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नरेगा श्रमिकों को कम्प्यूटर शिक्षा दी जाएगी

जयपुर, 6 दिसम्बर (आईएएनएस)। भीलवाड़ा जिले के 50 चयनित गांवों में एक हजार नरेगा श्रमिकों को बुनियादी शिक्षा एवं कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की जाएगी। इन गांवों का चयन पायलट प्रोजेक्ट वाले 101 गांवों में से ही किया जाएगा।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास सचिव रोहित कुमार सिंह तथा राजस्थान में नरेगा के निदेशक तन्मय कुमार द्वारा भीलवाड़ा जिले में नरेगा एवं समग्र ग्रामीण विकास के क्षेत्र में चलाये जा रहे नवाचार कार्यक्रमों पर चर्चा के दौरान यह जानकारी देते हुए बताया गया कि 'प्रथम' मुंबई [^] शिक्षण उपक्रम के माध्यम से चलाये जाने वाले कम्प्यूटर शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत 15 गांवों के समूह पर एक कम्प्यूटर शिक्षा केन्द्र स्थापित किया जाएगा। प्रत्येक केन्द्र पर दो कोर्डिनेटर नियुक्त होंगे।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास सचिव एवं निदेशक नरेगा ने कम्प्यूटर शिक्षा पाठ्यक्रम में नरेगा से जानकारी शामिल करने, कम्प्यूटर कोर्स की मान्यता सुनिश्चित करने तथा अधिकाधिक महिलाओं को इस कोर्स से जोड़ने का सुझाव दिया। 'प्रथम' संस्था के प्रतिनिधि सज्जन सिंह शेखावत ने बताया कि जिले में आगामी जनवरी माह से यह कम्प्यूटर शिक्षा कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया जायेगा तथा कोर्स की अवधि 6 माह होगी।

बैठक में नरेगा निदेशक ने बताया कि जिले के पंचायत समिति मुख्यालयों पर भारात निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्र खोले जाएंगे। इन सेवा केन्द्रों पर ग्रामीणजनों को नरेगा तथा अन्य विकास कार्यक्रमों की जानकारी सूचना प्रोद्योगिकी के माध्यम से उपलब्ध हो सकेगी। सेवा केन्द्रों पर वीडियो काफ्रेंसिंग की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी। इसी तरह जिले के ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर भी राजीव गांधी सेवा केन्द्र खोले जायेंगे जो ग्राम ज्ञान संसाधन केन्द्र के रुप में कार्य करेंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

नरेगा : रोजगार की गारंटी या लूट की

नरेगा अब मनरेगा के नाम से जाना जा रहा है। रोजगार की गारंटी देनेवाली इस अति महत्वाकांक्षी योजना का नाम तो बदल गया लेकिन सरकार लूटेरों से बचाने का कोई ठोस उपाय करने में अब तक असफल रही हैं हमारी सरकारें। सत्ता का, सिस्टम का, जनता के रहनुमाओं का अपना चरित्र होता है, अलग प्रकृति होती है। सो, तमाम प्रयासों के बावजूद सरकारें रिश्वतखोर अधिकारियों, कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों, बिचौलियों, दलालों के गठजोड़ को तोड़ने में असफल रही हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना भी बिहार में चल रही अन्य कल्याणकारी योजनाओं से अलग कोई सफलता की कहानी नहीं लिख पाई है।

