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नरेगा में संशोधन की जरूरत

यूपीए सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना नरेगा को 7 दिसम्बर, 2005 अधिसूचित किया गया था। इस कानून का लक्ष्य हर वित्तीय साल में प्रत्येक गरीब परिवार के एक वयस्क परिवार को कम से कम 100 दिन का रोजगार सृजन वाला गैर-हुनर काम मुहैया कराना है। यानी नरेगा का उद्देश्य- हर हाथ को काम और काम का पूरा दाम दो। निश्चित ही, यूपीए सरकार का यह एक सराहनीय कदम था

2 फरवरी, 2009 में आन्ध्र प्रदेश के अंनतपुर जिले से शुरु हुई रोजगार गारंटी योजना अपनी शुरुआती चरण में देश के 200 जिलों से शुरु हुई थी। परन्तु योजना की सफलता को देखते हुए 1 अप्रैल 2008 से देश के बाकी जिलों को भी नरेगा से जोड़ दिया गया। यानी नरेगा अब पूरे देश में लागू है। देश के करीब 4.5 करोड़ गरीब एवं बेरोजगार परिवारों को सालाना 10,000 रुपये की आमदनी की पुख्ता व्यवस्था यूपीए सरकार ने अपने इस महत्वाकांक्षी योजना से करने का प्रयास किया है। निश्चित ही इसके द्वारा यूपीए सरकार ने देश से गरीबी और बेरोजगारी मिटाने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। यही वजह है कि यूपीए सरकार ने ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) पर फिर से भरोसा जताते हुए वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व में वित्त-वर्ष 2009-10 के बजट अनुमान में नरेगा के लिए 39,100 करोड़ रुपये का इंतजाम किया है, जो पिछले वित्त वर्ष के बजट अनुमान से 144 प्रतिशत और संशोधित अनुमान से 33 प्रतिशत ज्यादा है। अत: नरेगा केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी योजना हो गई है। लेकिन मौजूदा सवाल यह है कि इस योजना को लेकर कुछ आशंकाएं अभी भी बरकरार है। जिस पर विशेष रूप से गौर करना बहुत जरूरी है।

निश्चित तौर पर गरीबों के लिए विकास के इतिहास में इससे पहले इस तरह की कोई इतनी महत्वपूर्ण पहल नहीं की गई थी। फिर भी, देश में गरीबों की संख्या में कमी के बजाय उनकी संख्या में और वृद्धि दर्ज की गई है। भले सरकार प्रत्येक वर्ष नरेगा पर करोड़ों रुपया व्यय कर रही है, ताकि देश में मौजूद गरीबी और बेरोजगारी की दर को कम किया जा सके और सभी को दो वक्त की रोटी आसानी से मुहैया कराया जा सके। परन्तु नरेगा के द्वारा न तो देश में गरीबी की दर कम हो सकती है, और न ही गरीबों को दो वक्त की रोटी नसीब हो सकती है। ताजा आंकलन के अनुसार देश में गरीबों की तादाद 28 प्रतिशत से बढ़कर 37.2 प्रतिशत हो गई है। इसका मतलब है कि 11 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे सरक गए हैं। यानी वर्तमान समय में देश का हर तीसरा नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रहा है। यह आंकलन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष रह चुके सुरेश तेंदुलकर कमेटी का है। यह तो सरकारी आंकड़ा है, लेकिन असलियत क्या है इसका अंदाज तो सेनगुप्ता कमेटी रिपोर्ट से मिलता है। उसके अनुसार भारत के 77 फीसदी लोग 20 रुपये रोज पर गुजारा करते हैं। सवाल यह है कि किसे सही माना जाए? तेदुंलकर को या सेनगुप्ता को? गरीबों के लिए इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि उनके देश में उनका सही आंकलन नहीं हो पाता है। ऐसे देश में गरीबों के लिए बनी योजनाएं कितनी कारगर होंगी, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।

पर मौजूदा सवाल यह है कि देश में गरीबी को आंकने के जिन नए तौर तरीकों को अबतक अपनाया गया है उसके मद्देनजर नरेगा क्या वास्तव में गरीबों के लिए आजीविका की योजना है। यही सवाल नरेगा के सामने आता है। भारत में सदैव से संयुक्त परिवार की प्रथा चली आई है। और संयुक्त परिवार प्रथा में चार से चालीस सदस्य होते हैं, जिनका खाना एक ही चूल्हे पर बनता है। तो एक जाब कार्ड से 40 सदस्यों की खाद्य सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है। रोजगार गारंटी कानून के प्रावधान इस संदर्भ में स्पष्ट बयान करते हैं कि माता-पिता और दो बच्चों की प्रत्येक इकाई को एक परिवार माना जाएगा और उन्हें एक जाब कार्ड निर्गत किया जाएगा। लेकिन व्यावहारिक रूप में चार से ज्यादा सदस्यों के परिवार को भी एक ही कार्ड दिया जा रहा है।

ऐसे में क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि 100 दिन के रोजगार से किसी गरीब परिवार के 365 दिन की आजीविका सुनिश्चित हो सकती है।

इसके अलावा नरेगा के क्रियान्वयन को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। मसलन कहीं जाब कार्ड बन जाने पर भी काम न मिलने की शिकायत है, तो कहीं पूरे सौ दिन काम न मिलने की और कहीं हाजिरी रजिस्टर में हेराफेरी की। वहीं दूसरी ओर कई राज्यों में यह योजना भष्ट्राचार के अधीन हो गई है। इस तरह यदि किसी परिवार को 40 या 50 दिन ही रोजगार मिलता है, तो ऐसे में परिवार का गुजारा कैसे सुनिश्चित किया जा सकेगा? अगर हम कानून के क्रियान्वयन पर सवाल न उठाकर यह मान लें कि हमारी सरकार ने हमें 100 दिन की मजदूरी दे भी दी है तो क्या गरीब परिवार गरीबी रेखा से बाहर निकलकर उस इंडिया में शुमार हो जायेंगे जिसमें 25-30 करोड़ लोग रहते हैं। यदि प्रति परिवार को 100 दिन का रोजगार मिल भी जाता है तो 100 दिन की न्यूनतम राशि 100 रुपये के हिसाब से 10,000 रुपये प्रति चार सदस्यीय परिवार को एक वर्ष में मिलती है। इसका मतलब है कि चार सदस्यीय परिवार के प्रत्येक सदस्य के हिस्से में प्रतिवर्ष 2500 रुपये, प्रतिमाह 208.33 रुपये एवं प्रतिदिन 6.93 रुपये की राशि आती है। इस राशि से यह साफ स्पष्ट है कि एक परिवार तो दूर एक व्यक्ति की भी खाद्य सुरक्षा को प्रतिदिन सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।

सवाल अहम यह है कि सरकार ने नरेगा योजना किस पैमाने को आधार मानकर बनाई है। यहां एक तरफ देश में प्रतिदिन 20 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति को गरीबी की श्रेणी में रखा है। वही नेरगा के अन्तर्गत आय का जरिया प्रति व्यक्ति मात्र 6.93 रुपये की राशि है। ऐसे में नरेगा जैसी योजना का क्या औचित्य रह जाता है। क्योंकि नरेगा की राशि से गरीब न तो दो वक्त की रोटी जुटा सकते हैं, और न ही सरकार गरीबी की बढ़ती तादाद को रोक सकती है।

हम जरा सोचें कि अगर कोई इंसान, इंसान की तरह रहना चाहे तो उसे कम से कम क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और रहने के लिए घर चाहिए ही चाहिए। बीमार पड़ने पर दवा भी चाहिए और अगर मिल सके तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा भी चाहिए। क्या नरेगा की इस राशि से यह सबकुछ संभव है। अत: नरेगा के प्रतिदिन के 6.93 रुपये की राशि से इंसान का पेट भरना तो दूर एक पालतू जानवर का भी पेट नहीं भरा जा सकता है। यही कारण है कि आज देश में करीब 24 करोड़ लोगों को एक वक्त भूखे ही सोना पड़ता है। वो इसलिए कि वे इंसान हैं। गरीब परिवार में कभी बाप भूखा सोता है तो कभी मां और कभी-कभी बच्चों को भी इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है।

