्षेत्रों में लंबे समय तक आजीविका का सृजन होता रहेगा।


# - ग्रामीण रोजगार मंत्रालय द्वारा प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर

मनरेगा का हिसाब-किताब

मनरेगा का हिसाब-किताब
नरेगा अब मनरेगा ज़रूर हो गई, लेकिन भ्रष्टाचार अभी भी ख़त्म नहीं हुआ। इस योजना के तहत देश के करोड़ों लोगों को रोज़गार दिया जा रहा है। गांव के ग़रीबों-मजदूरों के लिए यह योजना एक तरह संजीवनी का काम कर रही है। सरकार हर साल लगभग 40 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च कर रही है, लेकिन देश के कमोबेश सभी हिस्सों से यह ख़बर आती रहती है कि कहीं फर्जी मस्टररोल बना दिया गया तो कहीं मृत आदमी के नाम पर सरपंच-ठेकेदारों ने पैसा उठा लिया। साल में 100 दिनों की जगह कभी-कभी स़िर्फ 70-80 दिन ही काम दिया जाता है। काम के बदले पूरा पैसा भी नहीं दिया जाता। ज़ाहिर है, यह पैसा उन ग़रीबों के हिस्से का होता है, जिनके लिए यह योजना बनाई गई है। मनरेगा में भ्रष्टाचार का सोशल ऑडिट कराने की योजना का भी पंचायतों एवं ठेकेदारों द्वारा ज़बरदस्त विरोध किया जाता है। कभी-कभी तो मामला मारपीट तक पहुंच जाता है, हत्या तक हो जाती है। अब सवाल यह है कि इस भ्रष्टाचार का मुक़ाबला कैसे किया जाए? इसका जवाब बहुत आसान है। इस समस्या से लड़ने का हथियार भी बहुत कारगर है, सूचना का अधिकार। आपको बस अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना है। इस बार का आवेदन मनरेगा से संबंधित है। यह आवेदन इस योजना में हो रही धांधली को सामने लाने और जॉब कार्ड बनवाने में मददगार साबित हो सकता है।

हम पाठकों से अपेक्षा करते हैं कि वे गांव-देहात में रहने वाले लोगों को भी इस कॉलम के बारे में बताएंगे और दिए गए आवेदन के प्रारूप को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाएंगे। सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ने की चौथी दुनिया की मुहिम में आपका साथ भी मायने रखता है। यहां हम मनरेगा योजना से जुड़े कुछ सवाल आवेदन के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं।

आप इस आवेदन के माध्यम से मनरेगा के तहत बने जॉब कार्ड, मस्टररोल, भुगतान, काम एवं ठेकेदार के बारे में सूचनाएं मांग सकते हैं। चौथी दुनिया आपको इस कॉलम के माध्यम से वह ताक़त दे रहा है, जिससे आप पूछ सकेंगे सही सवाल। एक सही सवाल आपकी ज़िंदगी बदल सकता है। हम आपको हर अंक में बता रहे हैं कि कैसे सूचना अधिकार क़ानून का इस्तेमाल करके आप दिखा सकते हैं घूस को घूंसा। किसी भी तरह की दिक्कत या परेशानी होने पर हम आपके साथ हैं।

आवेदन का प्रारूप


(मनरेगा के तहत जॉब कार्ड, रोजगार एवं बेरोजगारी भत्ता का विवरण)

सेवा में, लोक सूचना अधिकारी (विभाग का नाम)
(विभाग का पता)
विषय: सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन

महोदय,
………ब्लॉक के ग्राम……के संबंध में निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध कराएं:

1. उपरोक्त गांव से एनआरईजीए के तहत जॉब कार्ड बनाने के लिए अब तक कितने आवेदन प्राप्त हुए? इसकी सूची निम्नलिखित विवरणों के साथ उपलब्ध कराएं:

क. आवेदक का नाम व पता।
ख. आवेदन संख्या।
ग. आवेदन की तारीख।
घ. आवेदन पर की गई कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण (जॉब कार्ड बना/जॉब कार्ड नहीं बना/विचाराधीन)।
ड. यदि जॉब कार्ड नहीं बना तो उसका कारण बताएं।
च. यदि बना तो किस तारीख को।
2. जिन लोगों को जॉब कार्ड दिया गया है, उनमें से कितने लोगों ने काम के लिए आवेदन किया? उसकी सूची निम्नलिखित सूचनाओं के साथ उपलब्ध कराएं:

क. आवेदक का नाम व पता।
ख. आवेदन करने की तारीख।
ग. दिए गए कार्य का नाम।
घ. कार्य दिए जाने की तारीख।
ड. कार्य के लिए भुगतान की गई राशि व भुगतान की तारीख।
च. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति, जहां उनके भुगतान से संबंधित विवरण दर्ज हैं।
छ. यदि काम नहीं दिया गया है तो क्यों?
ज. क्या उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है?

3. उपरोक्त गांव से एनआरईजीए के तहत रोजगार के लिए आवेदन करने वाले जिन आवेदकों को बेरोजगारी भत्ता दिया गया या दिया जा रहा है, उनकी सूची निम्नलिखित सूचनाओं के साथ उपलब्ध कराएं:

क. आवेदक का नाम व पता।
ख. आवेदन करने की तारीख।
ग. बेरोजगारी भत्ता दिए जाने की तारीख।
ड. बतौर बेरोजगारी भत्ता भुगतान की गई राशि व भुगतान की तारीख।
च. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति, जहां उनके भुगतान से संबंधित विवरण दर्ज हैं।
मैं आवेदन शुल्क के रूप में……रुपये अलग से जमा कर रहा/रही हूं।

या

मैं बीपीएल कार्डधारक हूं, इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बीपीएल कार्ड नंबर………है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से संबंधित न हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों की समयावधि के अंतर्गत हस्तांतरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम और पता अवश्य बताएं।

भवदीय

नाम………………
पता………………
फोन नंबर…………

संलग्नक (यदि कुछ हो तो)………


मनरेगा का हिसाब-किताब,

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मनरेगा : अनुभव से सीखने की ज़रूरत

मनरेगा : अनुभव से सीखने की ज़रूरत

महात्मा गांधी नेशनल रूरल इंप्लायमेंट गारंटी प्रोग्राम (मनरेगा) की शुरुआत हुए चार साल से ज़्यादा व़क्त बीत चुका है और अब यह देश के हर ज़िले में लागू है। अपनी सफलता से तमाम तरह की उम्मीदें पैदा करने वाले मनरेगा को सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी एवं आकर्षक योजनाओं में गिना जा रहा है। हालांकि इसके क्रियान्वयन में कई मुश्किलें हैं और इसके कुछ पहलुओं की काफी आलोचना भी की गई है, फिर भी यह मानना चाहिए कि मनरेगा आज देश के बेरोज़गार लोगों तक सरकारी सहायता पहुंचाने का सबसे प्रमुख ज़रिया बन चुका है। इसकी मदद से देश के ग्रामीण इलाक़ों में लोगों के जीवन स्तर में आए सुधार को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। साथ ही इसके माध्यम से आधारभूत संरचनाओं के विकास को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। लोगों की क्रय शक्ति में इज़ा़फा हुआ है और इसका मल्टीप्लायर इफेक्ट देश की अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान कर रहा है।


