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नरेगा प्रश्नोत्तर

नरेगा प्रश्नोत्तर, NREGA Question & Answer
  • प्रश्न - नरेगा में ग्राम पंचायतों की क्या भूमिका है?
उत्तर - सबसे पहले तो ग्राम पंचायतों को पंजीकरण के आवेदनों की छंटनी कर उन्हें ‘पंजीकृत’ करना है। इसका मतलब है संभावित मजदूरों का पंजीकरण करना, उन्हें जाब कार्ड जारी करना, रोजगार के लिए दिए गए आवेदनों को प्राप्त करना, उन्हें कार्यक्रम अधिकारी को भेजना, और काम उपलब्ध हो तो आवेदकों को उसकी सूचना देना। पंजीकरण और रोजगार पाने के आवेदन सीधे कार्यक्रम अधिकारी को भी प्रेषित किए जा सकते हैं, पर उम्मीद सामान्य रूप से यही है कि वे ग्राम पंचायत के स्तर पर ही जमा किए जाएंगे। उम्मीद यह रखी गई है कि ग्राम पंचायत, ग्राम सभा की अनुशंसाओं के आधार पर अपने ग्राम के लिए एक ‘विकास योजना’ बनाएगी और रोजगार गारंटी योजना के तहत ‘संभावित कार्यों’ की सूची तैयार करेगी। इसके बाद जब कार्यक्रम अधिकारी परियोजनाओं की स्वीकृति देगा तो ग्राम पंचायत उन्हें क्रियान्वित भी करेगी। इन परियोजनाओं से संबंधित सभी दस्तावेज मस्टर रोल के साथ ग्राम सभा को सामाजिक अंकेक्षण के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे। रोजगार गांरटी योजना के तहत ग्राम पंचायत द्वारा क्रियान्वित करवाए गए सभी कार्यों की निगरानी की जिम्मेदारी ग्राम सभा तथा कार्यक्रम अधिकारी की होगी।
  • प्रश्न - नरेगा के तहत क्या मजदूरों को कार्यस्थल पर कुछ विशिष्ट सुविधाओं का हक है?
उत्तर
जी हां। कार्यस्थल पर निम्नलिखित सुविधाएं मुहैया करवाई जानी चाहिए: सुरक्षित पेयजल, बच्चों के लिए छाया, आराम करने का समय, छोटी-मोटी दुर्घटनाओं और काम से जुड़े स्वास्थ्य खतरों के लिए सामग्री समेत प्राथमिक उपचार का डब्बा (फर्स्ट एड बाक्स)। वैसे तो यह भी नाकाफी है पर अक्सर कार्यस्थलों पर इतनी भी सुविधा नहीं मिल पाती। अत: यह जरूरी है कि कम से कम इतने की व्यवस्था करने पर जोर दिया जाए।

प्रश्न - काम कहां उपलब्ध करवाया जाएगा?


उत्तर
जहां तक संभव हो आवेदक के निवास स्थान से अधिकतम 5 कि. मी. की दूरी पर ही काम उपलब्ध करवाया जाएगा। अगर काम इस परिधि के बाहर उपलब्ध करवाया जाता है तो, वह उसी खण्ड में करवाया जाएगा और ऐसी स्थिति में मजदूरों को यातायात व गुजारे भत्ते के रूप में दैनिक भुगतान दर की 10 प्रतिशत राशि भी अतिरिक्त देय होगी।

प्रश्न - अगर रोजगार गारंटी योजना के कार्यस्थल पर कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या होगा?