अत: यह एक गंभीर एवं चिन्ता का विषय है कि देश में गरीबों ने अपनी पहचान बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और काफी मुश्किलों के बाद वे 100 दिनों के रोजगार के हकदार बने। किन्तु गरीबों के साथ यह विंडबना रही कि इसके बाद भी वह गरीबी रेखा से ऊपर नहीं आ सके। इसीलिए जरूरी है कि अब नए सिरे से नरेगा पर फिर से विचार किया जाये। साथ ही नरेगा की मजदूरी दर में सुधार किया जाए। इसके अलावा नरेगा में सौ दिन काम की गारंटी की संख्या को भी बढ़ाया जाए। ताकि वास्तव में देश से गरीबी और बेरोजगारी को इस योजना के द्वारा खत्म किया जा सके। अन्यथा सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना पर हमेशा सवाल खड़े होते रहेंगे।

Source:-रवि शंकर,www.bhartiyapaksha.com

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सूचना का अधिकार अधिनियम

सूचना का अधिकार अधिनियम
यदि कोई आरटीआई आवेदक किसी सरकारी विभाग या मंत्रालय से मांगी गई सूचनाओं से संतुष्ट नहीं है या उसे सूचनाएं नहीं दी गईं हैं तो अब उसे केन्द्रीय सूचना आयोग के दफतरों में भटकने की जरूरत नहीं है। अब वह सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकता है। सीआईसी में शिकायत के लिए वेबसाइट http://rti.india.gov.in में दिया गया फार्म भरकर सबमिट पर क्लिक करना होता है। क्लिक करते ही शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है।


भारत सरकार ने ई गवरनेंस और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केन्द्र के सभी मंत्रालयों से संबंधित सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी थी लेकिन इसके साथ ही अब वेबसाइट के माध्यम से केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है। इसके अतिरिक्त अपील का स्टेटस भी देखा जा सकता है। सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है। सरकार की इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेयता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

सूचनाओं को ऑनलाइन करने के पीछे यह मान्यता है कि देश के सभी नागरिक सरकार को कर देते हैं, इसलिए सभी नागरिकों को समस्त सरकारी विभागों से सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार है। देश में सूचना का अधिकार आने के बाद लगातार मांग की जा रही थी कि सभी सरकारी सूचनाएं ऑनलाइन होनी चाहिए ताकि नागरिकों को सूचनाएं प्राप्त करने में दिक्कतों का सामना न करना पडे़। साथ ही आरटीआई आवेदन एवं अपीलों को ऑनलाइन करने की व्यवस्था की भी जरूरत महसूस की गई जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम: संदर्भ एवं राष्ट्रीय महत्त्व

डूंगरपुर की रोजगार गारंटी योजना – परिवर्तन के चिन्ह


Source:
निर्मला लक्ष्मणन/ nregaconsortium.in

एक महत्वपूर्ण सॉशल ऑडिट की रिपोर्ट से पता चला है कि राजस्थान के डूंगरपुर में जहाँ लोग रोजगार को लेकर चुनौतियों से जूझ रहे थे, वहाँ अब सार्वजनिक कार्यों में रोजगार में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

देश के बेहद गरीब ग्रामीण इलाकों में एक “खामोश क्रान्ति” की शुरुआत हो चुकी है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (नरेगा), देश के चुनिन्दा जिलों में 2 फ़रवरी से प्रारम्भ हो चुका है और इससे इन जिलों की तस्वीर बदलने लगी है। राजस्थान से चुने गये छः जिलों में से एक है डूंग़रपुर, जिसे नरेगा लागू करने हेतु प्रथम चरण में चुना गया है। यहाँ किये गये एक सॉशल ऑडिट के अनुसार पता चला है कि गरीब ग्रामीणों के जीवन में गत दो माह में ही सुधार हुआ है। यहां आधे से अधिक परिवारों का कम से कम एक सदस्य नरेगा के तहत रोजगार पा चुका है।

यह सामाजिक परीक्षण रिपोर्ट अप्रैल के अन्त में जाँची गई, जिसमें 11 राज्यों के 600 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। आस्था संस्थान और मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS)

प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण कोई रामबाण इलाज नहीं है…


वेब/संगठन: nregaconsortium.in
Source: मिहिर शाह

गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रम उसी समय सफ़ल सिद्ध हो सकते हैं, जब ऐसे कार्यक्रम उन्हें सतत आजीविका चलाने लायक बना सकें, ताकि गरीब सरकारी मदद पर आश्रित ही न रहें। इस कार्य के लिये मजबूत जन-संस्थान, सटीक तकनीक, मानव संसाधन का हुनर विकास, बाज़ार की सहायता तथा एक पर्याप्त निवेश सभी साथ में होना चाहिये। डायरेक्ट कैश ट्रांसफ़र (DCT) नामक शब्द आजकल विकास समूहों के भीतर काफ़ी चर्चा में है। इकोनोमिस्ट अरविन्द सुब्रह्मणियन ने भारत में गरीबी दूर करने के तौर तरीकों के बारे में अपनी पुस्तक “फ़र्स्ट बेस्ट ऑप्शन” मे DCT के बारे में लिखा है (द हिन्दू, अगस्त 24, 2008)। हाल ही में प्रकाशित “इकॉनॉमिक एण्ड पोलिटिकल वीकली (अप्रैल 12, 2008)” के अंक में सुब्रह्मणियन के विचारों से देवेश कपूर और पार्थ मुखोपाध्याय (KMS) ने भी अन्य कई मुद्दों पर विस्तार से सहमति जताई है। KMS कहते हैं, खाद्य, उर्वरक और ईंधन इन तीन प्रमुख वस्तुओं पर भारत के केन्द्रीय बजट में केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में ही लगभग 2,00,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती है। वे पूछते हैं कि – क्या भारत के गरीबों के विकास और उसके उन्मूलन के लक्ष्यों को केन्द्रीय तन्त्र के माध्यम से इतनी विशाल धनराशि खर्च करके भी पाया जा सका है? क्या यह एक अच्छा तरीका कहा जा सकता है? मैं कहूँगा, निश्चित ही है, बजाय इसके कि मुँह में पानी लाने लायक एक करोड़ की राशि प्रत्येक ग्राम पंचायत के खाते में सीधे डाल दी जाये।