योजना के लिए जारी किए गए फंड के इस्तेमाल में भी राज्यों के बीच अंतर दिखाई पड़ता है। इस मामले में कुछ राज्यों का प्रदर्शन अच्छा है तो कई राज्य पिछड़े हुए हैं। फंडों की उपादेयता और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिहाज़ से राजस्थान, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों ने काफी अच्छा काम किया है। इसी का परिणाम है कि इन राज्यों में लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि हुई है।

पिछले चार सालों के अनुभव के आधार पर इसमें कोई संदेह नहीं कि इस कार्यक्रम की संरचना और परिकल्पना के स्तर पर कुछ सुधार किए जाएं तो यह अपने उद्देश्यों को हासिल करने में और भी ज़्यादा कामयाब हो सकता है। यह सर्वविदित है कि देश का हर ज़िला इस योजना का एक समान रूप से फायदा नहीं उठा पाया है। यह तथ्य अलग-अलग राज्यों के प्रदर्शन में अंतर से और भी स्पष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, पूरे देश का कोई एक ज़िला भी सभी कार्डधारियों को सौ दिन का सुनिश्चित रोज़गार देने में कामयाब नहीं हुआ है। इसके लिए वित्तीय संसाधनों की कमी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सरकार ने अपनी ओर से इसमें कोई कमी नहीं छोड़ी है। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि मनरेगा एक मांग आधारित योजना है और जोर रोज़गार की मांग करने वाले लोगों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने पर होना चाहिए, न कि योजना में व्यय के लिए जारी की गई रकम को ख़र्च करने पर। लेकिन सच्चाई यही है कि इस देश में अभी भी करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिन्हें रोज़गार की ज़रूरत है। यह महसूस किया गया है कि योजना के क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार एजेंसियों अर्थात ज़िला प्रशासन एवं अन्य सूत्र अभिकरणों को और ज़्यादा सक्रिय होना चाहिए। उन्हें सूचना, शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रमों की मदद से ज़्यादा लोगों तक पहुंचना चाहिए, ताकि रोज़गार की आवश्यकता वाले लोग इसके प्रति और ज़्यादा जागरूक हो सकें। कई लोगों को अब तक यह नहीं पता कि मनरेगा के अंतर्गत वे रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने की मांग कर सकते हैं और अगर उक्त अवसर पंद्रह दिनों के अंदर उपलब्ध नहीं कराए गए तो वे बेरोज़गारी भत्ता पाने के हक़दार हैं।

योजना के लिए जारी किए गए फंड के इस्तेमाल में भी राज्यों के बीच अंतर दिखाई पड़ता है। इस मामले में कुछ राज्यों का प्रदर्शन अच्छा है तो कई राज्य पिछड़े हुए हैं। फंडों की उपादेयता और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिहाज़ से राजस्थान, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों ने काफी अच्छा काम किया है। इसी का परिणाम है कि इन राज्यों में लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि हुई है। पश्चिम बंगाल और अन्य कुछ राज्य शुरुआत में पिछड़ने के बाद अब अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार की ओर अग्रसर हैं। यह माना जाता है मनरेगा के अंतर्गत रोज़गार की मांग करने वाले लोगों की कमी है, क्योंकि निजी क्षेत्र में काम करने पर उन्हें ज़्यादा मेहनताना मिलता है। यही वजह है कि राज्य अपने हिस्से की रकम का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते। यह तर्क अपेक्षाकृत विकसित राज्यों एवं कम विकसित राज्यों के शहरी इलाक़ों के लिए सही हो सकता है, लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों के लिहाज़ से देखें तो इसमें कोई दम नहीं है। फंडों के इस्तेमाल और रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाने के मामले में निश्चित रूप से इनका प्रदर्शन और अच्छा हो सकता था। यह भी महसूस किया जाता है कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था इसी तरह सात प्रतिशत से ज़्यादा की दर से विकास करती रही तो अधिकतर लोग मनरेगा के अंतर्गत मिलने वाले 75 से 140 रुपये प्रतिदिन की मज़दूरी के बजाय बाज़ार में उपलब्ध ज़्यादा आकर्षक मज़दूरी वाले रोज़गार के अवसरों की ओर उन्मुख होंगे। अब तक कोई भी राज्य सभी ज़रूरतमंदों को सौ दिन का सुनिश्चित रोज़गार उपलब्ध कराने में सफल नहीं हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए योजना में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है।

योजना के अब तक के परिणामों को देखें तो थोड़ा और साहस दिखाने में कोई बुराई नहीं है। योजना में सौ दिनों की सीलिंग को हटाकर इसे पूरी तरह से मांग आधारित रोज़गार गारंटी योजना में तब्दील किया जा सकता है, ताकि ज़रूरतमंदों की मांग के अनुरूप यह पूरे साल उपलब्ध रहे। हर घर के लिए सौ दिनों के रोज़गार की सीमा को तो निश्चित रूप से ख़त्म किया जाना चाहिए। इससे ज़िले में क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार अभिकरणों को हर घर को सौ दिनों से ज़्यादा का रोज़गार उपलब्ध कराने की छूट मिल जाएगी। इसकी मदद से ज़िला अभिकरण ख़ुद अपने द्वारा तय किए जाने वाले रोज़गार दिवस के लक्ष्य का ज़िले में मौजूद घरों की संख्या के साथ बेहतर ढंग से तालमेल बैठा पाएंगे। चूंकि राज्य सौ रोज़गार दिवस का लक्ष्य पाने में नाकामयाब रहे हैं तो योजना को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने के लिए सरकारी कोष पर पड़ने वाला भार भी उम्मीद से कम ही है। देश की अर्थव्यवस्था जिस तेज़ी से आगे बढ़ रही है, उसे देखकर यही लगता है कि आने वाले दिनों में निजी क्षेत्र में बेहतर मज़दूरी वाले रोज़गार के अवसरों में और वृद्धि होगी। जनसंख्या के लिहाज़ से भारत एक जवान देश है और आने वाले दिनों में रोज़गार की ज़रूरत वाले लोगों की संख्या में इज़ा़फा ही होगा। इस बढ़ी हुई संख्या के मद्देनज़र सौ दिनों के रोज़गार दिवस की सीमा में बदलाव करने की और भी ज़्यादा ज़रूरत है।