उत्तर
अगर कोई मजदूर रोजगार गारंटी योजना के ‘काम से उपजी या काम के दौरान दुर्घटना से’ घायल होता/होती है तो उसे योजना के तहत स्वीकृत नि:शुल्क चिकित्सा-उपचार का हक होगा। अगर उसे अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है तो उसे अस्पताल में रहने, उपचार, दवाओं का खर्च और दैनिक भत्ता पाने का हक होगा। यह दैनिक भत्ता उसकी ‘मजदूरी दर से कम से कम आधा होगा।’ ऐसे ही प्रावधान उन बच्चों के लिए भी हैं जो उनके साथ कार्यस्थल पर आते हैं। दुर्घटनावश मृत्यु या स्थाई विकलांगता की सूरत में उसके परिवार को या उसे रु. 25,000 या केंद्र सरकार द्वारा घोषित राशि देय होगी।

क्या मजदूरों को अपनी मर्जी का काम चुनने की छूट होगी?


उत्तर
नहीं। उन्हें वही काम करना होगा जो उन्हें ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी सौंपती/सौंपता है। वे अधिक से अधिक ग्राम सभा या अन्य माध्यमों से काम की योजना बनाने की प्रकिया में भागीदारी कर सकेंगे।
  • नरेगा के तहत मजदूरों को कितना भुगतान किया जाएगा?
उत्तर -
मजदूरों को उनके राज्य में कृषि मजदूरों के लिए मान्य न्यूनतम मजदूरी का हक है, जब तक कि केंद्र सरकार इसे निरस्त करने की अधिसूचना जारी कर कोई भिन्न मजदूरी दर की घोषणा न करे। अगर केंद्र सरकार कोई मजदूरी दर की घोषणा करती है तो यह दर रु. 60 प्रति दिन से कम नहीं होगी (भाग 6)

  • भुगतान की नियमितता क्या होगी?


उत्तर -
किए गए काम का भुगतान हर सप्ताह या किसी भी हाल में ‘काम करने की तारीख से एक पखवाड़े के अंदर’ करना होगा। साथ ही राज्य सरकार चाहे तो यह निर्देश भी दे सकती है कि मजदूरी में नकद दी जाने वाली राशि का दैनिक भुगतान किया जाए।

  • अगर मजदूरी समय पर न दी गई तो?


ऐसी सूरत में मजदूरों को वेतन भुगतान कानून 1936 के प्रावधानों के अनुसार मुआवजा पाने का हक होगा (अनुसूची II, अनुच्छेद 30)।

  • क्या स्त्रियों और पुरुषों को अलग-अलग दर से भुगतान किया जा सकता है?


उत्तर -
बिल्कुल नहीं। सभी स्त्रियों और पुरुषों को समान वेतन का हक है। सच तो यह है कि किसी भी तरह का लिंग आधारित भेदभाव करने की यह कानून मनाही करता है। (अनुसूची II, अनुच्छेद 32)
  • प्रश्न - नरेगा कानून में ‘परिवार’ को किस तरह परिभाषित किया गया है?
उत्तर -
कानून के अनुसार परिवार वह इकाई है जिसके सदस्य एक दूसरे से खून के रिश्ते से, विवाह के रिश्ते से या गोद लेने के रिश्ते से एक दूसरे से संबंधित हैं और सामान्य रूप से एक साथ रहते, साथ-साथ खाते हों या जिनका ‘राशन कार्ड’ एक हो। इस परिभाषा में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ‘संयुक्त परिवार’ के सभी सदस्य जो साथ रहते हों और जिनका राशन कार्ड साझा हो, उनकी संख्या काफी अधिक भी हो सकती है। फिर भी उन्हें एक ही परिवार माना जाएगा। यह बड़े परिवारों के प्रति अन्याय है क्योंकि उन्हें भी केवल 100 दिनों के काम का हक होगा, जो किसी छोटे परिवार को भी है फिर चाहे उनकी जरूरतें कहीं ज्यादा ही क्यों न हो। आदर्श स्थिति तो वह हो जहां प्रत्येक एकल परिवार (पति, पत्नी और उनके बच्चे) को एक अलग परिवार माना जाए।
  • प्रश्न - नरेगा के तहत मजदूर काम का आवेदन किस प्रकार करेंगे?
उत्तर
यह मूलत: दो चरणों की प्रक्रिया है। पहला चरण है ग्राम पंचायत में अपना ‘पंजीकरण’ करवाना। दूसरा चरण है काम का आवेदन देना। पंजीकरण पांच वर्षों में एक बार ही करवाना होगा परन्तु काम का आवेदन जितनी बार काम की जरूरत पड़े उतनी बार करना होगा। पंजीकरण का मुख्य उद्देश्य है कामों का नियोजन आसान बनाना। अगर कोई परिवार पंजीकरण का आवेदन करता है तो यह ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी होगी कि वह उसका पंजीकरण कर उसे एक ‘जाब कार्ड’ दे। जाब कार्ड यह सुनिश्चित करेगा कि मजदूरों के पास भी इस बात का लिखित रिकार्ड हो कि उन्होंने कितने दिन काम किया, उन्हें कितना भुगतान किया गया, बेरोजगारी भत्ता कब और कितना मिला आदि। इससे उन्हें इस सूचना के लिए किसी सरकारी अधिकारी पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। जाब कार्ड भी कम से कम पांच वर्ष के लिए मान्य होगा।