नरेगा प्रश्नोत्तर

नरेगा प्रश्नोत्तर, NREGA Question & Answer
  • प्रश्न - नरेगा में ग्राम पंचायतों की क्या भूमिका है?
उत्तर - सबसे पहले तो ग्राम पंचायतों को पंजीकरण के आवेदनों की छंटनी कर उन्हें ‘पंजीकृत’ करना है। इसका मतलब है संभावित मजदूरों का पंजीकरण करना, उन्हें जाब कार्ड जारी करना, रोजगार के लिए दिए गए आवेदनों को प्राप्त करना, उन्हें कार्यक्रम अधिकारी को भेजना, और काम उपलब्ध हो तो आवेदकों को उसकी सूचना देना। पंजीकरण और रोजगार पाने के आवेदन सीधे कार्यक्रम अधिकारी को भी प्रेषित किए जा सकते हैं, पर उम्मीद सामान्य रूप से यही है कि वे ग्राम पंचायत के स्तर पर ही जमा किए जाएंगे। उम्मीद यह रखी गई है कि ग्राम पंचायत, ग्राम सभा की अनुशंसाओं के आधार पर अपने ग्राम के लिए एक ‘विकास योजना’ बनाएगी और रोजगार गारंटी योजना के तहत ‘संभावित कार्यों’ की सूची तैयार करेगी। इसके बाद जब कार्यक्रम अधिकारी परियोजनाओं की स्वीकृति देगा तो ग्राम पंचायत उन्हें क्रियान्वित भी करेगी। इन परियोजनाओं से संबंधित सभी दस्तावेज मस्टर रोल के साथ ग्राम सभा को सामाजिक अंकेक्षण के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे। रोजगार गांरटी योजना के तहत ग्राम पंचायत द्वारा क्रियान्वित करवाए गए सभी कार्यों की निगरानी की जिम्मेदारी ग्राम सभा तथा कार्यक्रम अधिकारी की होगी।
  • प्रश्न - नरेगा के तहत क्या मजदूरों को कार्यस्थल पर कुछ विशिष्ट सुविधाओं का हक है?
उत्तर
जी हां। कार्यस्थल पर निम्नलिखित सुविधाएं मुहैया करवाई जानी चाहिए: सुरक्षित पेयजल, बच्चों के लिए छाया, आराम करने का समय, छोटी-मोटी दुर्घटनाओं और काम से जुड़े स्वास्थ्य खतरों के लिए सामग्री समेत प्राथमिक उपचार का डब्बा (फर्स्ट एड बाक्स)। वैसे तो यह भी नाकाफी है पर अक्सर कार्यस्थलों पर इतनी भी सुविधा नहीं मिल पाती। अत: यह जरूरी है कि कम से कम इतने की व्यवस्था करने पर जोर दिया जाए।

प्रश्न - काम कहां उपलब्ध करवाया जाएगा?


उत्तर
जहां तक संभव हो आवेदक के निवास स्थान से अधिकतम 5 कि. मी. की दूरी पर ही काम उपलब्ध करवाया जाएगा। अगर काम इस परिधि के बाहर उपलब्ध करवाया जाता है तो, वह उसी खण्ड में करवाया जाएगा और ऐसी स्थिति में मजदूरों को यातायात व गुजारे भत्ते के रूप में दैनिक भुगतान दर की 10 प्रतिशत राशि भी अतिरिक्त देय होगी।

प्रश्न - अगर रोजगार गारंटी योजना के कार्यस्थल पर कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या होगा?


उत्तर
अगर कोई मजदूर रोजगार गारंटी योजना के ‘काम से उपजी या काम के दौरान दुर्घटना से’ घायल होता/होती है तो उसे योजना के तहत स्वीकृत नि:शुल्क चिकित्सा-उपचार का हक होगा। अगर उसे अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है तो उसे अस्पताल में रहने, उपचार, दवाओं का खर्च और दैनिक भत्ता पाने का हक होगा। यह दैनिक भत्ता उसकी ‘मजदूरी दर से कम से कम आधा होगा।’ ऐसे ही प्रावधान उन बच्चों के लिए भी हैं जो उनके साथ कार्यस्थल पर आते हैं। दुर्घटनावश मृत्यु या स्थाई विकलांगता की सूरत में उसके परिवार को या उसे रु. 25,000 या केंद्र सरकार द्वारा घोषित राशि देय होगी।

क्या मजदूरों को अपनी मर्जी का काम चुनने की छूट होगी?


उत्तर
नहीं। उन्हें वही काम करना होगा जो उन्हें ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी सौंपती/सौंपता है। वे अधिक से अधिक ग्राम सभा या अन्य माध्यमों से काम की योजना बनाने की प्रकिया में भागीदारी कर सकेंगे।
  • नरेगा के तहत मजदूरों को कितना भुगतान किया जाएगा?
उत्तर -
मजदूरों को उनके राज्य में कृषि मजदूरों के लिए मान्य न्यूनतम मजदूरी का हक है, जब तक कि केंद्र सरकार इसे निरस्त करने की अधिसूचना जारी कर कोई भिन्न मजदूरी दर की घोषणा न करे। अगर केंद्र सरकार कोई मजदूरी दर की घोषणा करती है तो यह दर रु. 60 प्रति दिन से कम नहीं होगी (भाग 6)

  • भुगतान की नियमितता क्या होगी?


उत्तर -
किए गए काम का भुगतान हर सप्ताह या किसी भी हाल में ‘काम करने की तारीख से एक पखवाड़े के अंदर’ करना होगा। साथ ही राज्य सरकार चाहे तो यह निर्देश भी दे सकती है कि मजदूरी में नकद दी जाने वाली राशि का दैनिक भुगतान किया जाए।

  • अगर मजदूरी समय पर न दी गई तो?


ऐसी सूरत में मजदूरों को वेतन भुगतान कानून 1936 के प्रावधानों के अनुसार मुआवजा पाने का हक होगा (अनुसूची II, अनुच्छेद 30)।

  • क्या स्त्रियों और पुरुषों को अलग-अलग दर से भुगतान किया जा सकता है?


उत्तर -
बिल्कुल नहीं। सभी स्त्रियों और पुरुषों को समान वेतन का हक है। सच तो यह है कि किसी भी तरह का लिंग आधारित भेदभाव करने की यह कानून मनाही करता है। (अनुसूची II, अनुच्छेद 32)
  • प्रश्न - नरेगा कानून में ‘परिवार’ को किस तरह परिभाषित किया गया है?
उत्तर -
कानून के अनुसार परिवार वह इकाई है जिसके सदस्य एक दूसरे से खून के रिश्ते से, विवाह के रिश्ते से या गोद लेने के रिश्ते से एक दूसरे से संबंधित हैं और सामान्य रूप से एक साथ रहते, साथ-साथ खाते हों या जिनका ‘राशन कार्ड’ एक हो। इस परिभाषा में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ‘संयुक्त परिवार’ के सभी सदस्य जो साथ रहते हों और जिनका राशन कार्ड साझा हो, उनकी संख्या काफी अधिक भी हो सकती है। फिर भी उन्हें एक ही परिवार माना जाएगा। यह बड़े परिवारों के प्रति अन्याय है क्योंकि उन्हें भी केवल 100 दिनों के काम का हक होगा, जो किसी छोटे परिवार को भी है फिर चाहे उनकी जरूरतें कहीं ज्यादा ही क्यों न हो। आदर्श स्थिति तो वह हो जहां प्रत्येक एकल परिवार (पति, पत्नी और उनके बच्चे) को एक अलग परिवार माना जाए।
  • प्रश्न - नरेगा के तहत मजदूर काम का आवेदन किस प्रकार करेंगे?
उत्तर
यह मूलत: दो चरणों की प्रक्रिया है। पहला चरण है ग्राम पंचायत में अपना ‘पंजीकरण’ करवाना। दूसरा चरण है काम का आवेदन देना। पंजीकरण पांच वर्षों में एक बार ही करवाना होगा परन्तु काम का आवेदन जितनी बार काम की जरूरत पड़े उतनी बार करना होगा। पंजीकरण का मुख्य उद्देश्य है कामों का नियोजन आसान बनाना। अगर कोई परिवार पंजीकरण का आवेदन करता है तो यह ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी होगी कि वह उसका पंजीकरण कर उसे एक ‘जाब कार्ड’ दे। जाब कार्ड यह सुनिश्चित करेगा कि मजदूरों के पास भी इस बात का लिखित रिकार्ड हो कि उन्होंने कितने दिन काम किया, उन्हें कितना भुगतान किया गया, बेरोजगारी भत्ता कब और कितना मिला आदि। इससे उन्हें इस सूचना के लिए किसी सरकारी अधिकारी पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। जाब कार्ड भी कम से कम पांच वर्ष के लिए मान्य होगा।

काम के लिए आवेदन किसी भी समय, ग्राम पचायत के द्वारा या सीधे कार्यक्रम अधिकारी को दिया जा सकता है। दोनों का ही यह फर्ज है कि वैध आवेदनों को स्वीकारें और तारीख के साथ उसकी प्राप्ति रसीद आवेदक को दें (अनुसूची II, अनुच्छेद 10)। आवेदन कम से कम चौदह दिनों के लगातार काम के लिए होना चाहिए (अनुसूची II, अनुच्छेद 7)।