(लेखक पश्चिम बंगाल में आईएएस अधिकारी हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इनका सरकार के विचारों से कोई संबंध नहीं है।)

Source: चौथी दुनिया
Author: सौमित्र मोहन

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लोक कलाकरों ने किया ग्रामीणों का मनोरंजन

कोटा परम्परागत मीडिया के माध्यम से सरकार की दो वर्ष की उपलब्धियों एवं योजनाओं का प्रचार- प्रसार कर रहे लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों से ग्रामीणों का भरपूर मनोरंजन हो रहा हैं। हास- परिहास व संवादों के माध्यम से सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी ग्रामीणजनों तक पहुंच रही हैं। विगत शनिवार को ग्राम ताथेड एवं उदपुरिया म तथा रविवार को ग्राम भीमपुरा में रंसरंग लोक कलामंडल के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतिया दी।
लोक गीतों के माध्यम से कलाकारों ने ग्रामीणों को जल की बचत करने , स्वच्छ रहने , हाथ धोकर भोजन करने , वृक्ष लगाने , बच्चों को समय पर टीका लगवाने , लडका- लडकी में भेद नहीं करने , भ्रूण हत्या रोकने , परिवार समिति रखने तथा बच्चों को स्कूल भेजने और बाल विवाह नहीं करने के संदेश सटीक रूप से ग्रामीणों तक पहुंचाये । साथ ही मुख्यमंत्री अन्न सुरक्षा योजना, बी.पी.एल. परिवारों को सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं, महानरेगा में रोजगार, पंचायती राज सशक्तिकरण, सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत घर में शौचालय निर्माण करने जैसी अन्य योजनाओं की जानकारी भी रोचक तरीके से दी। इन कार्यक्रम में पंच- सरपंच एवं कई अन्य जनप्रतिनिधियों सहित बडी संख्या में ग्रामीणजन उपस्थित रहे।


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मजदूरी कम आने पर मेटों ने दी जेटीए को फोन पर धमकी

मजदूरी कम आने पर मेटों ने दी जेटीए को फोन पर धमकी

रावतभाटा& पंचायत समिति भैंसरोडगढ़ में कार्यरत नरेगा के कनिष्ठ तकनीकी सहायक को सोमवार को मोबाइल पर धमकी देने वाले मेटों चरणसिंह एवं नरेन्द्र सिंह के खिलाफ रावतभाटा पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया है। विकास अधिकारी रूपसिंह गुर्जर ने बताया कि रेनखेड़ा ग्राम पंचायत के सेमलिया गांव में घाटे के नीचे नरेगा के तहत तलाई गहरी करना, कार्य पर कार्यरत मेटों चरणसिंह एवं नरेन्द्र सिंह ने कनिष्ठ तकनीकी सहायक मनोज कुमार कच्छावा को मोबाइल पर सोमवार दोपहर साढ़े तीन बजे धमकी दी कि कार्यस्थल पर माप करने एवं निरीक्षण करने आए तो पत्थर मारे जाएंगे। कनिष्ठ तकनीकी सहायक कच्छावा ने बताया कि इस कार्य पर माप करने पर मजदूरी की दर 26 रुपए आई। जिस पर इन मेटों ने 9636147957 मोबाइल नंबर से फोन कर दो बार धमकी दी कि कार्यस्थल पर माप एवं निरीक्षण करने आने पर पिटाई की जाएगी। पुलिस के अनुसार वाद दर्ज कर जांच की जा रही है।


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नरेगा में नौकरी के नाम पर ठगी

नरेगा में नौकरी के नाम पर ठगी

Source: अमरेंद्र कुमार | (25/12/10

रांची. नरेगा में अधिकारियों व कर्मचारियों के 500 पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकालने वाली नई दिल्ली की संस्था राष्ट्रीय नरेगा परामर्श समिति झरखंड के लोगों को ठगने में जुटी है। संस्था ने रांची से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक में विज्ञापन प्रकाशित कर इन पदों के लिए आवेदन मांगा है। साथ में 150 से 300 रुपए तक का ड्राफ्ट मांगा गया है।


झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव एसके सत्पती ने ऐसी किसी नियुक्ति प्रक्रिया से इनकार किया है। उनका कहना है कि इस विज्ञापन से राज्य सरकार का कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने इसे फ्रॉड बताते हुए केंद्र से सीबीआई जांच की मांग की है।


जानकारी के मुताबिक, अब तक एमबीए डिग्रीधारी समेत राज्य के लगभग एक लाख अभ्यर्थियों ने इस संस्था को शुल्क के साथ आवेदन भेजा है। 12 दिसंबर को प्रकाशित विज्ञापन में आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 29 दिसंबर है।


ये हैं पद:



परियोजना प्रभारी, जिला समन्वय पदाधिकारी, प्रखंड समन्वय पदाधिकारी, पंचायत समन्वय पदाधिकारी, कंप्यूटर ऑपरेटर, सुरक्षाकर्मी और चपरासी। ग्रामीण विकास विभाग के सचिव एसके सत्पती ने कहा कि इस विज्ञापन की जानकारी मुझे मिली है। दिल्ली से आवेदन मांगे जा रहे हैं। यह फ्रॉड है।


नियुक्ति के लिए इस संस्था को अधिकृत नहीं किया गया है। राज्य सरकार ने केन्द्र को इसकी सीबीआई जांच कराने के लिए पत्र लिखा है। पूरे मामले की जानकारी मुख्य सचिव और गृह सचिव को दे दी गई है। निगरानी को भी अपने स्तर से जांच के लिए लिखा गया है।


क्या है मामला



दिल्ली की संस्था राष्ट्रीय नरेगा परामर्श समिति ने 500 पदों के लिए निकाला विज्ञापन

आवेदन के साथ 300 रुपए तक के ड्राफ्ट मांगे, झारखंड के एक लाख अभ्यर्थियों ने भरे फॉर्म

राज्य सरकार ने फर्जी बताया, सीबीआई जांच कराने को लिखा पत्र



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महानरेगा में 50 रूपये से कम मजदूरी