काम के लिए आवेदन किसी भी समय, ग्राम पचायत के द्वारा या सीधे कार्यक्रम अधिकारी को दिया जा सकता है। दोनों का ही यह फर्ज है कि वैध आवेदनों को स्वीकारें और तारीख के साथ उसकी प्राप्ति रसीद आवेदक को दें (अनुसूची II, अनुच्छेद 10)। आवेदन कम से कम चौदह दिनों के लगातार काम के लिए होना चाहिए (अनुसूची II, अनुच्छेद 7)।

कानून में सामूहिक आवेदनों, अग्रिम आवेदनों, समय-समय पर एक से अधिक आवेदनों का भी प्रावधान है (अनुसूची II, अनुच्छेद 10,18 तथा 19)। कानून के अनुसार उन्हें कब और कहां काम के लिए हाजिर होना है यह सूचना आवेदकों को पत्र द्वारा और साथ ही ग्राम पंचायत तथा कार्यक्रम अधिकारी के कार्यालयों के सूचनापट्ट पर सार्वजनिक नोटिस लगा कर दी जाएगी ( अनुसूची II, अनुच्छेद 11 तथा 22)। धयान रहे कि पंजीकरण की इकाइ ‘परिवार’ है, जबकि काम के आवेदन व्यक्ति के नाम से दिए जाएंगे।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किसकी होगी?
उत्तर -
रोजगार गारंटी योजना, केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए वित्त से राज्य सरकार द्वारा क्रियान्वित की जाएगी। कानून के भाग 13 के अनुसार योजना के नियोजन तथा क्रियान्वयन की ‘मुख्य सत्ता’ जिला, मध्यस्तरीय तथा ग्राम स्तर की पंचायतें होंगीं। परन्तु विभिन्न सत्ताओं के बीच जिम्मेदारी का विभाजन काफी पेचीदा है। क्रियान्वयन की मूल इकाई है ब्लाक। प्रत्येक ब्लाक में एक ‘कार्यक्रम अधिकारी’ योजना का प्रभारी होगा। इस कार्यक्रम अधिकारी का पद किसी खण्ड विकास अधिकारी (बीडीओ) से कम नहीं होगा। इसका वेतन केंद्र सरकार देगी और रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्यवयन की जिम्मेदारी उसकी अकेले की होगी। कार्यक्रम अधिकारी ‘मध्य स्तर की पंचायत’ तथा जिला समन्वयक के प्रति जवाबदेह होगा।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी योजना में किस प्रकार के काम चलाए जा सकते हैं?
उत्तर -

