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**FriDay_NREGA NEW's

नरेगा सामग्री खरीद में सरपंचों की नहीं चलेगी


उदयपुर. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) में आवश्यक सामग्री खरीद में अब सरपंचों की नहीं चलेगी। राज्य सरकार के निर्देशानुसार नरेगा सामग्री खरीद के लिए पंचायत समिति स्तर पर खरीद की जा रही है। नरेगा में भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। इस फैसले से सरपंचों में नाराजगी भी उभर कर सामने आई है।



पंचायत राज अधिनियम के नियमों व अधिकार के तहत राज्य सरकार ने सभी पंचायत समितियों को नए नियम जारी कर दिए हैं। इन नियमों का नाम नरेगा स्कीम 2006 दिया गया है। इसमें योजना के क्रियान्वयन एवं नियंत्रण के लिए राज्य स्तर पर राज्य रोजगार गारंटी परिषद, जिला स्तर पर जिला कार्यक्रम समन्वयक, पंचायत समिति स्तर पर कार्यक्रम अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया गया है। ग्राम पंचायत को मात्र क्रियान्वयन संस्था के रूप में चिह्न्ति किया गया है।



इन नियमों के आधार पर हुआ बदलाव : पंचायत राज अधिनियम 1994 व पंचायत राज नियम 1996 के तहत ग्राम पंचायत का गठन कर उन्हें पंचायतों को शक्तियां प्रदान की गई थी। इसके तहत पंचायत निधियों से सामग्री क्रय करने की प्रक्रिया दी गई है। पंचायतराज नियम 192 में प्रावधान है कि पंचायत राज संस्थाओं के क्रय के संबंध में राज्य सरकार कोई भी आदेश या निर्देश दे सकेगी। नरेगा एक विशिष्ट अधिनियम है, जो नरेगा के तहत करवाए जाने वाले कार्र्यो पर लागू होता है।



क्यों लेना पड़ा फैसला



ग्राम पंचायतों के सामाजिक अंकेक्षण एवं अन्य जांचों में यह तथ्य सामने आए हैं कि पंचायतों में बगैर टेंडर के या जहां टेंडर किए गए हैं वहां अनाधिकृत व्यापारियों से सामग्री खरीदी गई है। इससे राज्य सरकार को न केवल वैट का नुकसान है, बल्कि फर्जी बिलों के माध्यम से सरकारी राशि उठा कर गबन किया गया है।



फैसले का असर



लाभ : बड़ी कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा के चलते कम पैसे में ज्यादा काम होगा। वैट व रॉयल्टी मिलेगी। भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकेगी।



हानि : सरकार को सरपंचों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। ग्राम स्तर पर छोटे दुकानदारों को नुकसान उठाना पड़ेगा।

Bhaskar News,30/04/2010

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**Thursday_NREGA NEW's

'नरेगा' डाटा फीडिंग में पिछडे

28 अप्रैल 2010,

पाली। 'नरेगा' में श्रम, सामग्री, रोजगार हासिल करने वाले परिवारों की संख्या तथा सृजित मानव दिवस से सम्बन्धित फरवरी तक की पूरी सूचना अभी तक किसी भी जिले में ऑन लाइन नहीं हो पाई है। ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज विभाग ने इन चारों प्रारूपों में फरवरी तक का डाटा मार्च के अंत तक हर हाल में फीड करने के निर्देश दिए थे। फिर भी पूरे प्रदेश में अभी तक कम्प्यूटर में औसत 75.13 फीसदी डाटा ही फीड हो पाया है।

इनका प्रतिशत राज्य औसत से कम : प्रदेश में पन्द्रह जिले ऎसे हैं जिनमें इन चारों प्रारूपों में डाटा फीडिंग का कार्य राज्य औसत से भी कम हुआ। मार्च के अंत तक सवाई माधोपुर में 58.76 तथा अजमेर में 58.46 फीसदी डाटा की ही एंट्री हो पाई है। तेरह जिलों में तो इससे भी कम एंट्री हुई। इनमें जोधपुर, बूंदी, जयपुर, पाली, भीलवाडा, बाडमेर, बारां, अलवर, बीकानेर, चित्तौडगढ, टोंक, झालावाड व चूरू जिला शामिल है।

रिक्त पदों के कारण मंथर गति : पंचायत समिति स्तर पर ब्लॉक एमआईएस मैनेजर, डाटा एन्ट्री ऑपरेटर, ऑपरेटर मय कम्प्यूटर एवं ग्राम पंचायत स्तर पर ऑपरेटर मय कम्प्यूटर के कई पद रिक्त होने के कारण डाटा फीडिंग का कार्य गति नहीं पकड पा रहा है। कई पंचायत मुख्यालयों पर इंटरनेट कनेक्टिविटी या बिजली की सुविधा नहीं होना भी पिछडने का एक कारण रहा। हालांकि, ऎसी पंचायतों के कम्प्यूटर ऑपरेटरों को ऎसी सुविधा वाली पंचायत अथवा पंचायत समिति जाकर इस कार्य को निपटाने के स्थाई आदेश दिए हुए हैं।


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**Wednesday_NREGA NEW's

महानरेगा में हो रहे चहुंओर महाघोटाले


जोधपुर। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना के तहत जोधपुर जिले की हर पंचायत समिति में सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है। मेट, रोजगार सहायक, सरपंच और सरकारी कर्मचारी लाखों रुपए हड़प रहे हैं। ग्राम पंचायतों मंे निम्न स्तर के कार्य हो रहे हैं। फर्जी नाम से भुगतान उठ रहे हैं। प्रशासन के पास नरेगा कार्यो की शिकायतों का अंबार लगा है।



अब तक हुई जांच में 31 जगह भ्रष्टाचार सामने आया है। हालांकि प्रशासन ने दोषी जनप्रतिनिधियों व सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए हैं तथा उनसे सरकारी धन वसूलने की कार्रवाई की है, मगर हर स्तर पर गड़बड़ी रोकना संभव नहीं हो रहा है। पंचायती राज विभाग ने नरेगा में भ्रष्टाचार रोकने तथा गांवों में गुणवत्ता वाले कार्य कराने के लिए जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, उपखंड अधिकारियों, विकास अधिकारियों तथा अधिशासी अभियंताओं को प्रत्येक गांव में नरेगा कार्य का आकस्मिक निरीक्षण करने के निर्देश दे रखे हैं, परंतु सिर्फ शिकायतों के आधार पर जांच और कार्रवाई करने की नीति के कारण गड़बड़ियां नहीं रुक रही है।



मुकदमों की लंबी लिस्ट: नरेगा के कार्य में गुणवत्ता की कमी, मिलावट और फर्जी नाम लिख कर भुगतान उठाने के एक दर्जन मामले पुलिस थानों तक पहुंच गए हैं। हीरादेसर, बुचकला, गुड़ा विश्नोइयां, केलनसर, भीकमकोर, खाबड़ा खुर्द, भवाद, शिकारपुरा-कांकाणी, भोपालगढ़, बाप, जुड़ आदि ग्राम पंचायतों में मेट, रोजगार सहायक और सरपंचों के खिलाफ धोखाधड़ी कर सरकारी राशि के गबन के मुकदमे दर्ज हुए हैं।



जनप्रतिनिधि न कर्मचारी पीछे: केंद्र सरकार से मिल रहे धन को हड़पने में न जनप्रतिनिधि पीछे हैं और न ही सरकारी कर्मचारी। अब तक हुई जांच में 31 जगह गड़बड़ियां पकड़ी गई जहां धन का दुरुपयोग हुआ था। प्रशासनिक जांच में सर्वाधिक दोषी मेट पाए गए जो मस्टर रोल में फर्जी नाम भरने तथा हाजरियों में हेराफेरी करते पकड़े गए।



रोजगार सहायक और शिकारपुरा, बालरवा, जुड़ के सरपंच भी घोटालों में लिप्त रहे। शिकारपुरा में कनिष्ठ तकनीकी सहायक, बालरवा में सिंचाई विभाग के जेईएन, दयाकौर में नरेगा के जेईएन, बालरवा में मंडोर पंचायत समिति के विकास अधिकारी, बाप पंचायत समिति के नूरे के भुर्ज गांव में वरिष्ठ तकनीकी सहायक आदि को घोटालों के लिए दोषी माना गया है। इन दोषी कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों से वसूली की जा रही है।

भास्कर न्यूज,Wednesday, Apr 28th

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**Tuesdya_NREGA NEW's

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++अमेरिका ने भारत के नरेगा की सराहना की

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वाशिंगटन. अमेरिका ने भारत के महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की तारीफ़ करते हुए कहा है कि यह महत्वपूर्ण नवाचार सभी के उम्मीदों के परे "सफल" रहा है। और यह योजना अपनाने लायक है।

ओबामा प्रशासन जो यूपीए सरकार की फ्लैगशिप योजना पर केंद्रीय श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खरगे की ब्रीफिंग का बेसब्री से इंतजार कर रही है,ने कहा इस योजना को दूसरे देशों में कम और मध्यम स्तरों पर लागू किए जाने की वकालत की है।

खरगे,यहां राष्ट्रपति बराक ओबामा के आग्रह पर बुलाए गई पहली जी 20-श्रम मंत्रियों की बैठक में नरेगा का एक सिंहावलोकन देंगें। यह बैठक मंगलवार को शुरू हो रही है।

अमेरिकी श्रम विभाग के उच्च अधिकारियों,इस बैठक के आयोजकों ने कहा "१०० दिन की यह अभिनव राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना लगभग हर एक के उम्मीदों के परे सफल रहा है। भारत ने सिखा है और अपने रणनीति को परिष्कृत किया है।"

20 Apr 2010,

++नरेगा यानी लूट की छूट

ग्लैडसन डुंगडुंग, रांची से

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी नरेगा का मतलब अगर पता करना हो तो आपको झारखंड के लातेहार जिले में जाना चाहिए. आप चाहें तो पलामू भी घूम सकते हैं और गढ़वा भी और...! सच तो ये है कि आप अपनी सुविधा से झारखंड के किसी भी इलाके में नरेगा का हाल जान सकते हैं, जिसके बारे में अब एक जुमला बहुत मशहूर हो चुका है- “नरेगा जो करेगा, सो मरेगा.”

अस्पताल में तापस सेन

अस्पताल में तापस सोरेन


राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005 ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले भूमिहीन, मजदूर एवं लघु कृषक परिवारों के आजीविका को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से रोजगार अभाव के समय 100 दिनों की रोजगार उपलब्ध करने के लिए बनाया गया था. लेकिन झारखण्ड में नरेगा का अर्थ कुछ और ही बन गया है. नरेगा की वजह से तापस सोरेन, तुरिया मुंडा और ललित मेहता जैसे कई लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी, ज़िससे राज्य में हलचल मच गई तथा 'नरेगा जो करेगा सो मरेगा'' जैसा नारा झारखण्ड के गांव-गांव में छा गया.

सरकारी पदाधिकारी, ठेकेदार और बिचौलियों के गंठजोड़ को देखते हुए अब यह मान लिया गया है कि अगर नरेगा से जुड़ना है तो चुपचाप जो मिल रहा है, उसी में संतोष करना होगा. अगर गलती से कोई सवाल उठाता है तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा.

अब तो सरकार और नौकरशाह भी खुलकर बोल रहे हैं कि नरेगा के पैसों की लूट हो रही है. लेकिन इस लूट को कैसे रोकना है, यह कोई नहीं बता रहा है. यह देखना महत्वपूर्ण है कि कैसे नरेगा ग्रामीणों का रोजगार योजना बनने के बजाये सरकारी पदाधिकारी, ठेकेदार और बिचौलियों के लिए लूट योजना बन कर रह गई है.

नरेगा कार्यक्रम का प्रथम चरण 2 फरवरी 2006 को देश भर के 200 जिलों में प्रारंभ किया गया था, जिसमें झारखण्ड के 20 जिले भी शामिल थे. इसके बाद दूसरे एवं तीसरे चरण में झारखण्ड के और 2-2 जिलों को इसमें शामिल कर राज्य के पूरे 24 जिलों में नरेगा को लागू किया गया.

भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा उपलब्ध आंकड़ा के अनुसार नरेगा के तहत झारखण्ड में 15 सितंबर, 2009 तक 8.73645 लाख लोगों को 314.57 लाख दिन का रोजगार उपलब्ध कराया गया है, जिसमें 15.1 प्रतिशत (47.49 लाख) दलित, 42.6 प्रतिशत (134.02 लाख) आदिवासी एवं 32.7 प्रतिशत (102.87 लाख) महिलाओं को रोजगार दिया गया है.

भारत सरकार ने नरेगा के तहत झारखण्ड सरकार को 1397.37 करोड़ रूपये का आवंटन किया है, जिसमें से मात्र 37.1 प्रतिशत (518.87 करोड़) रूपये ही खर्च हो सका है. इसके तहत 114009 कार्य लिया गया जिसमें से मात्र 22.8 प्रतिशत (26062) कार्य पूरा किया गया है तथा 77.2 प्रतिशत (87947) कार्य अभी तक जारी है, जिससे यह साफ पता चलता है कि राज्य में नरेगा अभी भी कछुआ चाल से ही चल रही है.

नरेगा के कछुआ चाल को समझने के लिए आंकड़ों के गणित को थोड़ा और विस्तार से समझने की जरूरत है. भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिर्पोट दर्शाती है कि वितीय वर्ष 2008-2009 में झारखण्ड में कुल ग्रामीण परिवारों की संख्या 3736526 थी, जिसमें 1655281 परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करते हैं. इनमें से कुल 2710647 परिवारों को नरेगा के तहत 100 दिनों का रोजगार देने की योजना थी. इसके लिए भारत सरकार ने झारखण्ड सरकार को 180580.1 लाख रूपये आवंटित किया था तथा विगत वर्ष की उपलब्ध राशि को मिलाकर कुल आवंटित राशि 236337.4 लाख रूपये थी.


राज्य सरकार ने इसके तहत 3375992 जॉब कार्ड जारी किया, लेकिन सिर्फ 46.69 प्रतिशत (1576348) परिवारों को ही रोजगार दिया गया, जिसमें से सिर्फ 56.77 प्रतिशत (134171.7 लाख रूपये) राशि ही खर्च किया गया तथा 102165.7 लाख रूपये बचा रहा जिससे और 10 लाख लोगों को 100 दिन का काम दिया जा सकता था.

वित्तीय वर्ष 2009-2010 का आकलन करने से पता चलता है कि इस वर्ष नरेगा के तहत 2864120 परिवारों को काम देने की योजना है, जिसके लिए भारत सरकार ने 45333.29 लाख रूपये आवंटित किया है तथा विगत वर्ष की शेष राशि को जोड़कार कुल 148153.9 लाख रूपये आवंटित हैं.

राज्य सरकार ने अब तक 3494390 लोगों को जॉब कार्ड जारी किया है लेकिन सिर्फ 25 प्रतिशत (873645) परिवारों को ही रोजगार दिया गया है, जिसमें 35.02 प्रतिशत (51887.28 लाख रूपये) राशि खर्च की गयी है और 96266.57 लाख रूपये शेष है. लेकिन इस राशि से भी गरीबों को राहत मिलने की उम्मीद कम है क्योंकि कुछ ही महीने में विधानसभा का चुनाव होना है, जिसमें सारे सरकारी पदाधिकारी व्यस्त हो जायेंगे. जाहिर है, इसके बाद नरेगा का काम खटाई में पड़ सकता है.

आंकड़ों के खेल को छोड़कर अगर हकीकत की ओर जायेंगे तो स्थिति और भी शर्मनाक है. राज्य में मजदूरी भी एक तरह की नहीं है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मजदूरी जिला स्तर पर निर्धारित हो रही है जो 78.39 रूपये से लेकर 114.62 रूपये तक है.

इसमें सबसे ज्यादा हजारीबाग जिले में 114.62 रूपये एवं गुमला जिले में सबसे कम 78.39 रूपये दिये जा रहे हैं. महिला-पुरूष के बीच मजदूरी को लेकर भेदभाव भी बरकरार है. कई जिलों में महिलाओं को पुरूषों से कम मजदूरी दी जा रही है. लेकिन हद तब हो जाती है जब पोस्ट ऑफिस या बैंकों द्वारा भुगतान करने के बावजूद मजदूरों की कमाई को ठेकेदार और बिचौलिये हड़प लेते हैं. जॉब कार्ड एवं मस्टर रोल में गलत आंकड़े भरे जाते हैं तथा काम भी ठीक ढ़ंग से पूरा नहीं किया जाता है.

लगभग पूरे राज्य में नरेगा के कामों में रिश्वत की राशी तय है और सारा खेल बेशर्मी के साथ चल रहा है. नरेगा के अन्तर्गत चलने वाली प्रत्येक योजना में सरकारी पदाधिकारियों का हिस्सा (प्रतिशत में) बंटा हुआ है. इसमें 4 प्रतिशत पंचायत सेवक, 5 प्रतिशत बीडीओ, 5 प्रतिशत जेई और उपर के पदाधिकारियों का हिस्सा है सो अलग.

दूसरी लूट मजदूरी को लेकर है. काम के एवज में मजदूरों को कम पैसा दिया जाता है लेकिन मस्टर रोल एवं जॉब कार्ड में उचित मजदूरी दर्शायी जाती है. इसी तरह कार्य दिवस को लेकर भी भारी गड़बड़ी होती है. मजदूरी कम दिनों का भुगतान किया जाता है लेकिन मस्टर रोल एवं जॉब कार्ड में कार्य दिवस ज्यादा दर्शाया जाता है. इस तरह से मजदूरों का पैसा ठेकेदारों एवं बिचौलियों के जेब में चला जाता है. इतना ही नहीं जॉब कार्ड बनाने के नाम पर भी मजदूरों से पैसा वसूला जाता है. यानी नरेगा के हर मोड़ पर लूट का चेक पोस्ट लगा हुआ है.

नरेगा में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कठोर कानून बनाना चाहिए, जिसमें अपराधियों को सजा के रूप में जेल और सरकारी खजाने से लूटे गये पैसे का दस गुना वापसी का प्रावधान रखा जाना चाहिए.


अफसोसजनक यह है कि नरेगा लूट के बारे में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी को पता है लेकिन लूट लगातार और चरम पर जारी है.

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन कहते हैं कि नरेगा बिचौलियों के चंगुल में है. इधर झारखण्ड के राज्यपाल के.एस. नारायणन भी नरेगा को लेकर कई तरह के प्रश्न खड़े कर चुके हैं. श्री नारायणन तो जिले के कलेक्टर यानी उपायुक्तों की क्लास भी लेते रहे हैं. राज्यपाल के सलाहकार जी. कृष्णन ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा है कि नरेगा योजना को लागू करने में सबसे भ्रष्ट जेई हैं तथा बीडीओ उनसे भी भ्रष्ट हैं और इन्हें ग्राम सभा पर भरोसा नहीं है.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि नरेगा लूट को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय क्यों नहीं किया जा रहा है? क्या नरेगा लूट का रोना रोने से ही सबकुछ ठीक हो जायेगा? क्या इस लूट के लिए सिर्फ निचले स्तर के सरकारी पदाधिकारी जिम्मेवार है?

यद्यपि नरेगा के तहत ग्रामसभा एवं पंचायतों को कई अधिकार दिये गये हैं लेकिन झारखण्ड में इसे जानबूझकर लागू नहीं किया जाता है. सरकारी पदाधिकारी नरेगा लूट को जारी रखना चाहते हैं, इसलिए पारंपरिक ग्रामसभाओं को मान्यता ही नहीं दे रहे हैं.


नरेगा के काम प्रखण्ड कार्यालय के जिम्मे से निकाल कर इसकी जिम्मेवारी पारंपरिक ग्राम सभाओं को अगर दिया जाये तो इससे प्रखंड कार्यालयों में चल रही लूट और रिश्वत का धंधा भी खत्म होगा. जॉब कार्ड निर्गत, मस्टर रोल तैयार करना, योजना का चयन, कार्यान्वयन एवं मूल्यांकन का पूर्ण अधिकार ग्राम सभा को हो.

रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे क्रियावादियों और समाजसेवियों का मानना है कि इसके नरेगा में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कठोर कानून बनाना चाहिए, जिसमें अपराधियों को सजा के रूप में जेल और सरकारी खजाने से लूटे गये पैसे का दस गुना वापसी का प्रावधान रखा जाना चाहिए. ऐसे मामलों के समयबद्ध तरीके से त्वरित निष्पादन के लिए एक विशेष न्यायालय की व्यवस्था की जानी चाहिए. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हमारे जनप्रतिनिधि इसके लिए तैयार होंगे ? आखिर राज्य में लूट संस्कृति तो उनकी ही देन है.

++सरकारी योजना पर जनता की नज़र

संदीप पांडेय


राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट 2005 नागरिकों को इस एक्ट के अधीन किए गए कार्य का सोशल ऑडिट करने का अधिकार प्रदान करता है. इस एक्ट के लागू होने से पहले तक नागरिकों के पास संबंधित अधिकारी के समक्ष कमियों और अभावों के बारे में शिकायत करने के अलावा और कोई चारा नहीं था.

अब यह उस अधिकारी के विवेक पर निर्भर करता कि वह शिकायत का संज्ञान लेते हुए इस पर कार्रवाई करे या फिर इसे कूड़ेदान में डाल दे. नागरिक महज मूकदर्शक थे और शिकायत पर कार्रवाई करना या इससे आंख फेर लेना यह अधिकारियों का विशेषाधिकार था. इस लिहाज से ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट के तहत चल रहे विकास कार्यों का आम नागरिकों द्वारा सोशल ऑडिट करने का अधिकार भारतीय लोकतंत्र में एक क्रांतिकारी कदम है. हो सकता है आगे चलकर लोग सरकार के अन्य विकास कार्यक्रमों के लिए भी इसी तरह के सोशल ऑडिट के आयोजन की मांग करने लगें.

एक्ट के अधीन रोजगार गारंटी योजना के तहत हुए कामकाज से संबंधित जानकारी वास्तविक कीमत पर 7 दिनों के भीतर मुहैया कराई जानी चाहिए, लेकिन क्या यह तब भी जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की जीत कही जाए जबकि उन्हें यह जानकारी एक-डेढ़ साल बाद मिले!


भारत में प्रशासनिक कामकाज का तरीका यह है कि सत्ता में रहने वाले लोगों के प्रति खुद को जवाबदेह महसूस नहीं करते. सरकारी मशीनरी से जुड़े लोग सोचते हैं कि काम करना, निर्णय करना और जनता के खजाने को खर्च करना उनके विशेष अधिकारों के तहत आता है. इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि लोगों द्वारा विभिन्न योजनाओं से संबंधित अधिकारियों और सरकारी विभागों से जानकारी मांगने से अधिकारी भारी दबाव में आ गए हैं. वे इस तरह से जवाबदेही लेने के आदी नहीं हैं.

इस दिशा में पहला कदम उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के एक निवासी यशवंत राव ने उठाया. उसने 4 दिसंबर 2006 को सूचना का अधिकार कानून(आरटीआई) का इस्तेमाल करते हुए मियागंज के ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर से रोजगार गारंटी योजना के तहत हुए कामकाज की जानकारी मांगी. सकारात्मक जवाब न मिलने पर उसने यूपी स्टेट इंफॉर्मेशन कमीशन के समक्ष एक शिकायत दर्ज करा दी. इसके बाद उसे ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर की ओर से एक पत्र मिला, जिसमें उससे वांछित दस्तावेज की कॉपी पाने के लिए 1,58,400 रुपए जमा करने के लिए कहा गया था.