सहकारिता मंत्री परसादीलाल मीणा ने बुधवार को लालसोट पंचायत समिति की ग्राम पंचायत बिदरखा में आयोजित प्रशासन गांवो के संग अभियान-2010 शिविर का औचक निरीक्षण किया। उन्होने शिविर में सभी विभागों के लगे काउन्टरों पर जाकर अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों की समस्याओं के निराकरण के लिए किये जा रहे कार्यों की विस्तार से जानकारी प्राप्त की।
सहकारिता मंत्री परसादीलाल मीणा ने शिविर में उपस्थित एक-एक व्यक्ति की समस्या सुनी तथा उनका समाधान कराया। शिविर में 3 विधवाओं के बच्चों को विधवा पालनहार योजना में लाभान्वित किया गया। ह्र उल्लेखनीय है कि इस योजना के तहत समाज के वे बच्चे ,जिनके पिता की मृत्यु हो गयी हो तथा उनके पालन-पोषण उनकी विधवा माता द्वारा किया जा रहा हो ,उस विधवा महिला के लिये एक बच्चे के पालन पोषण के लिये 675 रूपये प्रति माह अनुदान दिये जाने का प्रावधान है। शिविर में 10 वृद्धावस्था पेंशन, 9 विधवा पेंशन तथा 3 विकलांग पशन प्रकरण निपटाए गए। शिविर में सहकारिता विभाग द्वारा 70से अधिक व्यक्तियों को साख सीमा वाले प्रमाण पत्र जारी किए गए। इसके पश्चात सहकारिता मंत्री के निर्देश पर शेष सभी किसानो को ऋण प्रदान कर दिया गया। सहकारिता मंत्री ने बताया कि महानरेगा में 50 रूपये से कम मजदूरी पर संबधित अधिकारी के विरूद्ध कडी कार्यवाही की जायेगी। उन्होंने क्षेत्र में विद्युत समस्या समाधान के लिए दूरभाष पर अधीक्षण अभियंता को निर्देश दिए। उन्होने बताया कि ग्राम पंचायत में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में सभी पात्र व्यक्तियो को कनेशन उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करे। शिविर के दौरान नामान्तकरण व खातेदारी बटवारे के प्रकरणो का निस्तारण किया गया ।
सहकारिता मंत्री ने शिविर में आए ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि ग्रामीणों की समस्याओं के प्रभावी समाधान के लिए अभियान के माध्यम से सरकार ने अधिकारियों को गांवों में भेजा है। शिविर में 18 विभागों के अधिकारी आफ गांव में आये हैं। शिविर का उद्देश्य आमजन की समस्याओं का समाधान गांव में बैठकर ही करना है। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन सबके सहयोग से इस जिले में आयोजित किए जा रहे शिविरों में अच्छा काम कर रहा है। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि किसी भी शिविर में ज्यादा काम होने पर भी काम पूरा निपटाकर ही शिविर से प्रस्थान करें। उन्होंने बीपीएल परिवारों को विद्युत कनेशन निर्धारित समय पर जारी करनें के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा रास्तों के विवादों को देखते हुए एक नया कानून बनाया जा रहा है जिसमें रास्ता देना अनिवार्य होगा। उन्होंने कहा कि गांवों का विकास तेजी से हो और सभी सम्पन्न बने इसके लिए केन्द्र सरकार द्वारा कई योजनाएं भेजी जा रही है। उन्होंने संस्थागत प्रसव पर जोर देते हुए कहा कि जच्चा-बच्चा स्वस्थ्य हो इसके लिए राज्य सरकार अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधा देने के लिए प्रयासरत है लेकिन इसमें आमजन भी सहयोग करें। उन्होंने कहा कि राज्य में 36 लाख बीपीएल परिवारों को 2 रुपए किलो की दर से गेहूं उपलध कराया जा रहा है। इससे पूर्व प्रधान गंगासहाय बैरवा , शिविर प्रभारी एवॅ उप खण्ड अधिकारी कमरूदीन खान ने शिविर में ग्रामीणो की समस्याएँ सुनी तथा उनका समाधान कराया। इस अवसर पर ग्राम पंचायत बिदरखा के सरपंच रामकरण मीणा ने क्षेत्र की समस्याओ के बारे मे जानकारी दी तथा शीघ्र समाधान करवाने का आग्रह किया।

महानरेगा में फर्जी खरीद और घटिया निर्माण, 50 लाख का घपला

नागौर के गच्छीपुरा पंचायत में स्पेशल ऑडिट में मिली कई गड़बडिय़ां, ग्रेवल सड़क, नाडी और नाली का घटिया निर्माण



जयपुर।
फर्जी फर्मों से खरीद कर ली और मौके पर फर्में मिली ही नहीं। ग्रेवल सड़कों का निर्माण कर दिया और नाप में सही नहीं मिली। नालियों का निर्माण बताया कहीं और किया कहीं। टांके बनवाए, लेकिन पानी रुकता ही नहीं। ये सारी गड़बडिय़ां राज्य सरकार की ओर से नागौर जिले की मकराना पंचायत समिति की गच्छीपुरा में महानरेगा के कामों की कराई गई स्पेशल ऑडिट में सामने आई हैं। इनमें 50 लाख रुपए से अधिक का घपला पाया गया है। इस ऑडिट के बाद संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।



मकराना पंचायत समिति की सभी पंचायतों में दीवारों पर वाल पेंटिंग कराए बिना ही 3.10 लाख रुपए का भुगतान उठाने के मामले में संबंधित एसडीएम के खिलाफ भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। सोशल ऑडिट के संयुक्त निदेशक एम.एस. भाकर के नेतृत्व में की गई स्पेशल ऑडिट में एईएन अर्जुन सिंह और एकाउंटेंट बलबीर सिंह शामिल थे।



ये मिली गड़बडिय़ां :
—सरपंच ने निर्माण आदि के लिए फर्जी फर्मों के नाम से 36.50 लाख रुपए का भुगतान उठा लिया। वास्तव में जांच की गई, तो मौके पर ऐसी फर्में मिली ही नहीं।
—ग्रेवल सड़क, नाडी और नालियों के काम में गड़बडिय़ां पाई गई। ग्रेवल सड़क में मौके पर काम नहीं किया हुआ मिला।
—नाडी में खुदाई पूरी नहीं थी। इसके लिए बनाई दीवार में दरारें थीं, नींव सही भरी नहीं थी। घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था।
—नालियां कागजों में कहीं दिखाई और काम कहीं और था। ये गड़बडिय़ां 11.50 लाख रुपए की आंकी गई।
—विभिन्न कामों के संबंध में एमबी में 2.75 लाख रुपए का काम निर्धारित दरों से अधिक बताया गया था।
—मस्टररोल में 38 हजार रुपए के भुगतान ज्यादा पाए गए। मौके पर लोग कम और नाम अधिक दर्ज बताए गए थे।
—एक्सईएन सीताराम और एईएन दिलीप बरनिया ने मौका निरीक्षण नहीं किया और तकनीकी मंजूरी निकाल दी।
—सोशल ऑडिट से पहले वाल पेंटिंग तो नहीं करवाई, लेकिन 3.20 लाख रुपए का फर्जी भुगतान उठा लिया गया।
—ग्राम पंचायत क्षेत्र में पांच टांके बनवाए गए। इनमें घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया, जिसके कारण एक टांके में तो पानी रुकता ही नहीं।