अनुसूची I में काम की आठ श्रेणियां शामिल की गई हैं जिन पर रोजगार गारंटी योजना में धयान देना होगा। संक्षेप में ये श्रेणियां हैं- (1) जल संरक्षण व जल संग्रहण (2) अकाल से बचाव (3) सिंचाई नहरें (4) भूमि सुधार या इंदिरा आवास योजनाओं के तहत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लाभार्थी परिवारों को सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करवाने वाले कार्य (5) परंपरागत जल स्रोतों का नवीनीकरण (6) भूमि विकास (7) बाढ़ नियंत्रण व बचाव के कार्य जिसमें पानी जमा होने वाले इलाकों से पानी निकास की व्यवस्था भी शामिल है (8) ग्रामीण इलाकों को जोड़ने के लिए पक्की सड़कों का निर्माण। इसके अलावा एक नौवीं श्रेणी भी है जिसमें कोई भी अन्य काम जिसकी अधिसूचना केंद्र सरकार, राज्य सरकार के साथ परामर्श के बाद जारी करे शामिल है।


यह सूची काफी सीमित है और इस दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005, पूर्व में नागरिकों द्वारा बनाए गए प्रारूप के विपरीत है। नागरिकों के प्रारूप में मान्य या स्वीकृत कार्यों की व्यापक परिभाषा करते हुए कहा गया था कि वे तमाम कार्य मान्य होंगे जो (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) उत्पादन बढ़ाने में, स्थाई परिसंपत्तियों के निर्माण में, पर्यावरण के संरक्षण में या जीवन की गुणवत्ता सुधारने में योगदान देते हों। अगर अनुसूची I को संशोधित न करना हो, तो इस कानून के तहत मान्य कार्यों की सूची को बढ़ाने का एक ही उपाय बचता है कि अंतिम श्रेणी में दूसरे प्रकार के कार्य भी जोड़े जाएं। कानून यह भी कहता है कि प्राथमिकता पर किए जाने वाले ‘वरीयता कार्यों’ की सूची राज्य रोजगार गारंटी परिषद द्वारा बनाई जाएगी। वरीयता सूची के कामों की पहचान इस आधार पर की जाएगी कि उनमें स्थाई परिसंपत्तियों के निर्माण की कितनी क्षमता है। जाहिर है कि यह सूची विभिन्न इलाकों के लिए अलग-अलग होगी।
  • प्रश्न - किसी एक वर्ष के दौरान व्यक्ति को कितने दिनों का गारंटीशुदा काम मिलेगा क्या इसकी कोई सीमा है?
उत्तर -
रोजगार की गारंटी ‘100 दिवस प्रति परिवार प्रति वर्ष’ तक सीमित है। धयान दें कि यहां वर्ष का अर्थ है वित्तीय वर्ष। दूसरे शब्दों में कहें तो एक अप्रैल से हर एक परिवार का 100 दिनों का नया ‘कोटा’ शुरू होता है, जो आगामी 12 महीनों के लिए है। ध्यान दें कि 100 दिन के इस कोटे को परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के बीच बांटा जा सकता है: मतलब अलग-अलग लोग, अलग-अलग दिन या एक साथ भी काम पर जा सकते हैं, बशर्ते कुल रोजगार एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों से अधिक न हो।