हाल ही में बिहार के साहेबगंज प्रखंड के हुस्सेपुर रत्ती पंचायत के कुछ युवाओं ने मनरेगा की राशि से तालाब की हो रही उड़ाही के काम में हो रहे घपले को रोकने के लिए ग्रामिणों की पंचायत लगा दी। ग्रामिणों का आरोप है कि उड़ाही में व्यापक धांधली हो रही है, जिसकी शिकायत संबंधित पदाधिकारियों से करने के बावजूद काम जस का तस चल रहा है। मिल रही धमकियों से बेपरवाह अमृतांज इंदीवर, पंकज सिंह, फूलदेव पटेल, सकलदेव दास जैसे युवा मनरेगा को लूटेरों से बचाने के लिए डटे हैं। ऐसे जागरूक युवाओं की पहल की प्रशंसा होनी चाहिए। ‘मनरेगा तो कामधेनु गाय है जिसे जितना चाहो दूह लो।’ यह टिप्पणी है पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के संसदीय क्षेत्र वैशाली के एक जॉब कार्डधारी रकटू पासवान की। ज्ञात हो कि गरीबों को सौ दिन का रोजगार देनेवाली केंद्र की इस अति महत्वाकांक्षी योजना को डॉ. सिंह के कार्यकाल में ही शुरू किया गया था। पूर्व मंत्री महोदय के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले दो जिले मुजफ्फरपुर व वैशाली में दिखाने लायक मनरेगा की शायद ही कोई सक्सेस स्टोरी मिल जाए। भला अन्य जिलों की जमीनी हकीकत समझी जा सकती है। यह अलग बात है कि हाल के दिनों में तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त एसएम राजू की पहल पर पूरे प्रमंडल में ‘सामाजिक वानिकी कार्यक्रम’ के तहत मनरेगा के पैसे से अब तक तकरीबन दो करोड़ पेड़ लगाए जाने की खबर है। एक दिन में एक करोड़ वृक्ष लगाने का पाकिस्तान का रिकॉर्ड तोड़कर राजू भले अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करा लें, पर इस अभियान में मनरेगा के करोड़ों रुपए मुखिया, बिचौलिये, नर्सरी वाले से लेकर प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी व वरीय पदाधिकारी तक गटक गए।

‘क्या जरूरत थी एक ही दिन में इतने पौधे लगाने की। टारगेट पूरा करने के चक्कर में सैंकड़ों जगह बिना जड़ के ही पौधे रोप दिए गए। आधे से अधिक पौधे सूख गए। बाहरी टीम को दिखाने के लिए जिले के पश्चिमी व पूर्वी छोर में एक-एक पंचायत में थोड़ा बढ़िया काम कर दिया गया है।’ यह कहना है मुजफरपुर जिले के पारू प्रखंड के जिला पार्षद मदन प्रसाद का। कमीशनर भले ईमानदार हो और मनरेगा को पर्यावरण से बचाने की दिशा में एक अच्छी योजना मानते हों लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि इस कार्यक्रम में घोर लापरवाही व अनियमितता बरती गई है। आम के पेड़ कहीं पांच फीट की दूरी पर रोपे जाते हैं ? चाहे हम तिरहुत प्रमंडल की बातें करें या चंपारण की अथवा कोसी की। कुछेक अपवाद छोड़कर अधिकांश जिले में मनरेगा की जमीनी हकीकत एक-सी है। मजदूरों द्वारा जिला मुख्यालय पर लगातार किए गए धरना-प्रदर्शनों व शिकायतों के बाद इस वर्ष जनवरी में सहरसा के जिलाधिकारी आर. लक्ष्मण ने बरियाही पंचायत पहुंचकर मजदूरों से बातें की। जांच के दौरान पता चला कि बहुत से मजदूरों को रोजगार नहीं मिला और उनके नाम पर फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगाकर पैसा उठा लिया गया है। कई मजदूरों के जॉब कार्ड बिचौलियों के पास पाए गए। मस्टर रॉल में भारी अनियमितताएं पाई गईं। मनरेगा के जरिये कोसी अंचल के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, पुर्णिया के मजदूरों की पीड़ा कम करने की सरकार की मंशा पर पानी फिरता दिख रहा है। गत दिनों विधायक किशोर कुमार मुन्ना ने बिहार विधान सभा में मनरेगा में हो रही धांधली पर सदन का ध्यान खींचते हुए कहा था कि सहरसा के सत्तौर पंचायत (नवहट्टा प्रखंड) में कार्ड बांटने में धांधली हुई है। इस पंचायत में 6 से 14 उम्र के बच्चाें के नाम पर जॉब कार्ड वितरित हुए हैं। ट्रैक्टर मालिक, 5-5 एकड़ जमीन वालों, सरकारी कर्मचारियों व विकलांगों के नाम पर भी कार्ड बांटे गए हैं। इस इलाके में नहरों की सफाई में पचास करोड़ की राशि के गबन होने का मामला प्रकाश में आया है। सिंचाई विभाग के इस कार्यक्रम में मजदूरों के बदले मशीनों व ट्रैक्टरों से नहरों, तालाबों की उड़ाही की गई और मजदूरों के नाम पर बिल बन गया। बोचहां विधान सभा क्षेत्र के बखरी चौक के पास स्थित एक तालाब की उड़ाही भी मशीनों-ट्रैक्टरों से की गई है। इस दुधारू योजना के कारण त्रिस्तरीय पंचायत के प्रतिनिधि खासकर मुखिया आज चमचमाती बोलेरो गाड़ियों पर घूमते नजर आते हैं।