—बीडीओ ने सोशल ऑडिट और अन्य कामों का रिकॉर्ड सही नहीं रखा।

मनरेगा के प्रति लापरवाही पड़ेगी महंगी

महात्मा गांधी नरेगा स्कीम को निचले स्तर तक पहुंचाने के लिए जिस भी अधिकारी या कर्मचारी ने ढील दिखाई उसके खिलाफ कार्रवाही की जाएगी। डीसी केएस पन्नू ने मनरेगा के कामों की समीक्षा करते हुए ढील दिखाने वाले कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है। सर्किट हाउस में आयोजित बैठक के दौरान संबोधित करते हुए डीसी केएस पन्नू ने बताया कि वर्ष 2009-10 के तहत नरेगा के अधीन खर्च की गई राशि बीडीपीओ को वेबसाइट पर डाउनलोड करने के निर्देश दिए गए हैं। डीसी ने बताया कि जो भी काम नरेगा के तहत चल रहे हैं वह जल्दी पूरे हो जाने चाहिए, अगर कहीं भी कोई खामी पाई गई तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाही की जाएगी। इस अवसर पर मनरेगा के ओएसडी डा. बलजीत सिंह, सचिव जिला परिषद प्रो. राकेश, एसपी आंगरा, बलदेव सिंह व अन्य उपस्थित थे।

MGNREGA

जिला हनुमानगढ के महात्‍मा गॉधी नरेगा के कार्मिको द्वारा सभी कर्मिकों को एक मन्‍च पर लाने का यह एक अच्‍छा प्रयास है सभी जिलों के कार्मिक भी इसी तरह के आयोजन आयोजित करते रहे ताकि एकता बनी रहें


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नरेगा के लिए अलग से अभियन्ता

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भीलवाड़ा। सार्वजनिक निर्माण विभाग की महात्मा गांधी नरेगा के तहत बनने वाली सड़कें व अन्य कार्य की देखभाल के लिए 31 दिसम्बर से विभाग के सर्किल कार्यालय में अलग से खण्ड गठित होगा। इसके लिए अलग से अधिशासी अभियंता की नियुक्ति होगी।

यह अभियन्ता जिले में नरेगा के तहत कराए जाने वाले निर्माण कार्यो पर नजर रखेगा। निर्माण कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रत्येक ब्लॉक पर एक सहायक अभियन्ता भी नियुक्त होगा। नए साल से सार्वजनिक निर्माण विभाग का यह खण्ड विधिवत रूप से कार्य करना शुरू कर देगा।



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नरेगा में 15 लाख के घोटाले की जांच शुरू

नरेगा में 15 लाख के घोटाले की जांच शुरू

Source: भास्कर न्यूज
डेगाना. ग्राम पंचायत गोनरडा में पिछले साल नरेगा कार्यो में उजागर हुए 15.53 लाख के घोटाले की धीमी गति से चल रही जांच के तहत बुधवार को पुलिस ने डेगाना विकास अधिकारी से जानकारी ली। पुलिस में दर्ज एफआइआर के तहत पादू थानाधिकारी ने मामले की विस्तृत जांच के लिए गबन संबधी फाइलें मांगी। विकास अधिकारी ने बताया कि गोनरडा में तत्कालीन सरपंच और ग्राम सेवक पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने नरेगा मजदूरों का भुगतान नहीं किया। भुगतान को लेकर श्रमिीकों ने आन्दोलन भी किए। इसके बाद ग्राम पंचायत के रिकार्ड की विस्तृत जांच कराई गई तो खुलासा हुआ कि दो साल में अनेक नरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं किया गया। कई श्रमिकों को काम के मूल्यांकन से अधिक और कम भुगतान कर दिया गया। सरपंच ने अनधिकृत रूप से ग्राम पंचायत के खाते से राशि उठा ली। पंचायत के रिकार्ड में कमियां पाई गई। इन अनियमितताओं के संबंध ग्राम सेवक व सरपंच से पूछा गया, लेकिन उन्होंने बिल, बाउचर पेश नहीं किए। तब उजागर हुआ कि 15.53 लाख रुपए का गबन कर लिया गया था। इस पर विकास अधिकारी ने पादू थाने में ग्राम सेवक और सरपंच के खिलाफ मार्च में सरकारी राशि के गबन करने का मुकदमा दर्ज कराया था।

जांच हो रही है : विकास अधिकारी सुधीर कुमार सक्सेना ने बताया कि कुल 15.53 लाख रुपए के गबन का मामला पिछले साल प्रकाश में आया था। इसकी सूचना कलेक्टर को दी गई। उनके निर्देशानुसार संबधित लोगों के ख्लिाफ थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था, जांच हो रही है।

पादू थानेदार का कहना है कि गोनरडा के ग्राम सेवक सोहनलाल और सरपंच मोहनराम के खिलाफ सरकारी राशि के गबन का मामला दर्ज कराया था। इसकी जांच के लिए विभागी जांच रिपोट, एम.बी., मस्टर रोल लिए गए हैं। मामले की जांच की जा रही है। गबन के आरोपों के बाद संबंधित ग्राम सेवक सोहनलाल ने तीन लाख रुपए पंचायत समिति के खाते में जमा भी कराए।

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पेट्रोल में जला दिया नरेगा का पैसा

पेट्रोल में जला दिया नरेगा का पैसा

Source: bhaskar news |

जोधपुर.नरेगा को एक्ट के माध्यम से पूरे देश में लागू किया गया था ताकि पैसों का सही उपयोग हो, मगर जोधपुर में मनमर्जी से कायदों में फेरबदल कर दो लाख रुपए तो पेट्रोल में फूंक दिए गए और करीब तीन लाख रुपए भवन का किराया देने में खर्च कर दिए गए। पांच लाख रुपए का यह खर्चा प्रशासनिक अनुमत राशि में से किया गया जो कि एक्ट के विरुद्ध है।


नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पिछले दो सालों में हुए नरेगा के कार्यो की ऑडिट में लेजर व बैलेंस शीट की समीक्षा करने के बाद टिप्पणी की है कि प्रशासनिक मद में से पेट्रोल खर्च के नाम पर 2 लाख 11 हजार 928 रुपए खर्च करना नियमविरुद्ध है।

ऑडिट टीम ने स्पष्ट किया कि केंद्र व राज्य सरकार के निर्देशों के मुताबिक नरेगा कार्यो के लिए वाहन किराए पर लेने चाहिए। कैग ने अतिरिक्त कार्यक्रम समन्वयक से उन वाहनों की जानकारी मांगी है, जिनमें पेट्रोल भरवाया गया था।