हालांकि अब राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) योजना की सफलता से उत्साहित होकर सरकार शहरी गरीबों के लिए भी नरेगा किस्म की योजना लाने पर विचार कर रही है।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी कानून के तहत काम पाने का हक किसे है?
उत्तर -
गारंटी शब्द सभी वयस्कों को रोजगार पाने का हक देता है, अर्थात् यह सार्वजनिक है, सब पर लागू होता है। यह कानून आत्म-चयन के सिध्दान्त पर आधारित है: जो कोई न्यूनतम मजदूरी की दर पर अकुशल काम करने को तैयार हो, उसके लिए यह मान लिया जाएगा कि उसे दरअसल सार्वभौमिक सहयोग की जरूरत है और उसे मांगने पर रोजगार दिलवाया जाएगा। अगर कोई आपको यह कहे कि रोजगार गारंटी सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले परिवारों अर्थात बी.पी.एल. कार्डधारी परिवारों के लिए ही है तो उसका विश्वास न करें।
  • प्रश्न -रोजगार गारंटी ‘योजना’ की जगह, रोजगार गारंटी ‘कानून’ का होना ही क्यों जरूरी है?
उत्तर -
एक अधिनियम रोजगार की कानूनी गारंटी देता है। इससे राज्य पर अदालत द्वारा लागू किए जा सकने वाला दायित्व डाला गया है और मजदूरों को मोलतोल कर पाने की ताकत भी मिली है। दरअसल एक कानून राज्य को जवाबदेह बनाता है। इसके विपरीत योजना में कोई कानूनी हकदारी नहीं मिलती और मजदूर सरकारी अफसरों की दया पर निर्भर रह जाते हैं। इसके पूर्व भी रोजगार संबंधी तमाम योजनाएं बनी थीं- आश्वासित रोजगार योजना (इएएस), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एनआरईपी), जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाय) संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाय), ऐसी ही योजनाओं में से कुछ है। ये सभी योजनाएं लोगों के जीवन में सुरक्षा की भावना पैदा करने में असफल रही। अक्सर लोगों को इन योजनाओं की कोई जानकारी तक नहीं होती है। एक योजना और एक कानून में एक और महत्वपूर्ण अंतर भी होता है। योजनाएं तो आती-जाती रहती हैं, पर कानून ज्यादा टिकाऊ होते हैं। अफसर योजनाओं में काट-छांट कर सकते हैं, चाहें तो उसे निरस्त भी कर सकते हैं, पर कानून बदलना हो तो संसद में संशोधन प्रस्ताव लाना पड़ता है। अत: जाहिर है कि रोजगार गारंटी कानून से मजदूरों को एक टिकाऊ कानूनी हकदारी मिलेगी। संभव है कि समय के साथ वे अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक होंगे और अपना हक पाने के लिए दावा करना भी सीखेंगे।
  • प्रश्न - रोजगार गारंटी कानून का बुनियादी विचार क्या है?
उत्तर -
इस कानून के पीछे जो बुनियादी सोच है, वह यह है कि जो कोई भी व्यक्ति मान्य न्यूनतम मजदूरी दर पर अनियमित मजदूरी करने को तैयार हो, उसे रोजगार की कानूनी गारंटी दी जाए। इस कानून के तहत जो भी वयस्क काम पाने का आवेदन दे उसे पंद्रह दिन की अवधि में सार्वजनिक कार्यों पर काम पाने की हकदारी है। इस प्रकार रोजगार गारंटी कानून बुनियादी रोजगार का सार्वजनिक व कानून द्वारा लागू किया जा सकने वाला अधिकार देता है। सम्मान के साथ जीने के बुनियादी अधिकार को कानून द्वारा लागू करने की दिशा में यह एक कदम है।

  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005, इन उद्देश्यों को किस हद तक हासिल करता है?


उत्तर -
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005 आधे मन से बनाया गया रोजगार गारंटी कानून है। इसके तहत कोई भी वयस्क जो काम का आवेदन करे, उसे आवेदन के बाद 15 दिन की अवधि में किसी सार्वजनिक कार्य पर काम पाने की हकदारी प्राप्त हुई है। परन्तु यह हकदारी सीमित है। उदाहरण के लिए काम की यह गारंटी केवल ग्रामीण इलाकों के लिए है और वहां भी 100 दिवस प्रति परिवार, प्रतिवर्ष तक सीमित की गई है। साथ ही 2005 में पारित कानून सजग नागरिकों द्वारा अगस्त 2004 में बनाए गए प्रारूप की तुलना में कई अर्थों में कमजोर है। पर कहने का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून बेकार है। यह सामाजिक सुरक्षा की दिशा में बढ़ने के लिए एक संभावित सीढ़ी भी है।

इस खबर के स्रोत का लिंक:

http://www.bhartiyapaksha.com/


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