कानून में सामूहिक आवेदनों, अग्रिम आवेदनों, समय-समय पर एक से अधिक आवेदनों का भी प्रावधान है (अनुसूची II, अनुच्छेद 10,18 तथा 19)। कानून के अनुसार उन्हें कब और कहां काम के लिए हाजिर होना है यह सूचना आवेदकों को पत्र द्वारा और साथ ही ग्राम पंचायत तथा कार्यक्रम अधिकारी के कार्यालयों के सूचनापट्ट पर सार्वजनिक नोटिस लगा कर दी जाएगी ( अनुसूची II, अनुच्छेद 11 तथा 22)। धयान रहे कि पंजीकरण की इकाइ ‘परिवार’ है, जबकि काम के आवेदन व्यक्ति के नाम से दिए जाएंगे।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किसकी होगी?
उत्तर -
रोजगार गारंटी योजना, केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए वित्त से राज्य सरकार द्वारा क्रियान्वित की जाएगी। कानून के भाग 13 के अनुसार योजना के नियोजन तथा क्रियान्वयन की ‘मुख्य सत्ता’ जिला, मध्यस्तरीय तथा ग्राम स्तर की पंचायतें होंगीं। परन्तु विभिन्न सत्ताओं के बीच जिम्मेदारी का विभाजन काफी पेचीदा है। क्रियान्वयन की मूल इकाई है ब्लाक। प्रत्येक ब्लाक में एक ‘कार्यक्रम अधिकारी’ योजना का प्रभारी होगा। इस कार्यक्रम अधिकारी का पद किसी खण्ड विकास अधिकारी (बीडीओ) से कम नहीं होगा। इसका वेतन केंद्र सरकार देगी और रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्यवयन की जिम्मेदारी उसकी अकेले की होगी। कार्यक्रम अधिकारी ‘मध्य स्तर की पंचायत’ तथा जिला समन्वयक के प्रति जवाबदेह होगा।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी योजना में किस प्रकार के काम चलाए जा सकते हैं?
उत्तर -

अनुसूची I में काम की आठ श्रेणियां शामिल की गई हैं जिन पर रोजगार गारंटी योजना में धयान देना होगा। संक्षेप में ये श्रेणियां हैं- (1) जल संरक्षण व जल संग्रहण (2) अकाल से बचाव (3) सिंचाई नहरें (4) भूमि सुधार या इंदिरा आवास योजनाओं के तहत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लाभार्थी परिवारों को सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करवाने वाले कार्य (5) परंपरागत जल स्रोतों का नवीनीकरण (6) भूमि विकास (7) बाढ़ नियंत्रण व बचाव के कार्य जिसमें पानी जमा होने वाले इलाकों से पानी निकास की व्यवस्था भी शामिल है (8) ग्रामीण इलाकों को जोड़ने के लिए पक्की सड़कों का निर्माण। इसके अलावा एक नौवीं श्रेणी भी है जिसमें कोई भी अन्य काम जिसकी अधिसूचना केंद्र सरकार, राज्य सरकार के साथ परामर्श के बाद जारी करे शामिल है।


यह सूची काफी सीमित है और इस दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005, पूर्व में नागरिकों द्वारा बनाए गए प्रारूप के विपरीत है। नागरिकों के प्रारूप में मान्य या स्वीकृत कार्यों की व्यापक परिभाषा करते हुए कहा गया था कि वे तमाम कार्य मान्य होंगे जो (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) उत्पादन बढ़ाने में, स्थाई परिसंपत्तियों के निर्माण में, पर्यावरण के संरक्षण में या जीवन की गुणवत्ता सुधारने में योगदान देते हों। अगर अनुसूची I को संशोधित न करना हो, तो इस कानून के तहत मान्य कार्यों की सूची को बढ़ाने का एक ही उपाय बचता है कि अंतिम श्रेणी में दूसरे प्रकार के कार्य भी जोड़े जाएं। कानून यह भी कहता है कि प्राथमिकता पर किए जाने वाले ‘वरीयता कार्यों’ की सूची राज्य रोजगार गारंटी परिषद द्वारा बनाई जाएगी। वरीयता सूची के कामों की पहचान इस आधार पर की जाएगी कि उनमें स्थाई परिसंपत्तियों के निर्माण की कितनी क्षमता है। जाहिर है कि यह सूची विभिन्न इलाकों के लिए अलग-अलग होगी।
  • प्रश्न - किसी एक वर्ष के दौरान व्यक्ति को कितने दिनों का गारंटीशुदा काम मिलेगा क्या इसकी कोई सीमा है?
उत्तर -
रोजगार की गारंटी ‘100 दिवस प्रति परिवार प्रति वर्ष’ तक सीमित है। धयान दें कि यहां वर्ष का अर्थ है वित्तीय वर्ष। दूसरे शब्दों में कहें तो एक अप्रैल से हर एक परिवार का 100 दिनों का नया ‘कोटा’ शुरू होता है, जो आगामी 12 महीनों के लिए है। ध्यान दें कि 100 दिन के इस कोटे को परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के बीच बांटा जा सकता है: मतलब अलग-अलग लोग, अलग-अलग दिन या एक साथ भी काम पर जा सकते हैं, बशर्ते कुल रोजगार एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों से अधिक न हो।

हालांकि अब राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) योजना की सफलता से उत्साहित होकर सरकार शहरी गरीबों के लिए भी नरेगा किस्म की योजना लाने पर विचार कर रही है।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी कानून के तहत काम पाने का हक किसे है?
उत्तर -
गारंटी शब्द सभी वयस्कों को रोजगार पाने का हक देता है, अर्थात् यह सार्वजनिक है, सब पर लागू होता है। यह कानून आत्म-चयन के सिध्दान्त पर आधारित है: जो कोई न्यूनतम मजदूरी की दर पर अकुशल काम करने को तैयार हो, उसके लिए यह मान लिया जाएगा कि उसे दरअसल सार्वभौमिक सहयोग की जरूरत है और उसे मांगने पर रोजगार दिलवाया जाएगा। अगर कोई आपको यह कहे कि रोजगार गारंटी सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले परिवारों अर्थात बी.पी.एल. कार्डधारी परिवारों के लिए ही है तो उसका विश्वास न करें।
  • प्रश्न -रोजगार गारंटी ‘योजना’ की जगह, रोजगार गारंटी ‘कानून’ का होना ही क्यों जरूरी है?
उत्तर -
एक अधिनियम रोजगार की कानूनी गारंटी देता है। इससे राज्य पर अदालत द्वारा लागू किए जा सकने वाला दायित्व डाला गया है और मजदूरों को मोलतोल कर पाने की ताकत भी मिली है। दरअसल एक कानून राज्य को जवाबदेह बनाता है। इसके विपरीत योजना में कोई कानूनी हकदारी नहीं मिलती और मजदूर सरकारी अफसरों की दया पर निर्भर रह जाते हैं। इसके पूर्व भी रोजगार संबंधी तमाम योजनाएं बनी थीं- आश्वासित रोजगार योजना (इएएस), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एनआरईपी), जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाय) संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाय), ऐसी ही योजनाओं में से कुछ है। ये सभी योजनाएं लोगों के जीवन में सुरक्षा की भावना पैदा करने में असफल रही। अक्सर लोगों को इन योजनाओं की कोई जानकारी तक नहीं होती है। एक योजना और एक कानून में एक और महत्वपूर्ण अंतर भी होता है। योजनाएं तो आती-जाती रहती हैं, पर कानून ज्यादा टिकाऊ होते हैं। अफसर योजनाओं में काट-छांट कर सकते हैं, चाहें तो उसे निरस्त भी कर सकते हैं, पर कानून बदलना हो तो संसद में संशोधन प्रस्ताव लाना पड़ता है। अत: जाहिर है कि रोजगार गारंटी कानून से मजदूरों को एक टिकाऊ कानूनी हकदारी मिलेगी। संभव है कि समय के साथ वे अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक होंगे और अपना हक पाने के लिए दावा करना भी सीखेंगे।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी कानून का बुनियादी विचार क्या है?
उत्तर -
इस कानून के पीछे जो बुनियादी सोच है, वह यह है कि जो कोई भी व्यक्ति मान्य न्यूनतम मजदूरी दर पर अनियमित मजदूरी करने को तैयार हो, उसे रोजगार की कानूनी गारंटी दी जाए। इस कानून के तहत जो भी वयस्क काम पाने का आवेदन दे उसे पंद्रह दिन की अवधि में सार्वजनिक कार्यों पर काम पाने की हकदारी है। इस प्रकार रोजगार गारंटी कानून बुनियादी रोजगार का सार्वजनिक व कानून द्वारा लागू किया जा सकने वाला अधिकार देता है। सम्मान के साथ जीने के बुनियादी अधिकार को कानून द्वारा लागू करने की दिशा में यह एक कदम है।

  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005, इन उद्देश्यों को किस हद तक हासिल करता है?