साथ ही पूछा है कि यह खर्च किन नियमों के तहत किया गया। कैग ने यह भी पूछा है कि वर्ष 2008-09 में किराए पर लिए वाहनों की संख्या कितनी थी तथा किन अफसरों को वाहन दिए गए।


भवन किराए के दे दिए 3 लाख

नरेगा एडीपीसी कार्यालय जिला परिषद के भवन में किराए पर चल रहा है। इसके लिए नरेगा से 35 हजार रुपए प्रति माह चुकाए जा रहे हैं। ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग के आदेशानुसार प्रशासनिक व्यय में परिचालन, टेलीफोन व पोस्टेज आदि के खर्चे ही अनुमत किए गए हैं,

जबकि जोधपुर में दिसंबर 09 से अगस्त 10 तक भवन किराए पर नरेगा के 2 लाख 98 हजार रुपए खर्च कर दिए जो गैर अनुमत व्यय है। कैग ने गैर अनुमत व्यय करने के कारणों का स्पष्टीकरण मांगा है।


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मनरेगा में मस्टररोल ट्रेकिंग सिस्टम

मनरेगा में मस्टररोल ट्रेकिंग सिस्टम
08 Dec 2010

श्रीगंगानगर। मनरेगा में श्रमिकों को एक पखवाड़े में मजदूरी भुगतान सुनिश्चित करने के लिए जिले में मस्टररोल ट्रेकिंग सिस्टम लागू किया जा रहा है। सरकार को मजदूरी भुगतान में विलंब की शिकायतें लगातार मिलने के बाद मस्टररोल ट्रेकिंग सिस्टम लागू करने का निर्णय किया गया है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के प्रमुख शासन सचिव सीएस राजन ने जिला कलक्टर व जिला कार्यक्रम समन्वयक को जिले में सिस्टम लागू करने के लिए निर्देश दिए हैं।

इस पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने समस्त पंचायत समितियों के विकास अधिकारियों को परिपत्र जारी कर सिस्टम को अमली जामा पहनाने के निर्देश हैं। पंचायत समिति श्रीगंगानगर, सूरतगढ़ व रायसिंहनगर में यह लागू भी कर दिया और अन्य पांच पंचायत समितियों में इसकी कवायद शुरू हो गई है।

यह है सिस्टम
मस्टररोल ट्रेकिंग सिस्टम में भुगतान की की प्रक्रिया एवं समयावधि निर्धारित कर दी गई है। यह सुनिश्चित किया गया है कि श्रमिकों को भुगतान हर हालत में पखवाड़ा समाप्ति के पंद्रह दिवस के अंदर हो जाए। भुगतान के लिए जिम्मेदार कर्मचारी-अधिकारियों की ओर से की जानी वाली कार्रवाई के लिए निर्धारित तिथि पहले से ही निश्चित कर दी है। कार्रवाई में किस कर्मचारी-अधिकारी के यहां कितना विलंब हुआ इसका अंकन भी होगा। इसमें देरी करने वालों के खिलाफ विभाग अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करेगा।

देरी पर जुर्माना
इसमें पखवाड़ा से भी अधिक समय तक मजदूरी भुगतान नहीं होने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। जुर्माना राशि की अदायगी विलंब के लिए उत्तरदायी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को करनी होगी। श्रमिक को देरी से मजदूरी का भुगतान मिलने पर दावा करना होगा। इस पर मुआवजा तीन हजार रूपए देय होगा। प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष दावा भुगतान प्रार्थना पत्र लंबित रहते हुए बकाया मजदूरी भुगतान कर दिया जाएगा तो भी 2 हजार रूपए श्रमिक को भुगतान करना होगा।

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राजस्व रिकार्ड में महानरेगा सडकों का अंकन

राजस्व रिकार्ड में महानरेगा सडकों का अंकन
10 Dec 2010


बांसवाडा । महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत निर्मित सडकों का अंकन अब प्रशासन गांवों के संग अभियान के तहत राजस्व रिकार्ड में किया जा सकेगा। जयपुर जिले में अपनाए इस नवाचार को पूरे प्रदेश में लागू करने के आदेश जारी किए गए हैं।

ग्रामीण विकास और पंचायतीराज विभाग के आयुक्त व शासन सचिव तन्मय कुमार की ओर से आठ दिसम्बर को जारी आदेशानुसार महानरेगा के तहत निर्मित सडकों का राजस्व रिकार्ड में अंकन करने की जयपुर जिला प्रशासन की पहल को अच्छा प्रयास माना है और इसे पूरे प्रदेश में लागू करने के लिए जिला कार्यक्रम समन्वयकों को निर्देश दिए हैं।

यह हैं आदेश

निजी खातेदारी से निर्मित सडकों के संबंध में सडक क्षेत्र में आने वाली भूमि के क्षेत्रफल की गणना कर संबंधित काश्तकार से समर्पणनामा लेने और राजस्थान टीनेन्सी एक्ट 1955 की धारा 59 के प्रावधानों के तहत तहसीलदार समर्पणनामा सत्यापित करेंगे। इसके उपरांत ही सडकों के क्षेत्र का राजस्व अभिलेख में अंकन किया जाएगा।

मंजूरी पर स्थाई अंकन

सिवायचक और चारागाह भूमि में निर्मित सडकों का शिविरों में राजस्थान भूमि राजस्व नियम 1957 के नियम 59 के तहत नक्शे में अंकन किया जाएगा। तहसीलदार इसके प्रस्ताव तैयार कर उपखंड अधिकारी के माध्यम से जिला कलक्टर को मंजूरी के लिए भिजवाएंगे। मंजूरी जारी होने पर राजस्व रिकार्ड में सडकों और रास्तों की भूमि का स्थायी अंकन किया जाएगा। सडकों का विवरण शिविर में उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी कार्यक्रम अधिकारियों को सौंपी गई है।

वेज लिस्ट की नई व्यवस्था

इधर, श्रमिकों को होने वाले भुगतान के लिए जारी होने वाली कम्प्यूटराइज्ड वेज लिस्ट के संबंध में भी नई व्यवस्था की गई है। अब विकास अधिकारी व कार्यक्रम अधिकारी की ओर से जारी वेज लिस्ट दोनों अधिकारियों के हस्ताक्षर के बाद कार्यकारी संस्था को नहीं भेजी जाएगी। न ही कार्यकारी संस्था के किसी अधिकारी के हस्ताक्षर कराए जाएंगे। वेज लिस्ट को विकास अधिकारी, कार्यक्रम अधिकारी और लेखा सहायक के हस्ताक्षरों के बाद बैंक या पोस्टऑफिस में भुगतान के लिए भेजा जाएगा।


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नरेगा के इम्पैक्ट का पता लगाएगा सुविवि