गया जिले के पहाड़पुर स्टेशन पर प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में मजदूरों की आवाजाही लगी रहती है। ये मजदूर पड़ोसी राज्य झारखंड के कोडरमा शहर मजदूरी की तलाश में प्रत्येक दिन जाते हैं। वहां उन्हें 180 रुपए मिलते हैं। जिले की पहाड़ी पर जंगलों के बीच बसा गुरपा गांव में बिरहोर जनजाति के 25-30 परिवार झोपड़ीनुमा मकान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहते हैं। इनके नाम वोटरलिस्ट में हैं एवं बीपीएल सूची में भी नाम दर्ज हैं लेकिन इन्हें अब तक जॉब कार्ड नहीं मिला। ये लोग जंगलों से जड़ी-बुटी चूनकर, पक्षियों को मारकर बाजार में बेचकर जैसे-तैसे जीवनयापन करते हैं। इसी गया जिले में कुछ साल पूर्व इस योजना का 1 करोड़ 88 लाख रुपए के गबन का मामला उजागर हुआ था जिसमें बीडीओ सहित कई रोजगार सेवक दोषी पाए गए थे। गया, जहानाबाद, औरंगाबाद सहित अन्य नक्सल प्रभावित इलाके भी मनरेगा में असफल रहे हैं।

मनरेगा में मची लूट को रोकने के लिए सरकार ने मजदूरों का खाता डाकघर या बैंक में खोलने का प्रावधान किया है लेकिन वह भी कारगर नहीं हो पा रहा है। अब एक नया गठजोड़ बन गया है मुखिया, प्रोग्राम अफसर, बिचौलिए, रोजगार सेवक और पोस्टमास्टरों का। अब पोस्टमास्टर भी प्रत्येक खाताधारी मजदूरों से दो से पांच फीसदी कमीशन खाता है। पारू प्रखंड के मजदूर रोजा मियां खाता खुलवाने के लिए एक माह तक डाकघर दौड़ते रहे। रोजगार सेवक भी खाता खुलवाने में दिलचस्पी नहीं लेता है। इस वजह से राज्य के अधिकांश जिले इस वित्तीय वर्ष में भी निर्धारित लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं। हालांकि निर्धन, साधनहीन वे निरक्षर मजदूर, जिनके पास कभी बचत खाता नहीं होता था वह आज बचत के महत्व को समझ रहा है। यह मनरेगा की ही देन है।

राज्य में मनरेगा की जमीनी हकीकत जानने के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पंचायतों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय ने पूछा है कि योजना के लिए उपलब्ध राशि का अगर 60-70 फीसदी हिस्सा खर्च हो चुका है तो जॉब कार्डधारी रोजगार न मिलने की शिकायत क्यों करते हैं। मनरेगा की योजनाओं को पंचायतवार ऑन लाइन न किए जाने, मस्टर रॉल तथा प्राक्कलन को वेबसाइट पर न उपलब्ध कराए जाने पर मंत्रालय ने नाराजगी जताई है। इधर, मनरेगा में जारी लूट पर अंकुश लगाने के लिए सूबे की सरकार ने जॉब कार्डधारियों को बायोमेट्रिक्स तकनीक पर आधारित ई-शक्ति कार्ड देने का निर्णय लिया है। सरकार का तर्क है कि इस तकनीक से मेजरमेंट बुक (एमबी) व उपस्थिति पंजी में घालमेल की गुंजाइश नहीं होगी। भुगतान के लिए मजदूरों को बैंक जाने की जरूरत नहीं होगी। हर साइट पर होगी बायोमेट्रिक मशीन। मजदूर काम पर पहुंचते ही अपना कार्ड पंच कर उपस्थिति बनाएंगे। उसी मशीन से काटी गई मिट्टी की माप होगी और एटीएम की तरह ही काम करेगा वह कार्ड। सप्ताह मेंं एक दिन बैंक द्वारा नियुक्त कोई एजेंट पैसा मशीनों में डालेगा, फिर ई-शक्ति कार्ड डालते ही मशीन से काम के अनुरूप मजदूरी का भुगतान हो जाएगा। यूनिक आईडेंटिफिकेशन डाटाबेस अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नंदन नीलकेणी का कहना है कि इस क्षेत्र में बिहार एक मिसाल कायम करने जा रहा है। अब देखना है कि प्रदेश का यह नया प्रयोग मनरेगा को लूटेरों से बचाने में कितना सक्षम हो पाता है।