उत्तर -
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005 आधे मन से बनाया गया रोजगार गारंटी कानून है। इसके तहत कोई भी वयस्क जो काम का आवेदन करे, उसे आवेदन के बाद 15 दिन की अवधि में किसी सार्वजनिक कार्य पर काम पाने की हकदारी प्राप्त हुई है। परन्तु यह हकदारी सीमित है। उदाहरण के लिए काम की यह गारंटी केवल ग्रामीण इलाकों के लिए है और वहां भी 100 दिवस प्रति परिवार, प्रतिवर्ष तक सीमित की गई है। साथ ही 2005 में पारित कानून सजग नागरिकों द्वारा अगस्त 2004 में बनाए गए प्रारूप की तुलना में कई अर्थों में कमजोर है। पर कहने का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून बेकार है। यह सामाजिक सुरक्षा की दिशा में बढ़ने के लिए एक संभावित सीढ़ी भी है।

इस खबर के स्रोत का लिंक:

http://www.bhartiyapaksha.com/


सूचना अधिकार का तोहफा, नरेगा में करोड़ों के घोटाले

सूचना अधिकार दिवस पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी को इससे बड़ा तोहफा मिल नहीं सकता. डॉ चंदप्रकाश जोशी के लोकसभा क्षेत्र भीलवाड़ा में 11 ग्राम पंचायतों में हुए सामाजिक अंकेक्षण में एक करोड़ तेरह लाख के घोटाले का सच सामने आया है। पंचायत राज्यमंत्री भरतसिंह, नरेगा की राष्ट्रीय परिषद सदस्य और मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त अरूणा राय सहित देश भर के लगभग 2000 स्वंयसेवक इस पूरी प्रक्रिया के साक्षी बने।

देश में जनता को मिले सूचना के अधिकार का श्रीगणेश राजस्थान की धरती पर ही हुआ था। ठीक इसी प्रकार रोजगार गारंटी योजना के सामाजिक अकेंक्षण का गवाह भी यही प्रदेश बना हैं। 1 अप्रैल 2007 से सांकेतिक और 1 अप्रेल 2008 से देश भर में लागू हुआ काम का अधिकार कुछ ही समय बाद भ्रष्टाचार की भेंट चढ गया। भ्रष्टाचार के भयावह रूप से परेशान केन्द्र सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना के स्वरूप को बचाये रखने के लिए सामाजिक अंकेक्षण की एक नई स्कीम लागू की। इस प्रक्रिया के लिए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने अपने ही प्रदेश और लोकसभा क्षेत्र का चयन सबसे पहले किया।

देश
में जनता को मिले सूचना के अधिकार का श्रीगणेश राजस्थान की धरती पर ही हुआ
था। ठीक इसी प्रकार रोजगार गारंटी योजना के सामाजिक अकेंक्षण का गवाह भी
यही प्रदेश बना हैं। 1 अप्रैल 2007 से सांकेतिक और 1 अप्रेल 2008 से देश भर
में लागू हुआ काम का अधिकार कुछ ही समय बाद भ्रष्टाचार की भेंट चढ गया।
भ्रष्टाचार के भयावह रूप से परेशान केन्द्र सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी
योजना के स्वरूप को बचाये रखने के लिए सामाजिक अंकेक्षण की एक नई स्कीम
लागू की। इस प्रक्रिया के लिए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने अपने ही
प्रदेश और लोकसभा क्षेत्र का चयन सबसे पहले किया।
नरेगा योजना के सोशल ऑडिट की ये पहली पहल थी। राजस्थान के भीलवाडा जिले की 11 ग्राम पंचायतों में इस काम को अंजाम दिया गया। इसके लिए भीलवाडा की 11 पंचायत समितियों में से 11 ग्राम पंचायतों का चयन लाँटरी के आधार पर किया गया। सरकारी ऐजंसी के साथ एन जी ओं ने भी इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं । मजदूर किसान श्क्ति संगठन के साथ देश भर से पहुँचे सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने जिले भर में जागरूकता अभियान चलाया। अभियान के दौरान 8 दिनों तक पद यात्राओं के माध्यम से लोगों को पहले जागरूक किया गया। इसकें लिए जिले की 381 ग्राम पंचायतों के 1600 गाँवों के डेढ लाख नरेगा श्रमिकों से सीधा संवाद किया गया। इस दौरान उनसे कुछ सवालों को पूछा गया। ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों ने इस कार्यकम में बढ चढ कर हिस्सा लिया। पवन संस्थान के निदेशक सुरेश शर्मा का कहना था कि इस प्रकार से लोग यदि जागरूक होकर सरकारी योजनाओं के प्रति अपनी रूचि का प्रदर्शन करने लग जायेगें तो नरेगा ही नहीं सभी जगहों से भ्रष्टाचार का सफाया हो जाऐगा।

सामाजिक अंकेक्षण (सोशल आडिट) के जरिये 2008-09 के कार्यो का लेखा जोखा जाँचा गया। इसके साथ ही गुणवत्ता, उपलब्धियों, लाभांवितों और कार्यस्थलों के बारे में सीधी जानकारी ली गई। 11 ग्राम पंचायतों में इस दौरान गाँव के लोगों के सामने जाजम पर नरेगा के दौरान हुये कार्यो,खर्च हुये धन और काम पर लगे मजदूरों का विवरण रखा गया। इस दौरान कई जगहों पर तो लोग उनके यहाँ हुये कार्यो और मजदूरों के नामों को जानकर हक्के बक्के रह गये। इस दौरान कई जगहों पर तो झगडे की स्थिति पैदा हो गई। सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया में गा्रम पंचायत सांगवा में 46.97.290,बरण में 7.92.000, बडलियास में 2.76.760, रावतखेडा में 20.068, गोर्वधन पुरा में 3.43.000,लाखोला में 14.82.000 टिटोडी में 12.00.000 परा में 25.21.951 रूपयों के घोटाले सामने आये। इस बीच महत्वपूर्ण बात ये रही कि बडलियावास के सरपंच दशरथ सिंह ने अनियमितताओं को स्वीकारते हुये आधी राशि का चैक मौके पर ही जमा करा दिया।

वही अन्य के खिलाफ जिला कलक्टर ने वसूली के निर्देश दियें । इतना ही नहीं कुछ कार्मिकों के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज कराने के भी निर्देश मौके पर ही दिये गये। जिनमें एक जेईन रेखा खंडेलवाल,आदित्य तिवाडी,सचिव भगवानस्वरूप, राजकुमार अग्रवाल प्रमुख रहे। देश में नरेगा के लिए पहली बार हुये अपनी तरह के सामाजिक अंकेक्षण कार्य के लिए देश भर से सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। राजस्थान के सभी जिलों से जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को उपस्थित रहने के निर्देश दिये गये थे। इसके अलावा राज्य सरकार के प्रभारी सचिव प्रदीप सेन के अलावा कुछ दूसरे प्रमुख अधिकारियों ने भी इस कार्य को बारीकी से देखा और समझा। सामाजिक अंकेक्षण के दौरान मजदूरों ने भुगतान में देरी होने,जाँब कार्डो की गडबडियों,साम्रगी मद में हेरा फेरी करने,घटिया निर्माण सामग्री और टैक्स चोरी करने जैसी शिकायतों को प्रमुखता से सामने रखा।