उदयपुर। नरेगा से अब तक गांवों में भौतिक से लेकर सामाजिक जीवन पर क्या असर पड़ा है, इसका पता लगाने की जिम्मेदारी उदयपुर के मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय को दी गई है। इसके लिए ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय ने 30 लाख रूपए स्वीकृत किए हैं।

सुविवि के कुलपति प्रो. आई.वी. त्रिवेदी ने बताया कि इम्पैक्ट का सर्वेक्षण राज्य के सातों संभागों के एक-एक जिले में किया जाएगा। उदयपुर संभाग में बांसवाड़ा, अजमेर में भीलवाड़ा, जोधपुर में जैसलमेर, भरतपुर में झालावाड़, बीकानेर में गंगानगर, कोटा में सवाईमाधोपुर और जयपुर संभाग में दौसा जिले में यह सर्वेक्षण किया जाएगा।

इम्पैक्ट के मुख्य बिन्दु
-स्वीकृतियों के अनुसार काम हुए या नहीं?
-रोजगार पाने वालों के जीवन स्तर पर क्या प्रभाव पड़ा?
-गांवों में कराए कार्यो से जनता को क्या लाभ हुआ?
-अब और किस तरह के कार्यो की आवश्यकता है?

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दिल्ली में लगेगा नरेगा मेला

दिल्ली में लगेगा नरेगा मेला

भीलवाड़ा। केन्द्र सरकार एक बार फिर महात्मा गांधी नरेगा मेला लगाने की तैयारी में जुट गई है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से महात्मा गांधी नरेगा कानून पारित होने के दिवस 2 फरवरी को नई दिल्ली में होने वाले मेले में देश के प्रत्येक राज्य से दल शामिल होगा।

मेले में नरेगा में टीम भावना से श्रेष्ठ कार्य करने वाले जिला परियोजना समन्वयक (कलक्टर) के वार्षिक पुरस्कार भी दिए जाएंगे। मेले में नरेगा क्रियान्वयन में श्रेष्ठ कार्य करने वाले बैंक एवं डाकघर अधिकारियों का भी सम्मान होगा।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव बीके सिन्हा ने 7 दिसम्बर को राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेज मेले की तैयारी के निर्देश दिए। केन्द्र सरकार का पत्र मिलने के बाद राज्य सरकार ने नरेगा मेले के लिए जिला स्तर से जानकारी जुटाना शुरू कर दिया है। मेले में राज्य स्तर पर नरेगा में अर्जित उपलब्धियों का प्रदर्शन होगा।

श्रेष्ठ जिला कार्यक्रम समन्वयक पुरस्कार पाने के लिए आवेदन 20 दिसम्बर तक किए जा सकेंगे। आवेदन करने वाले जिला कलक्टरों को मेले में नरेगा में हासिल उपलब्धियों का दस्तावेजी प्रस्तुतीकरण करना होगा। मेले में शामिल होने वाले राज्य के दल में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव, लाइन विभागों के राज्य स्तरीय अधिकारी, जिला कार्यक्रम समन्वयक, पंचायतराज जनप्रतिनिधि, नरेगा श्रमिक शामिल होंगे।


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नरेगा की पाई-पाई का हिसाब मांगा, प्रशासन सकते में


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जयपुर. नरेगा में प्रशासनिक खर्च के ब्यौरे की जानकारी मांगे जाने से प्रदेश के सभी 33 जिलों के कलेक्टरों सहित प्रशासनिक अमले और जनप्रतिनिधियों में हड़कंप मचा हुआ है।

सूचना एवं रोजगार का अधिकार अभियान से जुड़े मोहनसिंह ने सूचना के अधिकार के तहत ये जानकारी मांगी है। उनसे सूचनाएं देने के लिए 15 से अधिक जिलों में 1,71,477 रु. मांगे गए हैं। अन्य जिलों में भी पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों को जानकारियां देने के लिए मामला रैफर किया गया है। इनसे मिलने वाली सूचनाओं के लिए अलग से राशि देनी होगी।

दूसरी ओर, अगर प्रशासन ने 30 दिन में ये जानकारियां नहीं दी तो मोहनसिंह को सभी जानकारियां नि:शुल्क उपलब्ध करानी होंगी। नरेगा में प्रशासनिक खर्च के लिए 6 प्रतिशत राशि का प्रावधान है। इसमें वेतन-भत्तों के साथ श्रमिकों की सुविधाओं से संबंधित सामग्री की खरीद की जा सकती है।

फंस सकते हैं कई अफसर: अगर जानकारी उपलब्ध कराई गई तो ऐसे सारे मामले सामने आ जाएंगे, जो सोशल ऑडिट में नहीं बताए गए या जिनको छिपाया गया है। ऐसे में कई अफसर और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ जांच शुरू हो सकती है और मामला भी दर्ज हो सकता है।

ये सूचनाएं मांगीं: नरेगा में जिले के लिए कितनी राशि जारी की गई है। 2008-09 और 2009-10 में प्रशासनिक मद में कितना खर्च किया गया है।इस राशि से कितने कंप्यूटर, प्रिंटर, लेपटॉप और अन्य उपकरण लिए गए। इसके अलावा दवाइयां, दरी, पालना, टेंट, पानी टंकी, मटके, फर्नीचर और खुदाई से संबंधित औजार की खरीद के बिल, भुगतान वाउचर, ऑडिट और अन्य जांच से जुड़े दस्तावेजों की कॉपी मांगी गई है।

दायरे में कौन: 33 कलेक्टर, 33 जिला प्रमुख, 33 सीईओ, 248 प्रधान, 248 बीडीओ, 9168 सरपंच, 9168 ग्राम सेवक, 1.25 लाख जिला परिषद सदस्य, पंचायत समिति सदस्य और वार्ड पंचों के साथ विभागों के लेखा और तकनीकी कर्मचारी।

किसने कितनी राशि मांगी:

पंचायत समिति रामगढ़ (अलवर) 50,000
जिला परिषद, डूंगरपुर 30,000
जिला परिषद, अजमेर 20,000
जिला परिषद, झुंझुनूं 20,000
जिला परिषद, चूरू 11,022
पंचायत समिति, सवाई माधोपुर 24,000
जिला परिषद, सवाई माधोपुर 2972
पंचायत समिति, मारवाड़ जंक्शन (पाली) 4354
जिला परिषद, टोंक 3706
जिला परिषद, बांसवाड़ा 2943
पंचायत समिति, रियां बड़ी (नागौर) 1680
जिला परिषद, श्रीगंगानगर 800


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नरेगा : मजदूरी बांटी नहीं सामग्री खरीद ली