आरटीआई एक्ट के तहत यदि एक महीने के भीतर जानकारी मुहैया कराई जाती है तो ग्राही को 2 रुपए प्रति पेज के हिसाब से जमा करने होते हैं, लेकिन ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर ने 66 ग्राम पंचायतों में एनआरईजीएस के तहत हुए कामकाज की जानकारी मुहैया कराने के लिए मनमाने ढंग से 2400 रुपए प्रति ग्राम पंचायत के लिहाज से तय कर दिए. यूपी स्टेट इंफॉर्मेशन कमीशन के समक्ष एक साल से ज्यादा समय तक चले इस केस में 10 सुनवाइयों के बाद आखिरकार ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर को आवेदक यशवंत को समस्त जानकारी मुफ्त में मुहैया कराने का आदेश दिया गया. अप्रैल 2008 में 66 में से 65 ग्राम पंचायतों में एनआरईजीएस कामकाज की जानकारी आखिरकार यशवंत को मुहैया कराई गई.

यद्यपि एक्ट के अधीन रोजगार गारंटी योजना के तहत हुए कामकाज से संबंधित जानकारी वास्तविक कीमत पर 7 दिनों के भीतर मुहैया कराई जानी चाहिए, लेकिन क्या यह तब भी जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की जीत कही जाए जबकि उन्हें यह जानकारी एक-डेढ़ साल बाद मिले! अधिकारियों ने हर कदम पर इस प्रक्रिया को रोकने या लटकाने की अपनी ओर से हरसंभव कोशिश की लेकिन आखिरकार उन्हें एनआरईजीए और आरटीआई एक्ट के अधीन कानूनी प्रावधानों का अनुसरण करना ही पड़ा.

यह देखते हुए मियागंज ब्लॉक के स्थानीय लोगों और दूसरे नागरिकों ने सामाजिक संगठनों की मदद से मई में सभी ग्राम पंचायतों में अधिकारियों द्वारा कामकाज से संबंधित मुहैया कराई गई जानकारियों के प्रमाणन के लिए सोशल ऑडिट करना शुरू कर दिया. इस इलाके में अब तक इस तरह की लोकतांत्रिक और अधिकारपूर्ण कार्रवाई देखने या सुनने को नहीं मिली.

इस सोशल ऑडिट में उत्तर प्रदेश के लखनऊ, हरदोई, कानपुर, बनारस, गाजीपुर और बलिया जैसे दूसरे शहरों के नागरिकों के अलावा हरियाणा और राजस्थान के कुछ लोगों ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया और तकरीबन 100 लोगों के नेतृत्व में उन्नाव के मियागंज ब्लॉक के ब्लॉक डेपलपमेंट ऑफिस में सोशल ऑडिट का यह काम संपन्न हुआ. यह सारी कवायद 21 से 26 मई तक छह दिन तक लगातार चली और इसके आखिर में तकरीबन 1000 लोग यह सुनने के लिए जुटे कि सोशल ऑडिट के पास इस ब्लॉक की 66 में से 58 ग्राम पंचायतों का भ्रमण करने के बाद आखिर कहने के लिए क्या है. कई राज्य व जिलास्तरीय अधिकारियों के अलावा अनेक ग्राम पंचायतों के मुखिया भी इस सार्वजनिक सुनवाई के दौरान उपस्थित थे.

दस टीमों ने इन ग्राम पंचायतों में छह दिन बिताए. इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से बातचीत की और कार्यस्थलों का निरीक्षण किया. आम निष्कर्ष यही निकलकर सामने आए कि लोग इस एक्ट के प्रावधानों के बारे में नहीं जानते थे और प्रशासन लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ खास नहीं कर रहा था.

कामगारों के हाथ में जॉब कार्डस नहीं थे (ज्यादातर गांवों में इन्हें सोश्यल ऑडिट टीम के पहुंचने से ठीक पहले बांटा गया) मस्टर रोल्स और जॉब कार्डस में कामगारों के दिनों को बढ़ा-चढ़ाकर दर्ज किया गया और वृक्षारोपण के काम में व्यापक पैमाने पर धांधली नजर आई. एकमात्र अच्छी बात यह थी कि न्यूनतम मजदूरी के हिसाब से मजदूरों को पूरा भुगतान किया गया. हालांकि इसे काम के दिनों की संख्या को बढ़ाकर बराबर कर दिया गया जिसका मतलब था कि दिनों के साथ-साथ कामगारों की मजदूरी का भी नुकसान.

अधिकारियों ने इस बात की तारीफ की कि लोग खुलकर बोल रहे थे. यद्यपि ऑडिट के दौरान ग्राम प्रधानों ने धमकी दी कि यदि सोशल ऑडिट में उन्हें नीचा दिखाया गया तो वे इस रोजगार गारंटी योजना से अलग हो जाएंगे. वास्तव में शुरुआती चार दिन ग्राम प्रधानों ने न सिर्फ ग्रामीणों और ऑडिट टीम को धमकाया, बल्कि उन्होंने इस प्रक्रिया में अड़ंगा डालने की भी कोशिश की. हालांकि बाद में ज्यादातर प्रधानों को समझ में आ गया कि इस योजना के सोशल ऑडिट का मूल उद्देश्य पथभ्रष्ट ग्राम प्रधानों के खिलाफ कोई कदम उठाना नहीं है, वरन यह समझना है कि इस योजना से क्या उम्मीद थी. उन्होंने लोकतंत्र और लोगों के अधिकार के बारे में पूरी आस्था जताई और ऑडिट में सहयोग का आश्वासन दिया.

++नरेगा सरकार की नहीं श्रमिकों की योजना

नरेगा सरकार की नहीं श्रमिकों की योजना

सिरोही। जिले में नरेगा में तीन आपराघिक प्रकरण में से एक का निस्तारण हो चुका है। जबकि शेष पर कार्रवाई जारी है। कलक्ट्री सभागार में बुधवार को राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाघिपति एवं राजस्थान विघिक सेवा प्राघिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष करणसिंह राठौड़ के पूछने पर पुलिस अधीक्षक ने उक्त जानकारी दी।

यहां न्यायिक, प्रशासनिक व पुलिस अघिकारियों की बैठक में न्यायाघिपति राठौड़ ने कहा कि नरेगा राजस्थान के लिए एक वरदान है। लेकिन, ग्रामीणों में न्यायिक जानकारी का अभाव है। इसके लिए न्यायिक अघिकारियों को समय-समय पर शिविरों का आयोजन कर कानूनी जानकारियां देनी होगी।

उन्होंने बताया कि मजदूरों को विशेष रूप से यह बात समझानी होगी कि नरेगा योजना सरकार की नहीं उनकी है। उन्होंने जिले में नरेगा में आंशिक शिकायतों पर प्रशासन की पीठ थपथपाते हुए कहा कि अघिकारियों को कठिन परिस्थितियों में झिझकने से नहीं डरना चाहिए। जिला कलक्टर पी. रमेश ने जिले में राजस्व मामलों के निस्तारण की जानकारी दी। एडीजे फास्ट ट्रेक अयूब खान, जिला विघिक सेवा प्राघिकरण के सचिव नेपालसिंह ने भी नरेगा मजदूरों को दी जाने वाली कानूनी जानकारियों का ब्योरा पेश किया।

बताया नरेगा का खाका
बैठक में जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अघिकारी देवानंद माथुर ने बताया कि जिले की 151 ग्राम पंचायतों के 492 गांवों में नरेगा का कार्य संचालित है। 1 लाख 61 हजार परिवार नरेगा का लाभ ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि नरेगा के संबंध में प्राप्त 200 में से 180 शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है।

++उप्र में नरेगा का बुरा हाल: राहुल

विजय उपाध्याय

अंबेडकर नगर.लखनऊ । rahul2_288कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के मायावती के गढ़ में अपना असर दिखाने में कामयाब रही है। बुधवार को तमाम विवादों व रोकटोक, कुंभी का शाही स्नान के साथ 45 डिग्री तापमान के बीच पार्टी ने एक सफल रैली की है। रैली में जुटी उत्साहित भीड़ नारे लगा रही थी राहुल तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है। बुधवार को बसपा ने भी कांग्रेस के मुकाबले डा.अंबेडकर जयंती और महिला आरक्षण में दलित महिलाओं के कोटे की मांग को लेकर प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित किया था।

रैली को संबोधित करने के पहले राहुल ने मंच पर रखी डा.अंबेडकर व महात्मा गांधी की तस्वीरों को फूल चढ़ाये। अपने भाषण में राहुल गांधी ने प्रदेश में सत्तारूढ़ मायावती के नेतृत्व की बसपा सरकार पर सधे हुऐ हमले किये। उन्होने मायावती सरकार को नाकाबिल-नाकारा सरकार साबित करने की कोशिश की। राहुल ने कहा कि केन्द्र से जो भी पैसा भेजा जाता वो लखनऊ तो पहुंचता है लेकिन अंबेडकर नगर नहीं पहुंचता।

जोरदार भीड़ और उसके उत्साहजनक तेवर से गदगद राहुल ने प्रदेश सरकर पर आरोप जड़ा तो समाधान का रास्ता भी बताया। रैली में युवाओं की मौजूदगी से वे बेहद खुश नजर आये।मायावती सरकार पर एक के बाद दूसरा हमला करते हुए उन्होने कहा दुनिया में सबसे बड़ी रोजगार योजना मनरेगा शुरू की इसका सबसे ज्यादा फायदा गरीबों-दलितों को होता है लेकिन उप्र में इसका नामोनिशान नहीं है। जॉब कार्ड बने हैं लेकिन प्रधानों के पास पड़े हुए हैं। जब हम प्रदेश की बसपा सरकार से कहते हैं कि ये रोजगार योजना दलितों-गरीबों के लिए अच्छा कार्यक्रम है तो सरकार कहती है कि इस योजना से किसी को कुछ फायदा नहीं होता।

राहुल यहीं नही रूके उन्होने कहा जब हम कहते हैं शिक्षा का अधिकार दिलवाएंगे, सभी बच्चों को स्कूल भेजेंगे, अंग्रेजी सिखाएंगे तो मायावती सरकार कहती है शिक्षा की जरूरत नहीं है। स्वास्थ्य की जरूरत नहीं है। विकास की जरूरत नहीं है और उसके बाद कहते हैं कि सरकार गरीबों की है। राहुल ने प्रदेश सरकार से सवाल पूछा है कि यदि सरकार गरीबों की है तो हमारे प्रदेश से लोग मुंबई-दिल्ली क्यों जा रहे हैं? क्यों बुंदेलखंड खाली पड़ा हुआ है? उन्होने कहा बुंदेलखंड में हमने करोड़ों रुपये दिए, पैकेज दिया लेकिन जो भी पैसा भेजा जाता है वो लखनऊ तो पहुंचता है लेकिन अंबेडकर नगर नहीं पहुंचता।

राहुल ने कहा पिछले 20-25 सालों में यूपी में धर्म की, जाति की राजनीति खूब चली लेकिन अब यहां नई प्रकार की राजनीति करनी है। वो होगी युवाओं की राजनीति, भविष्य की राजनीति। उसमें सबसे बड़ा सवाल ये है कि हम यूपी के गरीबों को गरीबी से कैसे निकालें। बेरोजगारों को बेरोजगारी से कैसे निकालें। राजनीति को इस सवाल का जवाब देना है। आने वाले समय में ये जवाब निकालना है और राजनीति इसी सवाल से होगी।

अंबेडकरनगर में कांग्रेस की सफलता के खास मायने है, जिले में विधानसभा की पांच सीटों लोकसभा, विधान परिषद व जिला पंचायत हर जगह बसपा का कब्जा है। मायावती मंत्रिमंडल में जिले से तीन मंत्री है। जिले में कांग्रेस लंबे समय से कमजोर हालत में रही है। कांग्रेस को जिले में राजनीति रूप से बेहद कमजोर पार्टी माना जाता रहा है।