नरेगा के दौरान वर्ष 2008-09 में 8 हजार करोड रूपये के काम किये गये। चालू वर्ष में 10 हजार करोड रूपयों के खर्च होने का अनुमान हैं । ऐसे में बडा सवाल ये पैदा होता है कि अकेले राजस्थान की 9195 ग्राम पंचायतों में से 11 की सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया में सवा करोड रूपये का घोटाला सामने आया है तो देश के हालात कैसे होगें। इससे एक सच्चाई तो सामने आती है कि वर्ष 2008-09 के 8 हजार करोड रूपयों में से कितनों का सही उपयोग हो पाया। भविष्य में सामाजिक अंकेक्षण की यह प्रक्रिया देश भर में लागू की जा सकती है। ऐसे में सवाल ये ही पैदा हो रहा है कि क्या इसी प्रकार से नरेगा का सच सामने आ भी पायेगा या फिर भीलवाडा की ये 11 पंचायते प्रतीक के रूप में रह जायेगीं। और भ्रष्टाचार के रास्ते इस प्रक्रिया के बीच भी ऐसी ही गलियाँ ढूँढ लेंगे जैसी सरकारी आँडिट के लिए ढूँढ रखी है। आशा है ऐसा नहीं होगा।

वेब/संगठन: visfot.com


'नरेगा से पीछे हटना संभव नहीं'

अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफ़ेसर ज़्यां द्रेज़ से बातचीत


काम का अधिकार अभियान से जुड़े ज़्यां द्रेज़ से बातचीत के औचित्य के पीछे उनका रोज़गार गारंटी के लिए चले काम का अधिकार अभियान के शुरुआती सिपाहियों में शामिल होना आता है. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की विशेष सलाहकार समिति का वो हिस्सा भी रहे और फिलहाल देशभर में रोज़गार गारंटी क़ानून के क्रियान्वयन को पूरा वक़्त दे रहे हैं.
पढ़िए, कुछ अहम अंश-

राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी क़ानून के लागू होने के बाद से लेकर अब तक की इसकी स्थिति को आप किस तरह से देख रहे हैं?

राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना (नरेगा) को जहां-जहां लागू करने में रूचि दिखाई गई वहां इसके अच्छे परिणाम आए हैं.
राजस्थान में क़ानून लागू होने के एक साल के अंदर ही काफ़ी ग्रामीणों को लगभग 70 दिन का रोज़गार मिलना शुरू हो गया. ये तभी संभव हुआ क्योंकि इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संगठनों का दबाव दोनों थे.
इसी के साथ दूसरे प्रदेशों जैसे आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में काफ़ी परिवर्तन हो रहा है. वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में अपेक्षाकृत कम रूचि देखने को मिली लेकिन अब वहां भी कुछ सुधार नज़र आने लगा है.
झारखंड के एक ज़िले में दो साल पहले एक सामाजिक सर्वेक्षण हुआ था तो तब लोगों को इस क़ानून के बारे में ज़्यादा नहीं पता था. लेकिन अब ऐसा देखा गया है कि इससे जुड़ी आम बातें, जैसे सौ दिन का रोज़गार मिलना और 15 दिनों के अंदर उसका भुगतान होना और न्यूनतम मज़दूरी पर लोगों की जागरूकता बढ़ी है.

राजस्थान में सफलतापूर्वक काम हुआ है?

लोगों की बढ़ती हुई जागरूकता से ऐसा संकेत आता है कि दबाव के साथ माँग बढ़ेगी और ये क़ानून और सटीक तरह से लागू किया जा सकेगा.
लोगो में जागरूकता आने से लोगों को अपने अधिकार जानने का मौक़ा मिलता है और लोगों के इसी दबाव से हमें उम्मीद है कि ये क़ानून बेहतर ढंग से लागू किया जा सकेगा.

आप इस क़ानून की सफलता को 10 में से कितने अंक देंगे?

देखिए ये एक मुश्किल बात है क्योंकि इसके परिणाम अलग-अलग जगहों पर भिन्न हैं. और ये इतना ज़रूरी भी नहीं है. सही ये होगा कि इसके विकास की रफ़्तार पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए जो कि अभी सभी जगहों पर काफ़ी कम ही मिलेगा.
मुख्य बात ये है कि क़ानून लाने से पूरा माहौल बदल रहा है. उदाहरण के लिए न्यूनतम मज़दूरी की बात करें तो क़ानून आने से पहले ग्रामीण इलाक़ों में लोगों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन अब धीरे-धीरे सब जान रहे हैं.
पहले उत्तर प्रदेश और झारखंड में नरेगा के तहत न्यून्तम मज़दूरी का भुगतान कम था लेकिन अब वहां भी ये व्यवहारिक होता जा रहा है. इस तरह का महत्वपूर्ण परिवर्तन हर जगह दिख रहा है.

आप नरेगा बनने से पहले की तैयारियों में शामिल रहे. इसका प्रारूप कैसा हो. क़ानून कैसा हो आदि. इसके लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाए गए. आप भारत में ग़रीब आदमी को रोज़गार दिलाने के लिए पहले से मौजूद क़ानून की तुलना में नरेगा को कैसे देखते हैं.

इसका एक फ़र्क तो ये है कि ये लोगों के संघर्ष से अमल में आया है. वहीं दूसरे क़ानून जो हैं वो ऊपर से बनाकर लाए गए. लेकिन नरेगा में जिस तरह लोगों का संघर्ष शामिल था उससे लोग सक्रिय और संगठित हो रहे हैं. इससे उम्मीद है कि ये बेहतर ढंग से लागू होगा न कि उन क़ानूनों की तरह जो कि लागू नहीं हो पाए.

आज जो नरेगा क़ानून है उसमें आपकी नज़र में क्या ख़ूबियां है? क्या सुझाव आप देना चाहेगें इसमें और सुधार लाने के लिए?

एक ख़ूबी तो ये है कि दूर दराज के गांवों में भी लोगों को इसकी जानकारी हो रही है. इसमें ग्रमीण लोगों को रोज़गार देने के लिए जो प्रावधान हैं वो बहुत स्पष्ट हैं. मैं यहां झारखंड के एक दूरस्थ गांव में हूँ और काफ़ी लोगों को इसकी जानकारी है. ये इस क़ानून की मज़बूती है.
रोज़गार न मिलने की सूरत में कहां शिकायत की जाए इसका प्रावघान उतना सशक्त नहीं है. एक छोटे से सैक्शन 25 में एक बात ये कही गई है कि इस क़ानून को सही दिशा में क्रियान्वित न करने वाले अधिकरियों पर एक हज़ार रूपये का जुर्माना लगाया जाएगा. लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसे इस्तेमाल किया जाए तो और बेहतर परिणाम सामने आएँगे।
जहां तक कमी की बात है तो रोज़गार न मिलने की सूरत में कहां शिकायत की जाए इसका प्रावघान उतना सशक्त नहीं है. एक छोटे से सैक्शन 25 में एक बात ये कही गई है कि इस क़ानून को सही दिशा में क्रियान्वित न करने वाले अधिकरियों पर एक हज़ार रूपये का जुर्माना लगाया जाएगा. लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसे इस्तेमाल किया जाए तो और बेहतर परिणाम सामने आएँगे.
दूसरी बात ये है कि सौ दिन का रोज़गार प्रति परिवार से बदलकर प्रति व्यक्ति होना चाहिए. उससे एक फ़ायदा तो ये होगा कि परिवार के हर सदस्य को अपना अधिकार पाने की आज़ादी होगी जिसमें महिलाएँ भी शामिल हैं. इससे महिलाएँ कम वंचित रहेंगी.
दूसरे इससे आँकड़ों को संतुलित रखा जा सकेगा. अभी तक एक परिवार को एक जॉबकार्ड पर काम का मौका मिल रहा है लेकिन बैंक एकाउंट परिवार के एक व्यक्ति के नाम पर ही है. ऐसी कमियां हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए.