जयपुर. चित्तौड़गढ़ जिले में 2009—10 के दौरान नरेगा मजदूरों के हिस्से के 10 करोड़ रुपए में से रोड़ी, पत्थर और दूसरी सामग्री खरीदने की शिकायतों की जांच नरेगा आयुक्त ने शुरू कर दी है। जिले की सभी 11 पंचायत समितियों में मनमाने तरीके से कुल 127.86 करोड़ रु. खर्च किए गए, जबकि नरेगा गाइडलाइन के अनुसार 60 प्रतिशत पैसा मजदूरी पर और 40 प्रतिशत पैसा सामग्री पर खर्च करना होता है।

जिले की 288 ग्राम पंचायतों में रोड़ी, पत्थर और दूसरी सामग्री खरीदने पर 51 करोड़ रु. के बजाय 61.07 करोड़ रुपए खर्च करने से नरेगा श्रमिकों को 10 करोड़ रुपए कम मिले। श्रमिकों के हिस्से में 76 करोड़ रु. की जगह 66.79 करोड़ रु. ही आए। पूरे जिले में कहीं पर भी श्रम व सामग्री में 60:40 के अनुपात के नियम का पालन नहीं किया गया।

नरेगा गाइडलाइनों का उल्लंघन करने की कई जिलों से शिकायतें मिली हैं। चित्तौड़गढ़ मामले की जांच करवाई जा रही है।
तन्मय कुमार, नरेगा आयुक्त
सौ. भास्‍कर.कॉम


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नरेगा के कामों में हुई 35% कमी

जयपुर.ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग नरेगा में काम कराने और लोगों को रोजगार देने में 2008 की तुलना में काफी पिछड़ गया है। 2008 के अप्रैल से अक्टूबर की 2010 के इसी अवधि की तुलना करने पर लोगों को रोजगार देने और सामग्री पर खर्च में 35 प्रतिशत की कमी आई है।


इसमें रोजगार देने में 29.22 प्रतिशत और सामग्री पर खर्च में 48.62 प्रतिशत तक की गिरावट है। वजह यह बताई जा रही है कि भ्रष्टाचार को रोकने के नाम पर की गई कसावट के कारण निचले स्तर पर अफसरों ने काम कम कर दिए।


प्रतिपक्ष के लोगों का कहना है कि इससे लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा। पंचायतीराज मंत्री भरतसिंह ने इस संबंध में पूछे गए सवाल पर कहा, ‘मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा।’ वैसे विभाग के अधिकारी इसके लिए मानसून के दौरान अच्छी बारिश के बाद लोगों के खेती में लग जाने को कारण बता रहे हैं।


नरेगा में 2008 के मुकाबले आई कमी के कारण 1200 करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्रदेश में आने से रह गई। 2008 में इस अवधि में भाजपा की सरकार थी, जबकि अभी कांग्रेस की सरकार है।

भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने के लिए निचले स्तर के अफसरों ने
काम को सीमित कर दिया है। सरपंचों के भी रुचि नहीं लेने की जानकारी मिली है। इसका असर उन मजदूरों पर पड़ रहा है, जिनके पास न तो खेती करने लायक जमीन
है और न ही मजदूरी का कोई दूसरा साधन।

यहां मजदूरी में कमी

अलवर, बारां, भरतपुर, धौलपुर, झालावाड़ और जोधपुर जिलों में मजदूरी में 50 फीसदी तक कमी।

यहां सामग्री में कमी

अजमेर, अलवर, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, जालोर, झालावाड़, जोधपुर, करौली और सिरोही जिलों में 30 से 80 फीसदी तक कमी।

कमी के कारण

>भ्रष्टाचार रोकने के लिए कसावट करने से निचले स्तर पर काम में रूचि लेना कम।

>सरपंचों और ग्राम सेवकों के आंदोलन से काम में देरी हो गई।

>सामग्री के आंकड़े में कमी का कारण टेंडरों में विलंब होना रहा है।

>अच्छे मानसून के बाद अधिकांश मजदूर खुद या जमींदारों के यहां खेती में जुटे।

>खरीफ के बाद रबी में भी खेतों में लोगों को अच्छी मजदूरी मिल रही।


"भीलवाड़ा में सोशल ऑडिट होने के बाद से महानरेगा में प्रदेशभर के सरपंचों ने काम करना कम कर दिया है। इससे लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा। वैसे बारिश से लोगों को रुझान खेती की ओर भी हुआ है। सामग्री में कम खर्च के लिए सरकार जिम्मेदार है।"

लालसिंह,

सूचना एवं रोजगार का अधिकार

अभियान के कार्यकर्ताखर्च बढ़ाना हाथ में नहीं

प्रमुख ग्रामीण विकास सचिव सी.एस. राजन से बातचीत

>काम में कमी के कारण?

यह कार्यक्रम मजदूरी की मांग के अनुसार चलता है। इसमें काम और खर्च को बढ़ाना अपने हाथ में नहीं है।


>क्या काम सीमित कर दिया गया है?

नहीं। किसी को काम नहीं मिला हो तो बताएं। किसी को बुलाकर तो काम दिया नहीं जा सकता। भ्रष्टाचार को रोकने के कारण खर्च में आंशिक कमी आई है। ये अच्छा संकेत है।


>2008 के मुकाबले कमी का विशेष कारण?

तब अकाल था। इस बार मानसून अच्छा रहा। इससे लोगों को खेतों में काम मिल रहा है।


>सामग्री में कमी का कारण?

सरपंचों और ग्रामसेवकों की हड़ताल से विलंब हो गया था। अब टेंडर हो रहे हैं।


मांगने पर भी नहीं दे रहे काम

पूर्व मंत्री कालूलाल गुर्जर से बातचीत

>कामों में कमी का कारण?

कांग्रेस का शासन आते ही लोगों ने फर्जीवाड़ा किया। वोट लेने के लिए किसी को कुछ कहा नहीं। अब काम देने पर परोक्ष रोक लगा रखी है। लोग मजूरी के लिए रोते-फिरते हैं।


>क्या और भी कारण हैं?

नरेगा में प्रशासनिक खर्च बढ़ा है, लेकिन लोगों को मजदूरी नहीं मिल रही। मेरे कार्यकाल में काम के साथ समय पर और पूरी मजदूरी मिलती थी। अच्छे काम के लिए तीन तीन कलेक्टरों को इनाम मिला था, केंद्र राजस्थान का उदाहरण देता था। अब उल्टा हो रहा है और यहां के अफसर ट्रेनिंग के लिए आंध्रप्रदेश जा रहे हैं।


>सामग्री खर्च में कमी का क्या कारण हो सकता है?

राजीव गांधी सेवा केंद्र के काम शुरू कर दिए, सरकार पैसा नहीं दे रही। आगे का काम कैसे होगा। पिछड़े वर्ग के सरपंचों के पास अग्रिम देने को पैसा नहीं है, काम प्रभावित होगा ही।
सौ.भास्‍कर.कॉम
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