जिले की राजनीतिक सच्चई से रूबरू राहुल ने कहा कि मैं जब दिल्ली से आकर दलितों से, गरीबों से मिलता हूं तो विपक्ष के नेता कहते हैं कि राहुल गांधी गांव में क्यों जा रहा है। अपने सवाल का जवाब देते हुए उन्होने कहा राहुल गरीबों के घर इसलिए जाता है क्योंकि वो सोचता है कि हिंदुस्तान की शक्ति गरीबों-पिछड़ों के घर में है। देश का भविष्य गांवों में, गरीबों के हाथ में है।

++संविदा नरेगाकर्मियों को हटाने पर रोक।

राजस्थान हाई कोर्ट ने नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) के तहत संविदा पर काम कर रहे ग्राम रोजगार सहायकों, सहायक लेखाकारों, कंप्यूटर सहायकों सहित अन्य कर्मचारियों के हटाने की प्रक्रिया पर शुक्रवार को रोक लगा दी। साथ ही पंचायतीराज विभाग के सचिव व निदेशक सहित सीकर के जिला कलेक्टर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने यह आदेश राजेश कुमार यादव व अन्य की ओर से दायर तीन यचिकाओं पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिया है। यह आदेश याचिकाकर्ताओं के मामले में ही प्रभावी रहेगा। याचिका में कहा है कि नरेगा के तहत 2008 में विभिन्न पंचायत समितियों में संविदा के आधार पर हजारों रोजगार सहायकों एवं अन्य पदों पर अभ्यर्थियों को नियुक्त किया था।

याचिकाकर्ता भी नीम का थाना पंचायत समिति में नियुक्त किया गया, लेकिन 3 अगस्त, 2009 को राज्य सरकार ने आदेश जारी कर कहा कि रोजगार सहायक व अन्य पदों पर काम कर रहे लोगों की सेवाएं 31 अगस्त से समाप्त की जा रही हैं और इनकी जगह पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नियुक्ति की जाएगी। राज्य सरकार के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

याचिकाओं में कहा कि वित्त विभाग ने जुलाई में एक परिपत्र में इन पदों पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नियुक्ति कराने का निर्णय लिया है। सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक है क्योंकि संविदाकर्मियों को हटाकर उनकी जगह नए संविदा कर्मियों को नियुक्त किया जा रहा है, इसलिए सरकार के आदेश पर रोक लगाई जाए। न्यायाधीश ने याचिकाओं पर सुनवाई कर सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह न तो याचिकाकर्ताओं को उनके पदों से हटाए, न उनके पदों पर संविदा के आधार पर नई नियुक्तियां करे। हालांकि न्यायाधीश ने सरकार को यह स्वतंत्रता दी है कि यदि वह चाहे तो इन पदों को नियमित भर्ती से भर सकती है।

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संविदा नरेगाकर्मियों को हटाने पर रोक।
राजस्थान हाई कोर्ट ने नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) के तहत संविदा पर काम कर रहे ग्राम रोजगार सहायकों, सहायक लेखाकारों, कंप्यूटर सहायकों सहित अन्य कर्मचारियों के हटाने की प्रक्रिया पर शुक्रवार को रोक लगा दी। साथ ही पंचायतीराज विभाग के सचिव व निदेशक सहित सीकर के जिला कलेक्टर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने यह आदेश राजेश कुमार यादव व अन्य की ओर से दायर तीन यचिकाओं पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिया है। यह आदेश याचिकाकर्ताओं के मामले में ही प्रभावी रहेगा। याचिका में कहा है कि नरेगा के तहत 2008 में विभिन्न पंचायत समितियों में संविदा के आधार पर हजारों रोजगार सहायकों एवं अन्य पदों पर अभ्यर्थियों को नियुक्त किया था।

याचिकाकर्ता भी नीम का थाना पंचायत समिति में नियुक्त किया गया, लेकिन 3 अगस्त, 2009 को राज्य सरकार ने आदेश जारी कर कहा कि रोजगार सहायक व अन्य पदों पर काम कर रहे लोगों की सेवाएं 31 अगस्त से समाप्त की जा रही हैं और इनकी जगह पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नियुक्ति की जाएगी। राज्य सरकार के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

याचिकाओं में कहा कि वित्त विभाग ने जुलाई में एक परिपत्र में इन पदों पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए नियुक्ति कराने का निर्णय लिया है। सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक है क्योंकि संविदाकर्मियों को हटाकर उनकी जगह नए संविदा कर्मियों को नियुक्त किया जा रहा है, इसलिए सरकार के आदेश पर रोक लगाई जाए। न्यायाधीश ने याचिकाओं पर सुनवाई कर सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह न तो याचिकाकर्ताओं को उनके पदों से हटाए, न उनके पदों पर संविदा के आधार पर नई नियुक्तियां करे। हालांकि न्यायाधीश ने सरकार को यह स्वतंत्रता दी है कि यदि वह चाहे तो इन पदों को नियमित भर्ती से भर सकती है।

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++नरेगा के नाम एक और कलंक

राजस्थान, देश के गामीण विकास मंत्री का प्रदेश. यहाँ कांग्रेस की सरकार है. प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष भी मंत्री जी है. अपना पूरा समय भी प्रदेश को दे रहे है. इतना ही नहीं नरेगा को बजट देने में कोई कोताही उनके यहाँ नहीं है. हर एक पंचायत को औसत सालाना एक करोड का बजट दिया है.

उसी राजस्थान में घोटालों की लम्बी फेहरिस्त है. कलक्टर से लेकर मैट सब पर आरोप है. मास्टर,थानेदार और डाक्टरों के नाम से भुगतान हो रहे है. उसी राजस्थान में पंचायतीराज के हाल में सम्पन्न चुनावों के बाद नवनिर्वाचित सरपंचों को नरेगा प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण की गुणवत्ता और सरपंचों के विचारों से तो लगता है हालात बहुत खराब है. दो दिवसीय प्रशिक्षण का आखों देखा हाल देखकर तो ऐसा ही लगता है.

कार्यशाला के शुभारम्भ का संचालन भी उन्होंने किया. कुछ लच्छेदार कशीदे भी पढे. तो बाद में प्रशिक्षणार्थियों के बीच बोले भी वही. कहा ये कानून ऐसा है जिसमें जेल भी हो सकती है. आपको धुँआधार काम कराने है. काम करवाओगे तभी कुछ...... जब हमने उनसे प्रशिक्षण में उनकी भूमिका के बारे में पूछा. तो साफ जबाब था. यहाँ कोई बोलने वाला नहीं है. सभी जगह मुझे ही खडा कर देते है. मैं तो उधोग प्रसार अधिकारी हूँ. मेरा यहाँ कोई काम नहीं है. ये हालात है प्रदेश में महानरेगा को लेकर चल रहे नव र्निवाचित सरपंचों के प्रशिक्षणों के. जहाँ अधिकारी नदारद है. और बोलने वाले बकवास कर खानापूर्ति कर रहे है.

नरेगा को लेकर कार्यशाला की सूचना थी. पूरे प्रदेश में अप्रेल माह के दौरान नव निर्वाचित सरपंचों को सरकार द्वारा दो दिवसीय कार्यशालाओं में प्रशिक्षण दिया गया. ये सोचकर कि कुछ अच्छी जानकारियाँ मिलेगी. नरेगा को और बेहतर जानने समझने का मौका मिलेगा. मैं भरतपुर जिले की एक पंचायत समिति में निर्धारित बताये समय जा पहुँचा. प्रदेश में इन दिनों सरकारी कार्यालयों का समय 9.30 बजे है. इक्का दुक्का लोग इधर उधर घूम रहे थे. सभागार का ताला लगा था. ये इंतजार बहुत लम्बा रहा. 11 बजे से कुछ सरपंचों ने आना शुरू किया. 12 बजे अतिथि आये. एक कोने में स्थायी रूप से कुर्सी पर रखी हुई सरस्वती प्रतिमा को माला पहनाई. दीपक तो जलते ही बुझ गया. शायद यही संकेत था प्रशिक्षण और उसकी गुणवत्ता का. कोई भी जिम्मेदार सरकारी नुमाईंदा वहाँ मौजूद नही. अतिथि भी बिना कुछ बोले, कहे, चले गये. सभागार में न तों माइक था और न ही प्रशिक्षण को बताने वाला कोई बैनर. शुभारम्भ की इस औपचारिकता में बुलाये 45 में से 23 सरपंच उपस्थित दिखे. जिनमें आठ महिलाऐं सहमी सी बैठी थी.

अब जिन्हें बोलना आता था उन्होंने बोलना शुरू किया. उनकी सूचना के अनुसार सरपंचों का ये पहला मौका था. ऐसे में परिचय सत्र जरूरी था. बिना अपना परिचय दिये उन्होंने सबका अता पता पूछा. जब एक सज्जन ने कहा कि वो तो सरपंच पति है. तो एक मजेदार बात हुई. ‘‘ अरे आप अपना परिचय जरूर दो. भाई आगे काम तो आप ही से पडेगा’’ 30 मिनिट का परिचय सत्र 8 मिनिट में पूरा हो गया. धीरे से एक सरपंच ने इतना ही कहा. हमसे तो पूछ लिया अपना कुछ बताया नहीं. उनकी बात किसी ने नहीं सुनी. सुनता भी कौन,एक वो ही बोलने वाले थे. जिन्हें खुद के बोलने से फुरर्सत मिले तो वो किसी और की सुनें. इस बीच दूसरे एक कर्मचारी ने उपस्थित जनों को दो सरकारी किताबें, एक पैड और पेन देकर जैसे तैसे दस्तखत करा लिये. लेने वालों ने उलट पुलट कर देखा और कोई जरूरी चीज समझकर अपने पास रख लिया.

अब बारी आई. पंचायत समिति के नरेगा कार्यकम अधिकारी की. दो साल से नरेगा को अपनी उँगलियों के इशारे चलाने वाले, दर्जनों मामलों की जाँच कर चुके उन सहाब ने एक सरकारी किताब को अपने हाथ में ले लिया. और लगे नरेगा का क ख ग बोलने. सबसे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री की ओर से चुने हुये सरपंचो को बधाई दी. साथ में अपनी ओर से भी जोड दी. फिर लगे फर्राटे से किताब पढने. एक पन्ना जल्दी जल्दी पढ दिया. सामने बैठे 4-6 को छोड दिया जाये तो किसी को नहीं पता चला कि उन्होंने कहा क्या है? पीछे से ,सुनाई नहीं दे रहा,ऐसी कुछ आवाज भी आई मगर एक बार फिर उसे किसी ने नहीं सुना. इस बीच जाँब कार्ड का बनना, काम माँगना, काम कराना और हरित राजस्थान,राजीव गाँधी केन्द्र जैसे महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी जा चुकी थी. किताब के पढने के बीच कहीं नरेगा में ठेकेदारों से सामान सप्लाई कराने और टैण्डर होने जैसी बातें आ गई. जो सरपंच पहले से जानकारी रखते थे, या कहें अब सरपंच पति के रूप बैठे थे, ने बात को पकड लिया. यहाँ गौरतलब बात ये है कि सरकार ने प्रदेश भर में टैण्डर प्रक्रिया ये सामान सप्लाई की कार्यवाही शुरू की हुई है. लेकिन सरपंचों के विरोध के चलते अभी तक ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. आगामी दिनों में इसके फिर होने की संभावना है. इस बात की जानकारी मिलते ही सरपंचों के बीच फिर से कानाफूसी शुरू हो गई. और बोलने वाले सहाब ने कार्यक्रम अधिकारी से कमान अपने हाथ में ले ली.इसी गपशप के बीच 1.30 हो गये.

अब एक जरूरी सूचना दी गई. आपको भूख लग आई होगी. हमने आपके लिए खाने की व्यवस्था की है. पीछे खाने के पैकेट रखे है अब आप खाना खा ले. कुछ और बातें बाद में करेगें. पूडी,तीन सब्जी और मिठाई. ये था खाने का पैकेट. सरपंच साहिवानों ने पैकेट लिये. कुछ ने तो एक से अधिक पर भी हाथ मारा. पति और बच्चे जो साथ थे. कर्मचारियों ने भी अपने हिस्से को कहाँ पीछे छोडा. खाना ही तो था. फिर भी कुछ पैकेट कार्टून में बच गये. इस बीच शिक्षकों के एक बडे समूह ने आकर सभागार को अपने कब्जे में ले लिया. वहाँ भी होने वाले किसी प्रशिक्षण में खाने के मीनू को लेकर खींचतान होने लग गई. सरपंच तब तक बाहर जा चुके थे.