आपके विचार से परिवार के हर व्यक्ति को सौ दिन का रोज़गार मिलना चाहिए. लेकिन इसके मौजूदा प्रारूप पर जितना ख़र्च हो रहा है उस पर कई अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि इस योजना पर ज़रूरत से ज़्यादा पैसा ख़र्च हुआ है. इस पैसे को दूसरे तरीक़ों से इस्तेमाल किया जाता तो ज़्यादा बेहतर होता.

ख़र्च से डरने की ज़रूरत नहीं है. अभी आप देखें तो भारत की आर्थिक विकास की दर पिछले सालों में बढ़ी है. मुश्किल ये है कि इसका फ़ायदा ग़रीब को न पहुंचकर संपन्न लोगों को होता है. इस समय भारतीय अर्थवयवस्था के लाभ का समान वितरण बहुत ज़रूरी है. समान वितरण मुझे नहीं दिखता है. इस ख़र्च से इसलिए डरना नहीं चाहिए क्योंकि ये पैसा सीधे ग़रीब लोगों तक पहुंचता है. और ये काफ़ी हद तक सतत भी है.
हाँ, सबसे ज़रूरी बात ये है कि ये पैसा अभी भी भ्रष्टाचार के चलते सभी ज़रूरतमंदो तक नहीं पहुँच रहा है. ये रुकना चाहिए और ग़रीब लोगों को इसका फ़ायदा मिलना चाहिए.
इसके लिए ज़रूरी है कि इस क़ानून में पारदर्शिता के जितने प्रावधान हैं उन्हें सख़्ती से लागू किया जाए. जिस तरह राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रयास किए गए हैं, उस तरह से हर प्रदेश में किया जा सकता है.

इस क़ानून के पीछे देश में एक जनांदोलन खड़ा है, दूसरी ओर यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी की इसमें सीधे रुचि रही है. आप उनकी सलाहकार समिति में भी रहे हैं, आज जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियाँ और महात्वाकांक्षा पैदा हो रही हैं, उसमें आपको नरेगा का क्या भविष्य दिखता है?

जिस तरह लोगों में इसकी जागरूकता दिन ब दिन बढ़ रही है उससे राजनितिक दलों पर इसका दबाव हमेशा बना रहेगा. इसके क्रियान्वयन को और प्रभावशाली बनाने के लिए राजनितिक दलों को और गंभीर होना ही पड़ेगा.
मेरा सोचना ये है कि नरेगा अभी भी और आगे भी राजनीतिक पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण बनता जाएगा क्योंकि ये आम आदमी से जुड़ा है. जिस तरह लोगों में इसकी जागरूकता दिन ब दिन बढ़ रही है उससे राजनितिक दलों पर इसका दबाव हमेशा बना रहेगा. इसके क्रियान्वयन को और प्रभावशाली बनाने के लिए राजनितिक दलों को और गंभीर होना ही पड़ेगा.
इस बार के लोक सभा चुनावों में भी हमने देखा कि जो दल पहले इस क़ानून के ख़िलाफ़ बोल रहे थे, चुनाव प्रचार में वो भी इसकी तरफ़ आते दिखे. क्योंकि लोग इससे लाभांवित हो रहे हैं तो राजनीतिक दल इसका विरोध कर ही नहीं सकते.
उदाहरण के लिए, पी चिदंबरम ने वित्तमंत्री रहते हुए इस क़ानून पर संशय ज़ाहिर किया था ओर इस क़ानून को एक तरह से उन्होंने कमज़ोर करने की कोशिश की थी. लेकिन अपने ही चुनाव क्षेत्र में उन्होंने इसके अच्छे नतीजे देखे तो वो अब भाजपा से पूछ रहे हैं कि वो इस क़ानून को बनाए रखेंगे या फिर वापस ले लेंगे.
मुझे उम्मीद है कि जैसे जैसे समय बीतेगा, नरेगा को मज़बूती मिलेगी और ये ग़रीब लोगों को रोज़गार देने का काम करता रहेगा. और इसको राजनीतिक मदद भी मिलती रहेगी.
Source: BBC Hindi

नरेगा एक परिचय

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) 2005 सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जो गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है और जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। यह अधिनियम विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है जिसके तहत अभूतपूर्व तौर पर रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना। इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। यह रोजगार शारीरिक श्रम के संदर्भ में है और उस वयस्क व्यक्ति को प्रदान किया जाता है जो इसके लिए राजी हो। इस अधिनियम का दूसरा लक्ष्य यह है कि इसके तहत टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखे, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।


राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) को तैयार करना और उसे कार्यान्वित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा गया है। इसका आधार अधिकार और माँग को बनाया गया है जिसके कारण यह पूर्व के इसी तरह के कार्यक्रमों से भिन्न हो गया है। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबध्द रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार प्रदान करने में कोताही बरतें क्योंकि रोजगार प्रदान करने के खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र वहन करता है। इसके अलावा इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का कोई दखल हो। अधिनियम में महिलाओं की 33 प्रतिशत श्रम भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है।


नरेगा दो फरवरी, 2006 को लागू हो गया था। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। दूसरे चरण में वर्ष 2007-08 में इसमें और 130 जिलों को शामिल किया गया था। शुरुआती लक्ष्य के अनुरूप नरेगा को पूरे देश में पांच सालों में फैला देना था। बहरहाल, पूरे देश को इसके दायरे में लाने और माँग को दृष्टि में रखते हुए योजना को एक अप्रैल 2008 से सभी शेष ग्रामीण जिलों तक विस्तार दे दिया गया है।

पिछले दो सालों में कार्यान्वयन के रुझान अधिनियम के लक्ष्य के अनुरूप ही हैं। 2007-08 में 3.39 करोड़ घरों को रोजगार प्रदान किया गया और 330 जिलों में 143.5 करोड़ श्रमदिवसों का सृजन किया गया। एसजीआरवाई (2005-06 में 586 जिले) पर यह 60 करोड़ श्रमदिवसों की बढत है। कार्यक्रम की प्रकृति ऐसी है कि इसमें लक्ष्य स्वयं निर्धारित हो जाता है। इसके तहत हाशिए पर रहने वाले समूहों जैसे अजाअजजा (57#), महिलाओं (43#) और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों (129#) की भारी भागीदारी रही। बढी हुई मजदूरी दर ने भारत के ग्रामीण निर्धनों के आजीविका संसाधनों को ताकत पहुंचाई। निधि का 68# हिस्सा श्रमिकों को मजदूरी देने में इस्तेमाल किया गया। निष्पक्ष अध्ययनों से पता चलता है कि निराशाजन्य प्रवास को रोकने, घरों की आय को सहारा देने और प्राकृतिक संसाधनों को दोबारा पैदा करने के मामले में कार्यक्रम का प्रभाव सकारात्मक है।

मजदूरी आय में वृध्दि और न्यूनतम मजदूरी में इजाफा

वर्ष 2007-08 के दौरान नरेगा के अंतर्गत जो 15,856.89 करोड़ रुपए कुल खर्च किए गए, उसमें से 10,738.47 करोड़ रुपए बतौर मजदूरी 3.3 करोड़ से ज्यादा घरों को प्रदान किए गए।