राज्य में चल रही इस योजना के सिर्फ स्याह पहलू ही नहीं हैं। यहां के खेतों में दिनभर रोपनी, सोहनी करनेवाली महिला मजदूरों को 12-15 रुपए ही रोजाना मजदूरी मिलती थी। महंगाई के इस दौर में मनरेगा ने इन गरीब महिलाओं को सौ का नोट तो जरूर दिखाया है। वंचित समुदाय से ताल्लुकात रखनेवाली मुशहर महिलाएं भी आज मनरेगा के पैसे से अपनी किस्मत बदल रही हैं। जितना प्रचार किया जा रहा है उतना तो नहीं, किंतु राज्य के मजदूरों का इस योजना के कारण कुछ तो पलायन रुका ही है। खासकर, महिला मजदूरों को इस योजना का लाभ अधिक मिला है, जो दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करने में सक्षम नहीं हैं। हालांकि, इस योजना में लक्ष्य के अनुरूप महिला मजदूरों की भागीदारी न होना चिंता की बात है। बहरहाल, रोजगार का अधिकार देनेवाली इस योजना में पारदर्शिता लाने के लिए राज्य के जनसंगठनों व प्रबुध्दजनों को सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) को बढ़ावा देना चाहिए। यदि सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सक्षम हुई तो यह योजना निर्धन, अकुशल, निरक्षर मजदूरों के लिए वरदान साबित होगी। अन्यथा, अन्य कल्याणकारी योजनाओं की तरह यह भी लूट की संस्कृति का वाहक बनकर रह जाएगी।

-लेखक पत्रकार है। http://www.pravakta.com

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नरेगा सरकार की नहीं श्रमिकों की योजना

सिरोही। जिले में नरेगा में तीन आपराघिक प्रकरण में से एक का निस्तारण हो चुका है। जबकि शेष पर कार्रवाई जारी है। कलक्ट्री सभागार में बुधवार को राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाघिपति एवं राजस्थान विघिक सेवा प्राघिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष करणसिंह राठौड़ के पूछने पर पुलिस अधीक्षक ने उक्त जानकारी दी।

यहां न्यायिक, प्रशासनिक व पुलिस अघिकारियों की बैठक में न्यायाघिपति राठौड़ ने कहा कि नरेगा राजस्थान के लिए एक वरदान है। लेकिन, ग्रामीणों में न्यायिक जानकारी का अभाव है। इसके लिए न्यायिक अघिकारियों को समय-समय पर शिविरों का आयोजन कर कानूनी जानकारियां देनी होगी।

उन्होंने बताया कि मजदूरों को विशेष रूप से यह बात समझानी होगी कि नरेगा योजना सरकार की नहीं उनकी है। उन्होंने जिले में नरेगा में आंशिक शिकायतों पर प्रशासन की पीठ थपथपाते हुए कहा कि अघिकारियों को कठिन परिस्थितियों में झिझकने से नहीं डरना चाहिए। जिला कलक्टर पी. रमेश ने जिले में राजस्व मामलों के निस्तारण की जानकारी दी। एडीजे फास्ट ट्रेक अयूब खान, जिला विघिक सेवा प्राघिकरण के सचिव नेपालसिंह ने भी नरेगा मजदूरों को दी जाने वाली कानूनी जानकारियों का ब्योरा पेश किया।

बताया नरेगा का खाका
बैठक में जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अघिकारी देवानंद माथुर ने बताया कि जिले की 151 ग्राम पंचायतों के 492 गांवों में नरेगा का कार्य संचालित है। 1 लाख 61 हजार परिवार नरेगा का लाभ ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि नरेगा के संबंध में प्राप्त 200 में से 180 शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है।



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राज्य नरेगा को ठीक से लागू करें: प्रधानमंत्री



ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के पालन में ढिलाई बरतने वाले राज्यों की खिंचाई करते हुये प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उनसे प्रदर्शन सुधारने को कहा है.

नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में डॉ. सिंह ने कहा, "इस अनोखे कानून का पूरा फायदा उठाने के लिये हमें अभी भी बहुत कुछ करना है."

प्रधानमंत्री ने कहा, "राज्यों से हमें इसके मिश्रित परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं. कुछ अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं...जबकि कुछ ढिलाई बरत रहे हैं. मैं उनसे कहूंगा कि वो अच्छा प्रदर्शन कर रहे राज्यों का अनुसरण करें."

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस कानून के अनुपालन पर निगरानी रखेगा.

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