हमने बोलने वाले सहाब से आगामी सत्रों के बारे में जानकारी ली तो उनका साफ कहना था. अब सरपंच ही लौट कर नहीं आयेगें. अब तो कल ही होगा. कुछ लोगों को बोलने के लिए बाहर से बुलबाया है. आज तो यहाँ और कोई है भी नहीं. पंचायत समिति में वैसे नरेगा के तीन जेईएन,एईन,और दर्जनों अधिकारी कर्मचारी है. मगर प्रशिक्षण कक्ष की ओर किसी ने आना जरूरी नहीं समझा. हमने नरेगा के ही एक सज्जन से पूछा तो उनका जबाब बडा सटीक था. ‘‘ सरपंचों को सब पता है क्या और कैसे करना है. इन्होंने भी लाखों रूपये चुनाबों में यों ही नहीं खर्च किये है. जब हमारे पास आयेगे तो सब समझा देगे. कि भरपाई कैसे होगी ’’ प्रशिक्षणों में क्या धरा है?
प्रशिक्षण का दूसरा दिन. समय सुबह के 10 बजे. प्रशिक्षण के सभागार पर अब भी ताला लगा था. 11.30 बजे ताला खुला तो हम भी अन्दर जाकर बैठ गये. इससे पहले बुजुर्ग सरपंच पूरन सिंह जाटव से मुलाकात हो गई. उनसे जब प्रशिक्षण के बारे में पूछा था तो उनके जबाब ने सारी स्थिति और अधिक स्पष्ट कर दी. ‘‘ काहे का प्रशिक्षण है. कमीशन दो और काम लो याई कौ प्रशिक्षण है ई." एक और सरपंच कल्लीराम जो पहले दिन नहीं आये थे हमने उनसे पूछा तो उनका भी साफ कहना था.‘‘ क्या हुआ कल नहीं आये तो. दस्तखत तो हो ही गये. सब फौरमल्टी है ’’ इनको अपने पैसे बनाने है और हमें पैसे देकर काम कराने है.
12 बजे एक बार फिर कल बोलने वाले सहाब आये. कमरे में झाँक कर देखा और 5 लोगों को बैठा देख चल गये. 12.20 पर आज विकास अधिकारी आये. इतने में सरपंचों की संख्या 12 हो गई. जिनमें 2 महिलाऐं. मौके की नजाकत देख उन्होंने बोलना शुरू किया. सबसे पहले तो पीछे बैठी महिलाओं को आगे बुलाया. फिर बोले. सरकार आपको ट्रेण्ड करना चाहती है. आपका पद बहुत उँचा है. जनता की आपसे बहुत उम्मीद है. आपको अपनी सोच के अनुसार गाँव का विकास करना है. इसके लिए नरेगा बहुत अच्छा है. इससे आप गाँव की कायापलट कर सकते है. इतने में पीछे से एक सरपंच बोले. ऐसी कोई बात बताओं जाते अपनी कायापलट होय. बहुत खर्चा हो गयो है. इस बीच फिर गपशप का दौर शुरू हो गया.

अब 1.30 का समय हो गया. भोजन की सूचना दी गई. भोजन के पैकेट बाँट दिये गये. लोग खाने में मशगूल हो गये. कार्यशाला के शुभारम्भ की ही तरह उसका समापन भी हो गया. हमने प्रशिक्षण के सरकारी बजट की जानकारी लेने की कोशिश में हाथ पैर मारना शुरू किया. बमुशिकल कुछ जानकारी मिली. जो मिली चौकाने बाली थी. प्रति सरपंच 45 रूप्ये की डायरी पैन. 100 रूपये भोजन. 20 रूपये किराया. 400 रूपये प्रति सत्र दक्ष प्रशिक्षकों का भुगतान. हजारों रूपये का अलग से प्रशासनिक व्यय. और भी कई खर्चे थे जिन्हें बताने वालों ने शायद नहीं बताया.

अब पंचायती राज के स्तर पर राजस्थान प्रदेश को समझने की कोशिश करते है. देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बडे प्रदेश में करीब 250 पंचायत समिति क्षेत्रों में लगभग 9200 ग्राम पंचायतें है. जहाँ नरेगा के ऐसे प्रशिक्षण कराये गये. इन प्रशिक्षणों में खर्चे के तौर पर करोडों रूपये के खर्च हुये. प्रदेश में हर एक महीने की 5 और 20 तारीख ग्राम पंचायतों की बैठक के लिए अनिवार्य रूप से तय तिथि है. जिस प्रशिक्षण की हमने यहाँ चर्चा की है. उसके समापन की तिथि भी 20 अप्रेल थी. आयोजकों ने इस बात का भी ध्यान नहीं रखा.

हमने तो बानगी के तौर पर एक प्रशिक्षण को नजदीक से देखने और समझने की कोशिश की थी. हम ये सोच सकते है कि और प्रशिक्षण इससे बेहतर हुये होगें. और ये भी हो सकता है कि इससे बदतर हालात रहे होगें जहाँ कागजों में ही खानापूर्ति कर दी गई होगी. सवाल यही से खडा होता है कि क्या ऐसे प्रशिक्षणों से राजस्थान का महानरेगा जो एक प्रकार से महाघोटाला बन चुका है कुछ उबर पायेगा. या हालात और बद से बदतर होते चले जाऐगें. इस प्रशिक्षण और दूसरे प्रशिक्षणों की जब स्थानीय अखबारों में फोटो सहित शानदार खबरें पढी तो एक दुख का कारण और सामने आया. कहीं अव्यवस्थाओं के लिए चौथा स्तम्भ भी तो जिम्मेदार नहीं है. मुझे तो ऐसा ही लगता है. आप के पास कोई और कारण हो तो मुझे भी बताना

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++राजस्थान में नर्क का दूसरा नाम है नरेगा

अगर भ्रष्टाचार नर्क है तो इस नर्क का दूसरा नाम नरेगा ही होना चाहिए. कम से कम राजस्थान की हकीकत यही है. देश के ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी राजस्थान से आते हैं. यही वह मंत्रालय है जो मनरेगा को देशभर में लागू करता है. लेकिन विडम्बना देखिए कि राजस्थान में मनरेगा के ऊपर जो भी सर्वे आ रहे हैं वे सब इसे भ्रष्टतम व्यवस्था साबित कर रहे हैं. पहले सोशल आडिट में यह बात सामने आयी और अब एक सर्वे नरेगा की पोल खोल रहा है.

हाल में ही हुए एक सर्वे में राजस्थान में सरकारी स्तर पर जिला प्रमुख और प्रधानों से ये जानने की कोशिश की गई कि क्या मनरेगा में महाधोटाला है? जब प्रधानों और सरपंचों से यह सवाल पूछा गया तो वे बेचारे सच कह गये. या फिर कहें कि प्रश्नावली में कुछ उलझ गये. प्रदेश के 87 फीसदी जिला प्रमुखों और प्रधानों ने मान लिया है कि नरेगा में महाघटिया स्तर के काम हो रहे हैं. इतना ही नहीं 98 फीसदी ने तो कह दिया कि ग्राम सभा में केवल खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं होता है.

ये सच बहुत कडवा है. लोकतंत्र की पहली सीढी है पंचायतीराज. जिसमें ग्राम पंचायत से जिला परिषद तक का पूरा तंत्र आता है. ग्राम सभा ही वो मंच है जो गॉव के विकास की इबारत लिखता है. ऐसे में पंचायतीराज के मुखिया ही ये कहे कि ग्राम सभा खानापूर्ति से अधिक कुछ नहीं है. तो सवाल खडा होता है कि आखिर हो क्या रहा है. और क्यों हो रहा है? इसके पीछे की कहानी बड़ी अजीब है. मनरेगा (महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का संक्षिप्त नाम) के आने के बाद पहली बार हुए पंचायतीराज के चुनावों पने इस बात को प्रमाणित भी कर दिया है. 20 जनवरी से ११ फरवरी तक चली पंचायतीराज की चुनाव प्रक्रिया में इस बार सरपंच, प्रधान और जिला प्रमुख बनने के लिए लाखों करोडों रूपये पानी की तरह बहाये गये. तो फिर वो ये क्यों न माने की नरेगा में भ्रष्टाचार है और ग्राम सभा एक औप चारिकता से अधिक कुछ नही है. विकास के लिए धन चाहिए. योजना का खाका चाहिए. फिर उसका क्रियांवयन. ऐसा कम ही होता है कि ये सब अधिकार किसी एक एजेंसी को मिल जाये. लेकिन है. नरेगा एक ऐसा ही विचार है. जिसने गॉव के लोगों को सीधे ही पैसा,योजना का खाका बनाना और उसका क्रियांवयन एक साथ करने का अधिकार दे दिया.

इस सर्वे में इन जन प्रतिनिधियों ने माना है कि मनरेगा के अन्तर्गत जिन आधारभूत सुविधाओं का ढिढोरा पीटा जाता है उतना जमीन पर है नहीं. 21 फीसदी का मानना है कि कार्यस्थल पर पानी की कोई व्यवस्था नहीं रहती है. 28 फीसदी का मानना है कि मैडीकल सुविधा के नाम खानापूर्ति होती है. 43 फीसदी का मानना है कि महिला श्रमिकों के बच्चों को पालना सुविधा तक उपलब्ध नहीं रहती है. तो 39 फीसदी का मानना है कि मजदूरों के लिए छाया की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है. इतना तक तो ठीक है 42 फीसदी का तो ये कहना है कि नरेगा के पक्के कामों के लिए खरीदा गया सीमेंन्ट,बजरी,ग्रेवल का 20 प्रतिशत भाग तो कार्यस्थल से गायब ही हो जाता है. 53 फीसदी ने माना है कि नरेगा में फर्जी जॉब कार्ड है. जिला प्रमुख और प्रधानों ने महानरेगा के कामों में भ्रष्टाचार और लापरवाही के लिए भी मैटों को सबसे अधिक जिम्मेदार माना है. इनके साथ ही 22 प्रतिशत पीओ को, 13 प्रतिशत जेईएन, 8 प्रतिशत सचिव, 7 प्रतिशत सचिव, 6 प्रतिशत कलक्टर व डी ओ को तथा ४-४ प्रतिशत सीईओ व मजदूरों को जिम्मेदार माना है.

इस सर्वे में एक बात को बडी साफगोई से माना गया है कि मनरेगा में "रेवडियॉ" बंट रही है. वैसे रेवड़ियों को लेकर एक बडी प्रसिद्व कहावत भी है. "अंधा बाटैं रेवडी फिर फिर अपने न कू दे" कुछ ऐसे ही हालात नरेगा के है. सर्वे में शामिल जनप्रतिनिधियों में से 58 प्रतिशत से माना है कि मजदूरों को बगैर पूरा काम किये भुगतान मिल रहा है. इसके लिए वो जेईएन को जिम्मेदार मानते है. तो ४० प्रतिशत का मानना है कि इसके लिए मैट जिम्मेदार है. इस सर्वे की सबसे अहम बात ग्राम सभा को महज खानापूर्ति मानना है. वैसे तो महत्वपूर्ण मुददों तक में संसद की कुर्सियां तक देश में खाली दिखाई पड ही जाती है. सर्वे में शामिल लगभग सभी जनप्रतिनिधियों ने ये माना है कि ग्राम सभा केवल एक नाम की औपचारिकता है. पंचायत की बैठकों तक में कोरम पूर्ति नहीं होती है. कहने को गॉव के स्तर पर पारदर्शिता की बातें की जाती है. लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि पंचायतीराज को आरक्षण के बाबजूद प्रभावशाली लोगों ने अपने हाथों में ले रखा है. जिससे कोरम मात्र खानापूर्ति बनकर रह गया है.