नरेगा के शुरू होने के बाद से खेतिहर मजदूरों की राज्यों में न्यूनतम मजदूरी बढ गई है। महाराष्ट्र में न्यूनतम मजदूरी 47 रुपए से बढक़र 72 रुपए, उत्तरप्रदेश में 58 रुपए से बढक़र 100 रुपए हो गई है। इसी तरह बिहार में 68 रुपए से बढक़र 81 रुपए, कर्नाटक में 62 रुपए से बढक़र 74 रुपए, पश्चिम बंगाल में 64 रुपए से बढक़र 70 रुपए, मध्यप्रदेश में 58 रुपए से बढक़र 85 रुपए, हिमाचल प्रदेश में 65 रुपए से बढक़र 75 रुपए, नगालैंड में 66 रुपए से बढक़र 100 रुपए, जम्मू और कश्मीर में 45 रुपए से बढक़र 70 रुपए और छत्तीसगढ में 58 रुपए से बढक़र 72.23 रुपए हो गई है।

ग्रामीण सरंचनात्मक ढांचे पर प्रभाव और प्राकृतिक संसाधन आधार का पुनर्सृजन



2006-07 में लगभग आठ लाख कार्यों को शुरू किया गया जिनमें से 5.3 लाख जल संरक्षण, सिंचाई, सूखा निरोध और बाढ नियंत्रण कार्य थे। 2007-08 में 17.8 लाख कार्य शुरू किए गए जिनमें से 49# जल संरक्षण कार्य थे जो ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के प्राकृतिक संसाधन आधार का पुनर्सृजन से संबंधित थे। 2008-09 में जुलाई तक 14.5 लाख कार्यों को शुरू किया गया।


नरेगा के माध्यम से तमिलनाडू के विल्लूपुरम जिले में जल भंडारण (छह माह तक) में इजाफा हुआ है, जलस्तर में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है और कृषि उत्पादकता (एक फसली से दो फसली) में बढोत्तरी हुई है।

कामकाज के तरीकों को दुरुस्त करना



पारदर्शिता और जनता के प्रति उत्तरदायित्व: सामाजिक लेखाजोखा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। नरेगा के संदर्भ में सामाजिक लेखाजोखा में निरंतर सार्वजनिक निगरानी और परिवारों के पंजीयन की जांच, जॉब कार्ड का वितरण, काम की दरख्वास्तों की प्राप्ति, तारीख डाली हुई पावतियों को जारी करना, परियोजनाओं का ब्योरा तैयार करना, मौके की निशानदेही करना, दरख्वास्त देने वालों को रोजगार देना, मजदूरी का भुगतान, बेरोजगारी भत्ते का भुगतान, कार्य निष्पादन और मास्टर रोल का रखरखाव शामिल हैं।


वित्तीय दायरा: निर्धन ग्रामीण परिवारों को सरकारी खजाने से भारी धनराशि मुहैया कराई जा रही है जिसके आधार पर मंत्रालय को यह अवसर मिला है कि वह लाभान्वितों को बैंकिंग प्रणाली के दायरे में ले आए। नरेगा कामगारों के बैंकों डाकघरों में बचत खाते खुलवाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया जा चुका है; नरेगा के अंतर्गत 2.28 करोड़ बैंक डाकघर बचत खाते खोले जा चुके हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल:


मजदूरी के भुगतान की गड़बड़ियों और मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दूरभाष आधारित बैंकिंग सेवाएं शुरू करने का निर्णय किया है जो देश के सुदूर स्थानों पर रहने वाले कामगारों को भी आसानी से उपलब्ध होगी। बैंकों से भी कहा गया है कि वे स्मार्ट कार्ड और अन्य प्रौद्योगिकीय उपायों को शुरू करें ताकि मजदूरी को आसान और प्रभावी ढंग से वितरित किया जा सके।

वेब आधारित प्रबंधन सूचना प्रणाली


(nrega.nic.in) ग्रामीण घरों का सबसे बड़ा डेटाबेस है जिसकी वजह से सभी संवेदनशील कार्य जैसे मजदूरी का भुगतान, प्रदान किए गए रोजगार के दिवस, किए जाने वाले काम, लोगों द्वारा ऑनलाइन सूचना प्राप्त करना, आदि पूरी पारदर्शिता के साथ किया जा सकता है। इस प्रणाली को इस तरह बनाया गया है कि उसके जरिए प्रबंधन के सक्रिय सहयोग को कभी भी प्राप्त किया जा सकता है। अब तक वेबसाइट पर 44 लाख मस्टररोल और तीन करोड़ जॉब कार्ड को अपलोड किया जा चुका है।


मंत्रालय का नॉलेज नेटवर्क इस बात को प्रोत्साहन देता है कि किसी भी समस्या के हल को ऑनलाइन प्रणाली द्वारा सुझाया जाए। इस समय इस नेटवर्क के 400 जिला कार्यक्रम संयोजक सदस्य हैं। नेटवर्क नागरिक समाज संगठनों से भी जुड़ गया है।

माँग आधारित कार्यक्रम को पूरा करने के लिए क्षमता विकास



ग्रामसभाओं और पंचायती राज संस्थाओं को योजना कार्यान्वयन में अहम भूमिका प्रदान करके विकेन्द्रीयकरण को मजबूत बनाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गहराई के साथ चलाने में नरेगा महत्त्वपूर्ण है। सबसे कठिन मुद्दा इन ऐजेंसियों की क्षमता का निर्माण है ताकि ये कार्यक्रम को जोरदार तरीके से कार्यान्वित कर सकें।


केन्द्र की तरफ से समर्पित प्रशासनिक तकनीकी कार्मिकों को खण्ड उप खण्ड स्तरों पर तैनात किया गया है ताकि मानव संसाधन क्षमता को बढाया जा सके।


राज्यों के निगरानीकर्ताओं के साथ नरेगा कर्मियों का प्रशिक्षण शुरू कर दिया गया है। अब तक 9,27,766 कार्मिकों तथा सतर्कता और निगरानी समितियों के 2,47,173 सदस्यों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।


मंत्रालय ने नागरिक समाज संगठनों और अकादमिक संस्थानों के सहयोग से जिला कार्यक्रम संयोजकों के लिए पियर लर्निंग वर्कशॉप का आयोजन किया ताकि औपचारिक अनौपचारिक सांस्थानिक प्रणाली और नेटवर्क तैयार किया जा सके। इन सबको अनुसंधान अध्ययन, प्रलेखन, सामग्री विकास जैसे संसाधन सहयोग भी मुहैया कराए गए।


संचार, प्रशिक्षण, कार्य योजना, सूचना प्रौद्योगिकी, सामाजिक लेखाजोखा और निधि प्रबंधन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को तकनीकी समर्थन भी प्रदान किया जा रहा है।
निराशाजन्य प्रवास को रोकना


रिपोर्टों के अनुसार बिहार और देश के अन्य राज्यों की श्रमशक्ति अब वापस लौट रही है। पहले कामगार बिहार से पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात प्रवास करते थे जो अब धीरे धीरे कम हो रहा है। इसका कारण है कि मजदूरों को अपने गाँव में ही रोजगार बेहतर मजदूरी मिल रही है जिसके कारण कामगार अब काम की तलाश में शहर की तरफ जाने से गुरेज कर रहे हैं। बिहार में नरेगा के अंतर्गत मजदूरी की दर 81 रुपए प्रति दिन है। प्रवास में कमी जाने के कारण मजदूरों के बच्चे अब नियमित स्कूल भी जाने लगे हैं।
नरेगा के बहुस्तरीय प्रभावों को बढाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय राष्ट्रीय उद्यान मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, भारत निर्माण, वॉटरशेड डेवलपमेन्ट, उत्पादकता वृध्दि आदि कार्यक्रमों को नरेगा से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में योजनाबध्द समन्वयकारी सार्वजनिक निवेश को बल मिलेगा। इसके परिणामस्वरूप गामीण क्षेत्रों में लंबे समय तक आजीविका का सृजन होता रहेगा।


# - ग्रामीण रोजगार मंत्रालय द्वारा प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर
Source: groups.google.co.jp/group/INDIA-NEWS

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