ऐसे में केवल धन और अधिकार देने मात्र से पंचायतीराज को मजबूत नहीं किया जा सकता है. जब तक गॉव की जनता खुद आगे आकर अपने मत और अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होगी. तब तक "गॉव की सरकार" जैसे जुमले गढे जाते रहेगें और अपने ही लोग जनता को बेबकूफ बनाते रहेगें. पंचायतीराज के इन जन प्रतिनिधियों ने एक बडी बात कहने की कोशिश की है. ९४ प्रतिशत का मानना है कि पंचायतीराज सस्थाओं के चुनाव लडने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की जानी चाहिये. ७५ प्रतिशत का तो मानना है कि ये योग्यता १० वीं या उससे कहीं अधिक होनी चाहिये,और उसे भी अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये. इन प्रधान और जिला प्रमुखों ने एक बात की ओर और इशारा किया है कि इन पदों के चुनाव भी सरपंचों की ही तर्ज पर सीधे कराये जाने चाहिये. ऐसा मानने वालों का प्रतिशत 72 है. और इस बात को लेकर के प्रदेश में एक पहल भी शुरू हो चुकी है. हाल ही में मुख्यमंत्री ने स्वंय इस बात को आगे बढाया है.

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++महानरेगा में हो रहे चहुंओर महाघोटाले


जोधपुर। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना के तहत जोधपुर जिले की हर पंचायत समिति में सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है। मेट, रोजगार सहायक, सरपंच और सरकारी कर्मचारी लाखों रुपए हड़प रहे हैं। ग्राम पंचायतों मंे निम्न स्तर के कार्य हो रहे हैं। फर्जी नाम से भुगतान उठ रहे हैं। प्रशासन के पास नरेगा कार्यो की शिकायतों का अंबार लगा है।



अब तक हुई जांच में 31 जगह भ्रष्टाचार सामने आया है। हालांकि प्रशासन ने दोषी जनप्रतिनिधियों व सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए हैं तथा उनसे सरकारी धन वसूलने की कार्रवाई की है, मगर हर स्तर पर गड़बड़ी रोकना संभव नहीं हो रहा है। पंचायती राज विभाग ने नरेगा में भ्रष्टाचार रोकने तथा गांवों में गुणवत्ता वाले कार्य कराने के लिए जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, उपखंड अधिकारियों, विकास अधिकारियों तथा अधिशासी अभियंताओं को प्रत्येक गांव में नरेगा कार्य का आकस्मिक निरीक्षण करने के निर्देश दे रखे हैं, परंतु सिर्फ शिकायतों के आधार पर जांच और कार्रवाई करने की नीति के कारण गड़बड़ियां नहीं रुक रही है।



मुकदमों की लंबी लिस्ट: नरेगा के कार्य में गुणवत्ता की कमी, मिलावट और फर्जी नाम लिख कर भुगतान उठाने के एक दर्जन मामले पुलिस थानों तक पहुंच गए हैं। हीरादेसर, बुचकला, गुड़ा विश्नोइयां, केलनसर, भीकमकोर, खाबड़ा खुर्द, भवाद, शिकारपुरा-कांकाणी, भोपालगढ़, बाप, जुड़ आदि ग्राम पंचायतों में मेट, रोजगार सहायक और सरपंचों के खिलाफ धोखाधड़ी कर सरकारी राशि के गबन के मुकदमे दर्ज हुए हैं।



जनप्रतिनिधि न कर्मचारी पीछे: केंद्र सरकार से मिल रहे धन को हड़पने में न जनप्रतिनिधि पीछे हैं और न ही सरकारी कर्मचारी। अब तक हुई जांच में 31 जगह गड़बड़ियां पकड़ी गई जहां धन का दुरुपयोग हुआ था। प्रशासनिक जांच में सर्वाधिक दोषी मेट पाए गए जो मस्टर रोल में फर्जी नाम भरने तथा हाजरियों में हेराफेरी करते पकड़े गए।



रोजगार सहायक और शिकारपुरा, बालरवा, जुड़ के सरपंच भी घोटालों में लिप्त रहे। शिकारपुरा में कनिष्ठ तकनीकी सहायक, बालरवा में सिंचाई विभाग के जेईएन, दयाकौर में नरेगा के जेईएन, बालरवा में मंडोर पंचायत समिति के विकास अधिकारी, बाप पंचायत समिति के नूरे के भुर्ज गांव में वरिष्ठ तकनीकी सहायक आदि को घोटालों के लिए दोषी माना गया है। इन दोषी कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों से वसूली की जा रही है।

भास्कर न्यूजmWednesday, Apr 28th, 2010

++ऑनलाइन जन शिकायत निपटारा प्रणाली

  • नरेगा की वेबसाइट पर ऑनलाइन जन शिकायत निपटारा प्रणाली के जरिए आप अपने क्षेत्र में नरेगा से सम्‍बन्धित मुद्दों पर शिकायत दर्ज कराने में लोगों की मदद कर सकते हैं।
  • अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए- http://nrega.nic.in/statepage.asp?check=pgr पर क्लिक करें, अपने राज्‍य का चुनाव करें और शिकायत दर्ज कराने के लिए निर्देशों का पालन करें

++नरेगा के लिए टॉल फ्री सहायता सेवा

  • नई दिल्‍ली में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा के अंतर्गत आने वाले परिवारों और अन्‍य के लिए एक राष्‍ट्रीय हेल्‍पलाइन सेवा शुरू की है जिससे ये लोग कानून के तहत अपने अधिकारों के संरक्षण और कानून के समुचित क्रियान्‍वयन व योजना संबंधी मदद ले सकें।
  • टॉल फ्री हेल्‍पलाइन नबंर है: 1800110707

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महानरेगा का समय बदला

अजमेर। चिलचिलाती धूप और कई जगह श्रमिकों की मांग आने के बाद आखिरकार जिला प्रशासन ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के कार्य का समय बदल दिया है। अब नरेगा के काम सुबह 6 से दोपहर दो बजे तक ही चलेंगे। जिला कलक्टर राजेश यादव ने बताया कि समय बदलने के आदेश जारी कर दिए गए है।

जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पी.आर. पंडत ने समय बदलने का प्रस्ताव जिला कलक्टर को भिजवाया था। मालूम हो कि गर्मी को देखते हुए महानरेगा का कार्य समय बदलने की मांग उठ रही थी

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नरेगा की छवि सुधारेंगे
14 अप्रैल 2010, Source- Rajasthanpatrika

बीकानेर। बीकानेर पंचायत समिति नरेगा की छवि सुधारने का काम करेगी। प्रधान भोमराज आर्य ने बीकानेर पंचायत समिति में आयोजित स्वागत कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस कह रहे हैं, तो पंचायत राज में कहीं न कहीं खोट है। गलत जॉब कार्ड बने है। 40 वर्षो से तालाब खुद रहे हैं। अब पंचायत प्रतिनिधि तय कर लें कि नरेगा में पिछली राह पर नहीं चलना है। सरपंच बीएसआर पर काम करें तो ईमानदारी से 15 प्रतिशत बचता है।

आर्य ने कहा कि 100 खेतों का एक यूनिट में सामुदायिक विकास के भूमि सुधार, कुण्ड एवं मकान निर्माण, तारबंदी आदि काम करवाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि 15 मई तक साधारण सभा की दूसरी बैठक बुलाकर समस्याओं के समाधान की कोशिश की जाएगी।

जनता को बहुत उम्मीदें

बीकानेर में जिला प्रमुख और प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए है। ग्र्रामीण क्षेत्रों में नई चेतना का संचार हुआ है। अब जनता को जिला परिषद एवं पंचायत समिति से बहुत उम्मीदें हैं। समारोह के मुख्य अतिथि महापौर भवानीशंकर शर्मा ने कहा कि अब कडी से कडी जुडी है, तो जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाएं।

ढाणी का दिल्ली से सीधा जुडाव

जिला प्रमुख रामेश्वर डूडी ने कहा कि कडी से कडी जुडने से प्रत्येक गांव-ढाणी की दिल्ली तक सम्पर्क हो गया है। उन्होंने कहा कि हर गांव में पीने का पानी, बिजली, चिकित्सा एवं शिक्षा जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाना हमारा नैतिक दायित्व है। ग्र्रामीणों को नरेगा में रोजगार मिले। जल संरक्षण का महत्व समझें। शिक्षा का स्तर सुधारें।

इन्होंने रखी समस्याएं

साधारण सभा की बैठक में बेलासर सरपंच नरेन्द्र सिंह, नौरंगदेसर सरपंच चम्पा लाल गेदर, केसरदेसर जाटान सरपंच काना राम, शेरेरा सरपंच श्रीमती दाखी देवी , जिला परिषद सदस्य राजेन्द्र मूंड, राधा देवी, भवानी सिंह, किसन लाल सोनी, अशोक कुमार, मुरलीधर, गोरधन राम, जफर मोहम्मद शाह आदि ने अपने क्षेत्र की समस्याएं रखी।

ये अधिकारी शामिल

जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बलवंत सिंह विश्नोई, उपखण्ड अधिकारी मदन लाल सियाग, सहायक कलक्टर ए.एच. गौरी, जलदाय विभाग के अधीक्षण अभियंता मुकेश गुप्ता, विकास अधिकारी प्रहलाद सिंह जाखड, पीडब्ल्यूडी के अधीक्षण अभियंता सी.पी. कडवासरा तथा विभिन्न विभागों के अधिकारी शामिल हुए

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नरेगा श्रमिकों को कम्प्यूटर शिक्षा दी जाएगी

जयपुर, 6 दिसम्बर (आईएएनएस)। भीलवाड़ा जिले के 50 चयनित गांवों में एक हजार नरेगा श्रमिकों को बुनियादी शिक्षा एवं कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की जाएगी। इन गांवों का चयन पायलट प्रोजेक्ट वाले 101 गांवों में से ही किया जाएगा।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास सचिव रोहित कुमार सिंह तथा राजस्थान में नरेगा के निदेशक तन्मय कुमार द्वारा भीलवाड़ा जिले में नरेगा एवं समग्र ग्रामीण विकास के क्षेत्र में चलाये जा रहे नवाचार कार्यक्रमों पर चर्चा के दौरान यह जानकारी देते हुए बताया गया कि 'प्रथम' मुंबई [^] शिक्षण उपक्रम के माध्यम से चलाये जाने वाले कम्प्यूटर शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत 15 गांवों के समूह पर एक कम्प्यूटर शिक्षा केन्द्र स्थापित किया जाएगा। प्रत्येक केन्द्र पर दो कोर्डिनेटर नियुक्त होंगे।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास सचिव एवं निदेशक नरेगा ने कम्प्यूटर शिक्षा पाठ्यक्रम में नरेगा से जानकारी शामिल करने, कम्प्यूटर कोर्स की मान्यता सुनिश्चित करने तथा अधिकाधिक महिलाओं को इस कोर्स से जोड़ने का सुझाव दिया। 'प्रथम' संस्था के प्रतिनिधि सज्जन सिंह शेखावत ने बताया कि जिले में आगामी जनवरी माह से यह कम्प्यूटर शिक्षा कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया जायेगा तथा कोर्स की अवधि 6 माह होगी।

बैठक में नरेगा निदेशक ने बताया कि जिले के पंचायत समिति मुख्यालयों पर भारात निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्र खोले जाएंगे। इन सेवा केन्द्रों पर ग्रामीणजनों को नरेगा तथा अन्य विकास कार्यक्रमों की जानकारी सूचना प्रोद्योगिकी के माध्यम से उपलब्ध हो सकेगी। सेवा केन्द्रों पर वीडियो काफ्रेंसिंग की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी। इसी तरह जिले के ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर भी राजीव गांधी सेवा केन्द्र खोले जायेंगे जो ग्राम ज्ञान संसाधन केन्द्र के रुप में कार्य करेंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

नरेगा : रोजगार की गारंटी या लूट की

नरेगा अब मनरेगा के नाम से जाना जा रहा है। रोजगार की गारंटी देनेवाली इस अति महत्वाकांक्षी योजना का नाम तो बदल गया लेकिन सरकार लूटेरों से बचाने का कोई ठोस उपाय करने में अब तक असफल रही हैं हमारी सरकारें। सत्ता का, सिस्टम का, जनता के रहनुमाओं का अपना चरित्र होता है, अलग प्रकृति होती है। सो, तमाम प्रयासों के बावजूद सरकारें रिश्वतखोर अधिकारियों, कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों, बिचौलियों, दलालों के गठजोड़ को तोड़ने में असफल रही हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना भी बिहार में चल रही अन्य कल्याणकारी योजनाओं से अलग कोई सफलता की कहानी नहीं लिख पाई है।

हाल ही में बिहार के साहेबगंज प्रखंड के हुस्सेपुर रत्ती पंचायत के कुछ युवाओं ने मनरेगा की राशि से तालाब की हो रही उड़ाही के काम में हो रहे घपले को रोकने के लिए ग्रामिणों की पंचायत लगा दी। ग्रामिणों का आरोप है कि उड़ाही में व्यापक धांधली हो रही है, जिसकी शिकायत संबंधित पदाधिकारियों से करने के बावजूद काम जस का तस चल रहा है। मिल रही धमकियों से बेपरवाह अमृतांज इंदीवर, पंकज सिंह, फूलदेव पटेल, सकलदेव दास जैसे युवा मनरेगा को लूटेरों से बचाने के लिए डटे हैं। ऐसे जागरूक युवाओं की पहल की प्रशंसा होनी चाहिए। ‘मनरेगा तो कामधेनु गाय है जिसे जितना चाहो दूह लो।’ यह टिप्पणी है पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के संसदीय क्षेत्र वैशाली के एक जॉब कार्डधारी रकटू पासवान की। ज्ञात हो कि गरीबों को सौ दिन का रोजगार देनेवाली केंद्र की इस अति महत्वाकांक्षी योजना को डॉ. सिंह के कार्यकाल में ही शुरू किया गया था। पूर्व मंत्री महोदय के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले दो जिले मुजफ्फरपुर व वैशाली में दिखाने लायक मनरेगा की शायद ही कोई सक्सेस स्टोरी मिल जाए। भला अन्य जिलों की जमीनी हकीकत समझी जा सकती है। यह अलग बात है कि हाल के दिनों में तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त एसएम राजू की पहल पर पूरे प्रमंडल में ‘सामाजिक वानिकी कार्यक्रम’ के तहत मनरेगा के पैसे से अब तक तकरीबन दो करोड़ पेड़ लगाए जाने की खबर है। एक दिन में एक करोड़ वृक्ष लगाने का पाकिस्तान का रिकॉर्ड तोड़कर राजू भले अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करा लें, पर इस अभियान में मनरेगा के करोड़ों रुपए मुखिया, बिचौलिये, नर्सरी वाले से लेकर प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी व वरीय पदाधिकारी तक गटक गए।

‘क्या जरूरत थी एक ही दिन में इतने पौधे लगाने की। टारगेट पूरा करने के चक्कर में सैंकड़ों जगह बिना जड़ के ही पौधे रोप दिए गए। आधे से अधिक पौधे सूख गए। बाहरी टीम को दिखाने के लिए जिले के पश्चिमी व पूर्वी छोर में एक-एक पंचायत में थोड़ा बढ़िया काम कर दिया गया है।’ यह कहना है मुजफरपुर जिले के पारू प्रखंड के जिला पार्षद मदन प्रसाद का। कमीशनर भले ईमानदार हो और मनरेगा को पर्यावरण से बचाने की दिशा में एक अच्छी योजना मानते हों लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि इस कार्यक्रम में घोर लापरवाही व अनियमितता बरती गई है। आम के पेड़ कहीं पांच फीट की दूरी पर रोपे जाते हैं ? चाहे हम तिरहुत प्रमंडल की बातें करें या चंपारण की अथवा कोसी की। कुछेक अपवाद छोड़कर अधिकांश जिले में मनरेगा की जमीनी हकीकत एक-सी है। मजदूरों द्वारा जिला मुख्यालय पर लगातार किए गए धरना-प्रदर्शनों व शिकायतों के बाद इस वर्ष जनवरी में सहरसा के जिलाधिकारी आर. लक्ष्मण ने बरियाही पंचायत पहुंचकर मजदूरों से बातें की। जांच के दौरान पता चला कि बहुत से मजदूरों को रोजगार नहीं मिला और उनके नाम पर फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगाकर पैसा उठा लिया गया है। कई मजदूरों के जॉब कार्ड बिचौलियों के पास पाए गए। मस्टर रॉल में भारी अनियमितताएं पाई गईं। मनरेगा के जरिये कोसी अंचल के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, पुर्णिया के मजदूरों की पीड़ा कम करने की सरकार की मंशा पर पानी फिरता दिख रहा है। गत दिनों विधायक किशोर कुमार मुन्ना ने बिहार विधान सभा में मनरेगा में हो रही धांधली पर सदन का ध्यान खींचते हुए कहा था कि सहरसा के सत्तौर पंचायत (नवहट्टा प्रखंड) में कार्ड बांटने में धांधली हुई है। इस पंचायत में 6 से 14 उम्र के बच्चाें के नाम पर जॉब कार्ड वितरित हुए हैं। ट्रैक्टर मालिक, 5-5 एकड़ जमीन वालों, सरकारी कर्मचारियों व विकलांगों के नाम पर भी कार्ड बांटे गए हैं। इस इलाके में नहरों की सफाई में पचास करोड़ की राशि के गबन होने का मामला प्रकाश में आया है। सिंचाई विभाग के इस कार्यक्रम में मजदूरों के बदले मशीनों व ट्रैक्टरों से नहरों, तालाबों की उड़ाही की गई और मजदूरों के नाम पर बिल बन गया। बोचहां विधान सभा क्षेत्र के बखरी चौक के पास स्थित एक तालाब की उड़ाही भी मशीनों-ट्रैक्टरों से की गई है। इस दुधारू योजना के कारण त्रिस्तरीय पंचायत के प्रतिनिधि खासकर मुखिया आज चमचमाती बोलेरो गाड़ियों पर घूमते नजर आते हैं।

गया जिले के पहाड़पुर स्टेशन पर प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में मजदूरों की आवाजाही लगी रहती है। ये मजदूर पड़ोसी राज्य झारखंड के कोडरमा शहर मजदूरी की तलाश में प्रत्येक दिन जाते हैं। वहां उन्हें 180 रुपए मिलते हैं। जिले की पहाड़ी पर जंगलों के बीच बसा गुरपा गांव में बिरहोर जनजाति के 25-30 परिवार झोपड़ीनुमा मकान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहते हैं। इनके नाम वोटरलिस्ट में हैं एवं बीपीएल सूची में भी नाम दर्ज हैं लेकिन इन्हें अब तक जॉब कार्ड नहीं मिला। ये लोग जंगलों से जड़ी-बुटी चूनकर, पक्षियों को मारकर बाजार में बेचकर जैसे-तैसे जीवनयापन करते हैं। इसी गया जिले में कुछ साल पूर्व इस योजना का 1 करोड़ 88 लाख रुपए के गबन का मामला उजागर हुआ था जिसमें बीडीओ सहित कई रोजगार सेवक दोषी पाए गए थे। गया, जहानाबाद, औरंगाबाद सहित अन्य नक्सल प्रभावित इलाके भी मनरेगा में असफल रहे हैं।

मनरेगा में मची लूट को रोकने के लिए सरकार ने मजदूरों का खाता डाकघर या बैंक में खोलने का प्रावधान किया है लेकिन वह भी कारगर नहीं हो पा रहा है। अब एक नया गठजोड़ बन गया है मुखिया, प्रोग्राम अफसर, बिचौलिए, रोजगार सेवक और पोस्टमास्टरों का। अब पोस्टमास्टर भी प्रत्येक खाताधारी मजदूरों से दो से पांच फीसदी कमीशन खाता है। पारू प्रखंड के मजदूर रोजा मियां खाता खुलवाने के लिए एक माह तक डाकघर दौड़ते रहे। रोजगार सेवक भी खाता खुलवाने में दिलचस्पी नहीं लेता है। इस वजह से राज्य के अधिकांश जिले इस वित्तीय वर्ष में भी निर्धारित लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं। हालांकि निर्धन, साधनहीन वे निरक्षर मजदूर, जिनके पास कभी बचत खाता नहीं होता था वह आज बचत के महत्व को समझ रहा है। यह मनरेगा की ही देन है।

राज्य में मनरेगा की जमीनी हकीकत जानने के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पंचायतों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय ने पूछा है कि योजना के लिए उपलब्ध राशि का अगर 60-70 फीसदी हिस्सा खर्च हो चुका है तो जॉब कार्डधारी रोजगार न मिलने की शिकायत क्यों करते हैं। मनरेगा की योजनाओं को पंचायतवार ऑन लाइन न किए जाने, मस्टर रॉल तथा प्राक्कलन को वेबसाइट पर न उपलब्ध कराए जाने पर मंत्रालय ने नाराजगी जताई है। इधर, मनरेगा में जारी लूट पर अंकुश लगाने के लिए सूबे की सरकार ने जॉब कार्डधारियों को बायोमेट्रिक्स तकनीक पर आधारित ई-शक्ति कार्ड देने का निर्णय लिया है। सरकार का तर्क है कि इस तकनीक से मेजरमेंट बुक (एमबी) व उपस्थिति पंजी में घालमेल की गुंजाइश नहीं होगी। भुगतान के लिए मजदूरों को बैंक जाने की जरूरत नहीं होगी। हर साइट पर होगी बायोमेट्रिक मशीन। मजदूर काम पर पहुंचते ही अपना कार्ड पंच कर उपस्थिति बनाएंगे। उसी मशीन से काटी गई मिट्टी की माप होगी और एटीएम की तरह ही काम करेगा वह कार्ड। सप्ताह मेंं एक दिन बैंक द्वारा नियुक्त कोई एजेंट पैसा मशीनों में डालेगा, फिर ई-शक्ति कार्ड डालते ही मशीन से काम के अनुरूप मजदूरी का भुगतान हो जाएगा। यूनिक आईडेंटिफिकेशन डाटाबेस अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नंदन नीलकेणी का कहना है कि इस क्षेत्र में बिहार एक मिसाल कायम करने जा रहा है। अब देखना है कि प्रदेश का यह नया प्रयोग मनरेगा को लूटेरों से बचाने में कितना सक्षम हो पाता है।

राज्य में चल रही इस योजना के सिर्फ स्याह पहलू ही नहीं हैं। यहां के खेतों में दिनभर रोपनी, सोहनी करनेवाली महिला मजदूरों को 12-15 रुपए ही रोजाना मजदूरी मिलती थी। महंगाई के इस दौर में मनरेगा ने इन गरीब महिलाओं को सौ का नोट तो जरूर दिखाया है। वंचित समुदाय से ताल्लुकात रखनेवाली मुशहर महिलाएं भी आज मनरेगा के पैसे से अपनी किस्मत बदल रही हैं। जितना प्रचार किया जा रहा है उतना तो नहीं, किंतु राज्य के मजदूरों का इस योजना के कारण कुछ तो पलायन रुका ही है। खासकर, महिला मजदूरों को इस योजना का लाभ अधिक मिला है, जो दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करने में सक्षम नहीं हैं। हालांकि, इस योजना में लक्ष्य के अनुरूप महिला मजदूरों की भागीदारी न होना चिंता की बात है। बहरहाल, रोजगार का अधिकार देनेवाली इस योजना में पारदर्शिता लाने के लिए राज्य के जनसंगठनों व प्रबुध्दजनों को सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) को बढ़ावा देना चाहिए। यदि सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सक्षम हुई तो यह योजना निर्धन, अकुशल, निरक्षर मजदूरों के लिए वरदान साबित होगी। अन्यथा, अन्य कल्याणकारी योजनाओं की तरह यह भी लूट की संस्कृति का वाहक बनकर रह जाएगी।

-लेखक पत्रकार है। http://www.pravakta.com

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नरेगा सरकार की नहीं श्रमिकों की योजना

सिरोही। जिले में नरेगा में तीन आपराघिक प्रकरण में से एक का निस्तारण हो चुका है। जबकि शेष पर कार्रवाई जारी है। कलक्ट्री सभागार में बुधवार को राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाघिपति एवं राजस्थान विघिक सेवा प्राघिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष करणसिंह राठौड़ के पूछने पर पुलिस अधीक्षक ने उक्त जानकारी दी।

यहां न्यायिक, प्रशासनिक व पुलिस अघिकारियों की बैठक में न्यायाघिपति राठौड़ ने कहा कि नरेगा राजस्थान के लिए एक वरदान है। लेकिन, ग्रामीणों में न्यायिक जानकारी का अभाव है। इसके लिए न्यायिक अघिकारियों को समय-समय पर शिविरों का आयोजन कर कानूनी जानकारियां देनी होगी।

उन्होंने बताया कि मजदूरों को विशेष रूप से यह बात समझानी होगी कि नरेगा योजना सरकार की नहीं उनकी है। उन्होंने जिले में नरेगा में आंशिक शिकायतों पर प्रशासन की पीठ थपथपाते हुए कहा कि अघिकारियों को कठिन परिस्थितियों में झिझकने से नहीं डरना चाहिए। जिला कलक्टर पी. रमेश ने जिले में राजस्व मामलों के निस्तारण की जानकारी दी। एडीजे फास्ट ट्रेक अयूब खान, जिला विघिक सेवा प्राघिकरण के सचिव नेपालसिंह ने भी नरेगा मजदूरों को दी जाने वाली कानूनी जानकारियों का ब्योरा पेश किया।

बताया नरेगा का खाका
बैठक में जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अघिकारी देवानंद माथुर ने बताया कि जिले की 151 ग्राम पंचायतों के 492 गांवों में नरेगा का कार्य संचालित है। 1 लाख 61 हजार परिवार नरेगा का लाभ ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि नरेगा के संबंध में प्राप्त 200 में से 180 शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है।



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राज्य नरेगा को ठीक से लागू करें: प्रधानमंत्री



ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के पालन में ढिलाई बरतने वाले राज्यों की खिंचाई करते हुये प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उनसे प्रदर्शन सुधारने को कहा है.

नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में डॉ. सिंह ने कहा, "इस अनोखे कानून का पूरा फायदा उठाने के लिये हमें अभी भी बहुत कुछ करना है."

प्रधानमंत्री ने कहा, "राज्यों से हमें इसके मिश्रित परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. कुछ अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं...जबकि कुछ ढिलाई बरत रहे हैं. मैं उनसे कहूंगा कि वो अच्छा प्रदर्शन कर रहे राज्यों का अनुसरण करें."

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस कानून के अनुपालन पर निगरानी रखेगा.

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नरेगा में संशोधन की जरूरत

यूपीए सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना नरेगा को 7 दिसम्बर, 2005 अधिसूचित किया गया था। इस कानून का लक्ष्य हर वित्तीय साल में प्रत्येक गरीब परिवार के एक वयस्क परिवार को कम से कम 100 दिन का रोजगार सृजन वाला गैर-हुनर काम मुहैया कराना है। यानी नरेगा का उद्देश्य- हर हाथ को काम और काम का पूरा दाम दो। निश्चित ही, यूपीए सरकार का यह एक सराहनीय कदम था

2 फरवरी, 2009 में आन्ध्र प्रदेश के अंनतपुर जिले से शुरु हुई रोजगार गारंटी योजना अपनी शुरुआती चरण में देश के 200 जिलों से शुरु हुई थी। परन्तु योजना की सफलता को देखते हुए 1 अप्रैल 2008 से देश के बाकी जिलों को भी नरेगा से जोड़ दिया गया। यानी नरेगा अब पूरे देश में लागू है। देश के करीब 4.5 करोड़ गरीब एवं बेरोजगार परिवारों को सालाना 10,000 रुपये की आमदनी की पुख्ता व्यवस्था यूपीए सरकार ने अपने इस महत्वाकांक्षी योजना से करने का प्रयास किया है। निश्चित ही इसके द्वारा यूपीए सरकार ने देश से गरीबी और बेरोजगारी मिटाने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। यही वजह है कि यूपीए सरकार ने ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) पर फिर से भरोसा जताते हुए वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व में वित्त-वर्ष 2009-10 के बजट अनुमान में नरेगा के लिए 39,100 करोड़ रुपये का इंतजाम किया है, जो पिछले वित्त वर्ष के बजट अनुमान से 144 प्रतिशत और संशोधित अनुमान से 33 प्रतिशत ज्यादा है। अत: नरेगा केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी योजना हो गई है। लेकिन मौजूदा सवाल यह है कि इस योजना को लेकर कुछ आशंकाएं अभी भी बरकरार है। जिस पर विशेष रूप से गौर करना बहुत जरूरी है।

निश्चित तौर पर गरीबों के लिए विकास के इतिहास में इससे पहले इस तरह की कोई इतनी महत्वपूर्ण पहल नहीं की गई थी। फिर भी, देश में गरीबों की संख्या में कमी के बजाय उनकी संख्या में और वृद्धि दर्ज की गई है। भले सरकार प्रत्येक वर्ष नरेगा पर करोड़ों रुपया व्यय कर रही है, ताकि देश में मौजूद गरीबी और बेरोजगारी की दर को कम किया जा सके और सभी को दो वक्त की रोटी आसानी से मुहैया कराया जा सके। परन्तु नरेगा के द्वारा न तो देश में गरीबी की दर कम हो सकती है, और न ही गरीबों को दो वक्त की रोटी नसीब हो सकती है। ताजा आंकलन के अनुसार देश में गरीबों की तादाद 28 प्रतिशत से बढ़कर 37.2 प्रतिशत हो गई है। इसका मतलब है कि 11 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे सरक गए हैं। यानी वर्तमान समय में देश का हर तीसरा नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रहा है। यह आंकलन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष रह चुके सुरेश तेंदुलकर कमेटी का है। यह तो सरकारी आंकड़ा है, लेकिन असलियत क्या है इसका अंदाज तो सेनगुप्ता कमेटी रिपोर्ट से मिलता है। उसके अनुसार भारत के 77 फीसदी लोग 20 रुपये रोज पर गुजारा करते हैं। सवाल यह है कि किसे सही माना जाए? तेदुंलकर को या सेनगुप्ता को? गरीबों के लिए इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि उनके देश में उनका सही आंकलन नहीं हो पाता है। ऐसे देश में गरीबों के लिए बनी योजनाएं कितनी कारगर होंगी, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।

पर मौजूदा सवाल यह है कि देश में गरीबी को आंकने के जिन नए तौर तरीकों को अबतक अपनाया गया है उसके मद्देनजर नरेगा क्या वास्तव में गरीबों के लिए आजीविका की योजना है। यही सवाल नरेगा के सामने आता है। भारत में सदैव से संयुक्त परिवार की प्रथा चली आई है। और संयुक्त परिवार प्रथा में चार से चालीस सदस्य होते हैं, जिनका खाना एक ही चूल्हे पर बनता है। तो एक जाब कार्ड से 40 सदस्यों की खाद्य सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है। रोजगार गारंटी कानून के प्रावधान इस संदर्भ में स्पष्ट बयान करते हैं कि माता-पिता और दो बच्चों की प्रत्येक इकाई को एक परिवार माना जाएगा और उन्हें एक जाब कार्ड निर्गत किया जाएगा। लेकिन व्यावहारिक रूप में चार से ज्यादा सदस्यों के परिवार को भी एक ही कार्ड दिया जा रहा है।

ऐसे में क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि 100 दिन के रोजगार से किसी गरीब परिवार के 365 दिन की आजीविका सुनिश्चित हो सकती है।

इसके अलावा नरेगा के क्रियान्वयन को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। मसलन कहीं जाब कार्ड बन जाने पर भी काम न मिलने की शिकायत है, तो कहीं पूरे सौ दिन काम न मिलने की और कहीं हाजिरी रजिस्टर में हेराफेरी की। वहीं दूसरी ओर कई राज्यों में यह योजना भष्ट्राचार के अधीन हो गई है। इस तरह यदि किसी परिवार को 40 या 50 दिन ही रोजगार मिलता है, तो ऐसे में परिवार का गुजारा कैसे सुनिश्चित किया जा सकेगा? अगर हम कानून के क्रियान्वयन पर सवाल न उठाकर यह मान लें कि हमारी सरकार ने हमें 100 दिन की मजदूरी दे भी दी है तो क्या गरीब परिवार गरीबी रेखा से बाहर निकलकर उस इंडिया में शुमार हो जायेंगे जिसमें 25-30 करोड़ लोग रहते हैं। यदि प्रति परिवार को 100 दिन का रोजगार मिल भी जाता है तो 100 दिन की न्यूनतम राशि 100 रुपये के हिसाब से 10,000 रुपये प्रति चार सदस्यीय परिवार को एक वर्ष में मिलती है। इसका मतलब है कि चार सदस्यीय परिवार के प्रत्येक सदस्य के हिस्से में प्रतिवर्ष 2500 रुपये, प्रतिमाह 208.33 रुपये एवं प्रतिदिन 6.93 रुपये की राशि आती है। इस राशि से यह साफ स्पष्ट है कि एक परिवार तो दूर एक व्यक्ति की भी खाद्य सुरक्षा को प्रतिदिन सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।

सवाल अहम यह है कि सरकार ने नरेगा योजना किस पैमाने को आधार मानकर बनाई है। यहां एक तरफ देश में प्रतिदिन 20 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति को गरीबी की श्रेणी में रखा है। वही नेरगा के अन्तर्गत आय का जरिया प्रति व्यक्ति मात्र 6.93 रुपये की राशि है। ऐसे में नरेगा जैसी योजना का क्या औचित्य रह जाता है। क्योंकि नरेगा की राशि से गरीब न तो दो वक्त की रोटी जुटा सकते हैं, और न ही सरकार गरीबी की बढ़ती तादाद को रोक सकती है।

हम जरा सोचें कि अगर कोई इंसान, इंसान की तरह रहना चाहे तो उसे कम से कम क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और रहने के लिए घर चाहिए ही चाहिए। बीमार पड़ने पर दवा भी चाहिए और अगर मिल सके तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा भी चाहिए। क्या नरेगा की इस राशि से यह सबकुछ संभव है। अत: नरेगा के प्रतिदिन के 6.93 रुपये की राशि से इंसान का पेट भरना तो दूर एक पालतू जानवर का भी पेट नहीं भरा जा सकता है। यही कारण है कि आज देश में करीब 24 करोड़ लोगों को एक वक्त भूखे ही सोना पड़ता है। वो इसलिए कि वे इंसान हैं। गरीब परिवार में कभी बाप भूखा सोता है तो कभी मां और कभी-कभी बच्चों को भी इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है।

अत: यह एक गंभीर एवं चिन्ता का विषय है कि देश में गरीबों ने अपनी पहचान बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और काफी मुश्किलों के बाद वे 100 दिनों के रोजगार के हकदार बने। किन्तु गरीबों के साथ यह विंडबना रही कि इसके बाद भी वह गरीबी रेखा से ऊपर नहीं आ सके। इसीलिए जरूरी है कि अब नए सिरे से नरेगा पर फिर से विचार किया जाये। साथ ही नरेगा की मजदूरी दर में सुधार किया जाए। इसके अलावा नरेगा में सौ दिन काम की गारंटी की संख्या को भी बढ़ाया जाए। ताकि वास्तव में देश से गरीबी और बेरोजगारी को इस योजना के द्वारा खत्म किया जा सके। अन्यथा सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना पर हमेशा सवाल खड़े होते रहेंगे।

Source:-रवि शंकर,www.bhartiyapaksha.com

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